अग्नि आलोक
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ये हैं हमारे आदर्श महापुरुष 

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कनक तिवारी

 यह सब कहीं कहीं पढ़ा था। सरदार पटेल किसी मुकदमे में अदालत में जिरह कर रहे थे। उसी वक्त उन्हें उनकी पत्नी की मृत्यु की खबर मिली । सरदार ठिठके नहीं और अपना पूरा मुकदमा शांतिपूर्वक निपटाया ।किसी को पता तक नहीं लगने दिया ।उसके बाद अदालत से बाहर निकले और अपने परिवार की जिम्मेदारियों के लिए आगे बढ़े। 

  अब जाकर पत्नी के बारे में अंतिम संस्कार किए। 

          जवाहरलाल नेहरू जेल जाते थे ,आते थे। और पत्नी अपनी तपेदिक से तपती बीमारी में स्विट्जरलैंड के अस्पतालों में पड़ी थीं। उन्हें देखने की फुर्सत नहीं मिलती थी। कई बार तो सुभाष चंद्र बोस ने श्रीमती कमला नेहरू की फिक्र की। लेकिन नेहरू क्या करते ?  देश की आजा़दी की लड़ाई में जो लगे हुए थे।   

      विवेकानंद के पिता के निधन के बाद उनके घर की आर्थिक हालत बहुत खराब हो गई थी। लेकिन तब तक विवेकानंद का सांसारिक जीवन से मन उचट गया था और वे सन्यास के रास्ते देश की सेवा दुनिया की सेवा में जा रहे थे। उनकी बहन को अपने अंतिम दिनों में  मुनासिब दवा तक नहीं मिली ।घर की गरीबी को दूर नहीं किया ।   

       ऐसा गांधी जी का भी किस्सा  है। परचुरे  शास्त्री की सेवा करने से अहमदाबाद के साबरमती आश्रम में उनकी माता तुल्य बहन और पत्नी में इंकार किया ।तो गांधी ने कहा कि वह साबरमती आश्रम छोड़ कर चली जाएं। रोगी की सेवा तो मैं करूंगा ।   

         राम ने भी तो इसी तरह के कुछ कारणों से सीता का निर्वासन तक कर दिया था ।   

        अब तो अपने घर वाले बीमार पड़ते हैं। तो उनको लिए सारे हमारे मंत्री , आदरणीय मंत्री,  परम आदरणीय मंत्री खुद और पूरा परिवार लिए अमेरिका और विदेशी यूरोपीय अस्पतालों में पड़े रहते हैं ।और खूब उसका प्रचार करते हैं ।  वक्त में कितना परिवर्तन हो गया है। 

  घर पहले संसार बाद में।   

   लोकतंत्र! तुम  आ तो  गए हो लेकिन अंदर से खोखले हो।

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