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भारत में कोविड ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल से हटी प्लाज्मा थैरेपी; क्या कोई फायदा नहीं था इस थैरेपी का

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सोशल मीडिया पर प्लाज्मा डोनेट करने वालों को खूब तलाशा जा रहा है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी खुद आगे आकर लोगों से कह चुके हैं कि जो लोग कोरोना से रिकवर हो चुके हैं, उन्हें प्लाज्मा डोनेट करना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों की जान बचाई जा सके।

पर सोमवार को भारत में कॉन्वल्सेंट प्लाज्मा थैरेपी (CPT) को कोविड-19 के लिए नेशनल क्लीनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकॉल से हटा दिया गया है। AIIMS-ICMR कोविड-19 नेशनल टास्क फोर्स और हेल्थ मिनिस्ट्री का यह फैसला बता रहा है कि प्लाज्मा थैरेपी का अस्पताल में भर्ती मरीजों के इलाज में कोई फायदा नहीं था। यह फैसला द लैंसेट मेडिकल जर्नल में प्रकाशित रिकवरी ट्रायल के नतीजों के आधार पर लिया गया है।

क्या है प्लाज्मा थैरेपी?

  • कॉन्वल्सेंट प्लाज्मा थैरेपी एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें इन्फेक्शन से रिकवर हुए व्यक्ति के शरीर से खून लिया जाता है। खून का पीला तरल हिस्सा निकाला जाता है। इसे इन्फेक्टेड मरीज के शरीर में चढ़ाया जाता है। थ्योरी कहती है कि जिस व्यक्ति ने इन्फेक्शन से मुकाबला किया है उसके शरीर में एंटीबॉडी बने होंगे। यह एंटीबॉडी खून के साथ जाकर इन्फेक्टेड व्यक्ति के इम्यून सिस्टम को मजबूती देंगे। इससे इन्फेक्टेड व्यक्ति के गंभीर लक्षण कमजोर होते हैं और मरीज की जान बच जाती है।

क्या कहती है प्लाज्मा पर अब तक की स्टडी?

  • द लैंसेट में प्रकाशित स्टडी के मुताबिक कॉन्वल्सेंट प्लाज्मा थैरेपी से मौतें रोकने में कोई फायदा नहीं हो रहा है। यह एक जटिल प्रक्रिया है और समय व पैसा भी अधिक खर्च होता है। इसके मुकाबले में इससे जान बचाने की गारंटी भी नहीं मिलती है।
  • इससे पहले चीन और नीदरलैंड में भी प्लाज्मा थैरेपी को लेकर स्टडी हुई थी। इसमें भी प्लाज्मा थैरेपी से गंभीर मरीजों को कोई फायदा होता साबित नहीं हुआ था। इसी वजह अमेरिका समेत अन्य देशों में भी प्लाज्मा थैरेपी को लाइफसेविंग नहीं माना गया।
  • इससे पहले भारत के सबसे बड़े ट्रायल PLACID में कोविड-19 को रोकने में प्लाज्मा थैरेपी पर स्टडी की गई थी। अक्टूबर 2020 में प्रकाशित ICMR की स्टडी कहती है कि प्लाज्मा थैरेपी से कोविड-19 के गंभीर लक्षणों वाले मरीजों को कोई फायदा नहीं हो रहा है।
  • वैसे, WHO से लेकर किसी भी अंतरराष्ट्रीय स्तर की बॉडी ने इस थैरेपी की पुष्टि नहीं की है। अमेरिका में रेगुलेटर US-FDA ने भी इसे इमरजेंसी यूज के लिए अनुमति तो दी थी, पर नतीजों की पुष्टि नहीं हुई है। यानी इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि कोरोना मरीजों पर यह उपचार सफल रहेगा ही।

क्या प्लाज्मा थैरेपी कोरोना की मृत्यु दर कम कर सकती है?

  • नहीं। दरअसल, विशेषज्ञ और डॉक्टर इस थैरेपी का इस्तेमाल इमरजेंसी यूज के तौर पर कर रहे थे। दिल्ली के HCMCT मणिपाल हॉस्पिटल द्वारका के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. देवेंद्र कुंद्रा का कहना है कि अगर कोरोना की वजह से हुए निमोनिया की शुरुआती स्टेज में ही प्लाज्मा थैरेपी का इस्तेमाल किया जाए तो रिकवरी में मदद मिल सकती है। पर जान बचाने में इसका कोई फायदा अब तक सामने नहीं आया है।
  • बैंगलोर में नारायणा हेल्थ सिटी में इंन्टेसिव केयर-कंसल्टेंट डॉ. हरिश मल्लापुरा महेश्वरप्पा का कहना है कि गंभीर लक्षणों वाले मरीजों पर प्लाज्मा थैरेपी का कोई लाभ नहीं दिखा है। यह थैरेपी जान बचाने में कारगर नहीं है। सिर्फ इलाज की अवधि कम करने और रिकवरी तेज करने में ही यह थैरेपी मददगार रही है।

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