अग्नि आलोक
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ये वही रूसी पनडुब्बियां हैं, जिन्होंने 1971 की जंग में अमेरिका के विरुद्ध ढाल बनकर भारतीय नोसेना की रक्षा की थी !

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विनोद कुमार झा

– पूर्व नौसेना अधिकारी

50 साल पहले 1971 में अमेरिका ने भारत को 1971 के युद्ध को रोकने की धमकी दी थी.

             चिंतित भारत ने सोवियत संघ को एक SOS भेजा. एक ऐसी कहानी जिसे भारतीय इतिहास की किताबों से लगभग मिटा दिया गया है !

            जब 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की हार आसान लग रही थी, तो किसिंजर ने निक्सन को बंगाल की खाड़ी में परमाणु-संचालित विमानवाहक पोत USS Enterprise के नेतृत्व में US 7th Fleet टास्क फोर्स भेजने के लिए प्रेरित किया.

             US Enterprise 75,000 टन, 1970 के दशक में 70 से अधिक लड़ाकू विमानों के साथ दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु-संचालित विमानवाहक पोत था! यानि समुद्र की सतह पर एक चलता-फिरता राक्षस!

           भारतीय नौसेना के बेड़े का नेतृत्व 20,000 टन के विमानवाहक पोत विक्रांत ने किया, जिसमें 20 हल्के लड़ाकू विमान थे.

            अधिकारिक तौर पर USS Enterprise को खाड़ी बंगाल में भेजे जाने का कारण बांग्लादेश में अमेरिकी नागरिकों की सुरक्षा करने के लिए भेजा जाना बताया गया था, जबकि अनौपचारिक रूप से यह भारतीय सेना को धमकाना और पूर्वी पाकिस्तान की मुक्ति को रोकना था.

         भारत को जल्द ही एक और बुरी खबर मिली.

           सोवियत खुफिया ने भारत को सूचना दी कि कमांडो वाहक एचएमएस एल्बियन के साथ विमान वाहक एचएमएस ईगल के नेतृत्व में एक शक्तिशाली ब्रिटिश नौसैनिक बेड़ा, कई विध्वंसक और अन्य जहाजों के साथ पश्चिम से भारत के जल क्षेत्र में अरब सागर की ओर आ रहे थे.

                ब्रिटिश और अमेरिकियों ने भारत को डराने के लिए एक समन्वित नेवी हमले की योजना बनाई: अरब सागर में ब्रिटिश जहाज भारत के पश्चिमी तट को निशाना बनाएंगे, जबकि अमेरिकी चटगांव में हमला करेंगे.

                 भारतीय नौसेना ब्रिटिश और अमेरिकी जहाजों के बीच फंस गई थी!

           वह दिसंबर 1971 था, और दुनिया के दो प्रमुख लोकतंत्र अब दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए खतरा बन रहे थे.

            दिल्ली से एक SOS को मास्को भेजा गया था. रेड नेवी ने जल्द ही USS Enterprise को ब्लॉक करने के लिए व्लादिवोस्तोक से 16 सोवियत नौसैनिक इकाइयों और 6 परमाणु पनडुब्बियों को भेजा.

             भारतीय नौसेना के पूर्वी कमान के प्रमुख एडमिरल एन कृष्णन ने अपनी पुस्तक ‘नो वे बट सरेंडर’ में लिखा है कि उन्हें डर था कि अमेरिकी चटगांव पहुंच जाएंगे. उन्होंने उल्लेख किया कि कैसे उन्होंने इसे धीमा करने के लिए करो या मरो की चाल में USS Enterprise पर हमला करने के बारे में सोचा.

       2 दिसंबर 1971 को, जल दैत्य USS Enterprise के नेतृत्व में US 7th Fleet की टास्क फोर्स बंगाल की खाड़ी में पहुंची.

              ब्रिटिश बेड़ा अरब सागर में आ रहा था….दुनिया ने अपनी सांस रोक रखी थी!!

        लेकिन, अमेरिकियों के लिए अज्ञात, जलमग्न सोवियत पनडुब्बियों ने उन्हें पीछे छोड़ दिया था.

            जैसे ही USS Enterprise पूर्वी पाकिस्तान की ओर बढ़ा, सोवियत पनडुब्बियां बिना किसी चेतावनी के सामने आईं !

     सोवियत सबमरीन अब भारत और अमेरिकी नौसैनिक बल के बीच खड़े थे!!

        अमेरिकी हैरान रह गए !

        7वें अमेरिकी फ्लीट कमांडर ने एडमिरल गॉर्डन से कहा: 

            “सर, हमें बहुत देर हो चुकी है. सोवियत यहां हैं !पीछे हटने के अलावा, कोई चारा नहीं !”

       अमेरिकी और ब्रिटिश दोनों बेड़े पीछे हट गए.

         आज, अधिकांश भारतीय बंगाल की खाड़ी में दो महाशक्तियों के बीच इस विशाल नौसैनिक शतरंज की लड़ाई को भूल गए हैं.

तो याद करना जरूरी है .

      – विनोद कुमार झा – पूर्व नौसेना अधिकारी

          संकलन – निर्मल कुमार शर्मा गाजियाबाद उप्र संपर्क -9910629632

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