एस पी मित्तल अजमेर
17 अक्टूबर को दिल्ली में कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक छह घंटे चली। 18 अक्टूबर को सोनिया गांधी, राहुल गांधी और राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े आदि की मौजूदगी में सेंट्रल इलेक्शन कमेटी (सीईसी) की बैठक हुई। इन दोनों महत्वपूर्ण बैठकों से पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक बार फिर कांग्रसे विधायकों के बिकने और न बिकने का मुद्दाउठा दिया। गहलोत ने कहा कि यदि विधायक भ्रष्ट होते तो 2020 में संकट के समय दस-दस करोड़ रुपए ले लेते। लेकिन विधायक मेरे साथ 30 दिनों तक होटलों में बंद रहे। गहलोत ने अफसोस जताते हुए कहा जिन कुछ विधायकों ने करोड़ों रुपए लिए उनकी ओर आज कोई नहीं देख रहा है। मालूम हो कि अगस्त 2020 में जब सचिन पायलट के नेतृत्व में कांग्रेस के 18 विधायक दिल्ल ीचले गए थे, तब सीएम गहलोत कांग्रेस के 80 विधायकों के साथ जयपुर और जैसलमेर की होटलों में बंद रहे। गहलोत होटलों में रहने वाले कांग्रेस के विधायकों को ईमानदार और पायलट के साथ दिल्ली जाने वाले विधायकों को बेईमान मानते हैं। गहलोत ने खुला आरोप लगाया है कि दिल्ली जाने वाले विधायकों ने भाजपा से 20-20 करोड़ रुपए लिए हैं। हालांकि हाईकमान खासकर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के दखल के बाद पायलट वाले विधायकों ने विधानसभा में गहलोत के समर्थन में वोट दिया। हाईकमान ने कई बार कहा कि अब यह मुद्दा समाप्त हो गया है और गहलोत व पायलट मिलकर चुनाव लड़ेंगे। लेकिन अब जब उम्मीदवारों की सूची जारी हो रही है, तब भी गहलोत और पायलट के बीच तालमेल नहीं है। जानकार सूत्रों के अनुसार राजस्थान की स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष गौरव गोगोई ने टिकट वितरण का जो फार्मूला तैयार किया उस में सीएम गहलोत खुश नहीं है। सूत्रों के अनुसार स्क्रीनिंग कमेटी मेें कांग्रेस के मौजूदा सौ विधायकों में से पचास के टिकट काट रही है। यह निर्णय सर्वे और जमीनी जानकारी के बाद लिया गया है। गहलोत नहीं चाहते कि जिन 80 विधायकों ने उनका साथ दिया उनमें से चालीस के टिकट कट जाए। गहलोत सभी 80 विधायकों को टिकट दिलाना चाहते हैं। यही वजह है कि उन्होंने स्क्रीनिंग और इलेक्शन कमेटी की बैठक से पहले विधायकों के बिकने और न बिकने वाला बयान दिया। यदि कांग्रेस हाईकमान के टिकट वितरण के फार्मूले से गहलोत खुश होते तो विधायकों वाला बयान नहीं देते। चुनाव के ऐन मौके पर गहलोत का यह बयान कांग्रेस को नुकसान पहुंचाएगा। गहलोत की सरकार बचाने वाले विधायकों को यदि टिकट नहीं दिया गया तो कांग्रेस को बगावत का सामना करना पड़ेगा। गहलोत के समर्थक विधायक गत वर्ष 25 सितंबर को भी बगावत कर चुके हैं। ऐसे विधायकों ने न केवल विधायक दल की समानांतर बैठक की बल्कि गहलोत के समर्थन में विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को इस्तीफे भी दे दिए। अब यदि ऐसे कट्टर समर्थकों का टिकट कटेगा तो बगावत का अंदाजा लगाया जा सकता है।
भाजपा में असमंजस:
पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे को साथ रखकर भाजपा एकता दिखाने का कितना भी प्रयास करें, लेकिन राजे की भूमिका को लेकर अभी भी असमंजस बना हुआ है। यह असमंजस 17 अक्टूबर को दिल्ली में भाजपा मुख्यालय में भी देखने को मिला। 17 अक्टूबर को ही उदयपुर के पूर्व राजघराने के प्रमुख विश्वराज सिंह मेवाड़ और करणी सेना के संस्थापक स्वर्गीय लोकेंद्र सिंह कालवी के पुत्र भवानी सिंह कालवी को भाजपा की सदस्यता दिलाई गई। भाजपा मुख्यालय में हुए इस कार्यक्रम में पूर्व सीएम राजे भी उपस्थित नहीं थी। लेकिन बाद में एक ऐसा फोटो खिंचवाया गया जिसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, विश्वराज मेवाड़ा और भवानी सिंह कालवी के साथ वसुंधरा राजे भी नजर आई। यह फोटो खुद राजे ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है। इस फोटो के माध्यम से यह दिखाने की कोशिश की गई है कि दो राजपूत नेताओं के भाजपा में शामिल होने पर वसुंधरा राजे की भी सहमति है। जबकि हकीकत यह है कि उदयपुर राजघराने के विश्वराज सिंह और भवानी सिंह कालवी को भाजपा में शामिल करवाने के पीछे जयपुर राजघराने की दीया कुमारी और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी की भूमिका रही है। दीया कुमारी को अब जयपुर शहर से विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाया गया है। जिस प्रकार भाजपा के राष्ट्रीय नेता वसुंधरा राजे की सिर्फ उपस्थिति करवा रहे हैं, उसी प्रकार राजे भी सिर्फ उपस्थिति दर्ज करवाने तक सीमित हैं। यदि वसुंधरा राजे भाजपा की चुनावी रणनीति में शामिल होती तो 41 उम्मीदवारों की घोषणा के बाद इतना विरोध नहीं होता। विरोध करने वाले अधिकांश नेता राजे के समर्थक हैं। यदि राष्ट्रीय नेताओं ने राजे को उपस्थिति तक ही सीमित रखा तो राजस्थान में भाजपा को अनेक विधानसभा क्षेत्रों में बगावत का सामना करना पड़ेगा। ऐसे बगावती नेता सीपी जोशी राजेंद्र राठौड़, सतीश पूनिया, दीयाकुमारी, अरुण सिंह जैसे नेताओं का कहना नहीं मानेंगे।