मोदी का ‘जादू’ या I.N.D.I.A का ‘हाथ’लोकसभा चुनाव में महज कुछ ही दिनों का वक्त बचा है। सभी राजनीतिक दल चुनाव तैयारियों में जुटे हुए हैं। जगह-जगह रैलियां और जनसभाएं हो रही हैं। इस बार के आम चुनाव में बीजेपी और विपक्ष दोनों ने ही बड़े दावे कर दिए हैं। लोकसभा चुनाव की दिशा तय करने वाले 5 फैक्टर हम आपको बता रहे हैं।
आम चुनाव का बिगुल बज चुका है। सात चरणों में होने वाले चुनाव की वोटों की गिनती 4 जून को होगी और 19 अप्रैल को पहले चरण का चुनाव होने वाला है। रविवार को एक तरह से इंडिया गठबंधन दिल्ली में संयुक्त रैली से चुनावी अभियान के अंतिम चरण की शुरुआत कर सकता है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसी दिन मेरठ से बीजेपी के अभियान की शुरूआत कर सकते हैं। ऐसे में जानते हैं 5 ऐसे फैक्टर जो तय करेंगे चुनाव की दिशा:
1. UP-बिहार ही सबकुछ तय करेगा
भले आम चुनाव 543 लोकसभा सीटों पर हो रहा हो, लेकिन दिल्ली की गद्दी पर कौन बैठेगा, यह दिशा उत्तर प्रदेश और बिहार की 120 सीटें ही करेंगी। 2019 और 2014 आम चुनाव में भी अगर नरेंद्र मोदी प्रचंड बहुमत से गद्दी पर बैठे तो इसके पीछे इन दोनों राज्यों का विशाल जनादेश ही था। 2019 में बीजेपी गठबंधन को दोनों राज्यों में 103 सीटें मिली। पिछली बार तो UP में समाजवादी और BSP के गठबंध्न के बावजूद बीजेपी ने बड़ी जीत हासिल की। इस बार BSP अलग है। साथ ही जयंत बीजेपी के साथ हैं। जानकारों के अनुसार, बीजेपी इस बार इन दोनों राज्यों में कुछ सीटें बढ़ाने की उम्मीद ही कर रही है। वहीं, विपक्ष को पता है कि अगर इन दोनों राज्यों में बीजेपी की सीटें कम नहीं हुई तो लगातार तीसरी बार सत्ता में आने से रोकना बेहद कठिन होगा।
2. एक सीट, एक उम्मीदवार का प्रयोग
विपक्ष इस बार बीजेपी को रोकने के लिए एक सीट, एक उम्मीदवार देने की कोशिश कर रहा है। विपक्ष का मानना है कि अगर बीजेपी के सामने एक साझा उम्मीदवार रहा और वोट नहीं बंटे तो मोदी की अगुवाई में NDA को रोका जा सकता है। लेकिन ऐसा कितनी सीटों पर होगा, अभी यह तस्वीर पूरी तरह साफ नहीं है। UP जैसे बड़े राज्य में मायावती साथ नहीं आईं। ऐसे में अंतिम लाइन अप सामने आने के बाद तस्वीर साफ होगी। बीजेपी का दावा है कि ऐसा होने से भी फर्क नहीं पड़ेगा। इसके लिए वह 2019 के चुनाव परिणाम का हवाला दे रही है, जब पार्टी को 223 सीटों पर 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिले।
3. गरीब-किसानों के वोट में कितनी सेंध
मोदी सरकार ने पिछले 10 वर्षों में बीजेपी का चरित्र बहुत हद तक बदलने में सफलता पाई है। इसके लिए सामाजिक आधार को भी बदलने की कोशिश भी बहुत हद तक सफल भी रही। चाहे उज्ज्वला योजना हो या गरीबों को घर देने की योजना या फिर किसानों को हर साल 6 हजार रुपये अनुदान, मोदी ने गरीबों के बीच अपने वोट को विस्तार दिया है। इसे ‘बॉटम ऑफ पिरामिड वोट’ कहा जाता है। पहले बीजेपी की पकड़ इस वर्ग में कमजोर हुआ करती थी। विपक्ष इसमें सेंध लगाने के लिए लोक-लुभावने वादे के साथ उतरी है।
4. गणित बनाम केमेस्ट्री
इस बार आम चुनाव में कई नए तरह के गठबंधन बने। पहले विपक्ष ने इंडिया गठबंधन के नाम पर प्रयोग किया। हालांकि, नीतीश कुमार के एनडीए में जाने और ममता बनर्जी के सीट समझौते से अलग होने के बाद इसे झटका भी लगा। लेकिन कई जगह चुनावी गणितीय आंकड़ों में वह निश्चित तौर पर मजबूत दिखे। इसे काउंटर करने के लिए अंतिम समय में बीजेपी ने भी एनडीए ताबड़तोड़ कई दलों को मिलाया। हालांकि ओडिशा-पंजाब में समझौता नहीं हो पाया। चुनाव सिर्फ गणित से नहीं जीते-लड़े जाते हैं। इसके लिए केमेस्ट्री भी जरूरी है। जो गठबंधन गणित मजबूत कर केमेस्ट्री को अपने पक्ष में करने में सफल होगा, उसके लिए परिणाम और बेहतर निकलेगा।
5. राजनीतिक दलों का नैरेटिव और सिस्टम
अंत में जिस राजनीतिक दल का सिस्टम बेहतर होगा, नजदीकी मुकाबले वाले चुनाव में जो अपने वोटरों को बूथ तक लाने में सफल रहेंगे वही अडवांटेज में रहेगा। जाहिर है इसमें पैसा और दूसरे संसाधन भी अहम फैक्टर होंगे। इनके बीच बूथ मैनेजमेंट भी चुनाव की दिशा तय करेगा। संघ-बीजेपी के बीच किस तरह की केमेस्ट्री चुनाव तक बनती है, विपक्षी दल बीजेपी के राजनीतिक संसाधन को किस तरह काउंटर करते हैं। चुनाव प्रचार को कितना विस्तार देते हैं, इन सब बातों से भी चुनाव तय होगा। अभी तक विपक्ष कोई मजबूत नैरेटिव नहीं लाया है। वहीं, मोदी की अगुआई में बीजेपी 400 पार के नारे के साथ मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने में सफल हो गई है।