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अपना सोशल मीडिया अकाउंट डिलीट करने के ये हैं दस कारण

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कैसे सोशल मीडिया हमारी व्यक्तिगत स्वतंत्रता,साक्षात-संवाद और उत्पादकता को कमजोर कर रहा है; साथ ही,कैसे सोशल मीडिया कंपनियां अपने मुनाफे के लिए हमारे डेटा का दुरुपयोग कर रही हैं; इस विषय को समझने के लिए जेरॉन लेनियर की पुस्तक ‘टेनआर्ग्युमेंट्स फॉर डिलीटिंग योर सोशल मीडिया अकाउंट्स राइट नाउ’ एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है।

लेखक ने इस पुस्तक में सोशल मीडिया छोड़ने के दस कारण बताए हैं। इसे समझाने के लिए उन्होंने कुत्ते और बिल्ली का उदाहरण दिया है। कुत्ते आज्ञाकारी होते हैं और मालिक के आदेश मानते हैं,जबकि बिल्लियाँ अपनी मर्जी से जीती हैं और किसी के कहे पर नहीं चलतीं। लेखक कहते हैं कि सोशल मीडिया उपयोगकर्ता कुत्तों की तरह हो गए हैं- जब हमें लाइक या कमेंट मिलता है तो हम बार-बार प्लेटफॉर्म पर लौटते हैं। ये कंपनियाँ हमारी पसंद-नापसंद को समझकर वही सामग्री दिखाती हैं,जिससे हम उनकी आदतों में ढल जाते हैं और अपने फैसले लेना भूल जाते हैं। हमें बिल्लियों से सीखना चाहिए- अपनी मर्जी से जीना और सोशल मीडिया के प्रभाव से बचना।

दूसरा कारण है कि “आप अपनी स्वतंत्र इच्छा खो रहे हैं” । हमारी हर गतिविधि-क्या देखते हैं,क्या खोजते हैं, किससे बात करते हैं- डेटा के रूप में रिकॉर्ड होती है,जिसे बड़ी कंपनियाँ हमें नियंत्रित करने के लिए इस्तेमाल करती हैं। उदाहरण के लिए,अगर आपने जूते खरीदने की सोची थी,तो बाद में सोशल मीडिया पर जूते के विज्ञापन दिखने लगते हैं। इससे हमें लगता है कि हम अपने फैसले खुद ले रहे हैं,जबकि असल में हम इन प्लेटफॉर्म की चालों से प्रभावित होते हैं। धीरे-धीरे हमारी व्यक्तिगत आज़ादी खत्म हो रही है और हम बिना जाने बाहरी एजेंसियों के नियंत्रण में आ रहे हैं।

तीसरा कारण है कि “सोशल मीडिया छोड़ना हमारे समय के पागलपन से लड़ने का सबसे अच्छा तरीका है”. सोशल मीडिया हमारे व्यवहार और आदतों को नियंत्रित कर रहा है, जिससे बड़ी कंपनियां मुनाफा कमा रही हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एल्गोरिद्म के जरिए झूठी खबरें, नफरत और विभाजन फैलाने वाली सामग्री को बढ़ावा देते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि विवादित और उत्तेजक पोस्ट अधिक लाइक, शेयर और कमेंट प्राप्त करती हैं। इन प्लेटफॉर्म्स का मुख्य उद्देश्य उपयोगकर्ताओं को प्रभावित करना और उनकी आदतों को बदलना है, जिससे वे अधिक समय तक सोशल मीडिया पर सक्रिय रहें और कंपनियों का लाभ बढ़े।

चौथे कारण के रूप में है कि “सोशल मीडिया आपको असभ्य बना रहा है”, सोशल मीडिया लोगों को गुस्सैल, असभ्य और स्वार्थी बना रहा है। जब उपयोगकर्ता अधिक समय ऑनलाइन बिताते हैं तो वे दूसरों की भावनाओं को नजरअंदाज कर केवल अपनी चिंताओं में डूब जाते हैं। सोशल मीडिया पर गुमनामी की वजह से लोग बिना सोचे-समझे अपमानजनक बातें कहने लगते है, धीरे-धीरे यह नकारात्मक व्यवहार उनकी असल जिंदगी में भी झलकने लगता है,और वे दूसरों की बातों का सम्मान करना भूल जाते हैं।

पांचवा कारण है कि “सोशल मीडिया सच्चाई को कमजोर कर रहा है” । सोशल मीडिया पर झूठी खबरें,अधूरे तथ्य और अतिशयोक्ति सच की परिभाषा को बदल रहे हैं। लोग विमर्श को नकारात्मक बना देते हैं,तकनीकी कंपनियां निजी जानकारी चुराकर लोगों की सोच को नियंत्रित करती हैं,और बड़ी कंपनियां केवल वही जानकारी दिखाती हैं जो उन्हें लाभ पहुंचाए। जिससे लोग बिना सोचे-समझे झूठी खबरें साझा करने लगते हैं। इस वजह से सच और झूठ के बीच की रेखा धुंधली हो जाती है।

छठा कारण है कि “सोशल मीडिया आपकी बातों को अर्थहीन बना रहा है” । सोशल मीडिया पर आप जो भी कहते हैं वह अक्सर गलत संदर्भ में समझा जाता है। इसका मतलब है कि लोग आपकी बात का सही अर्थ नहीं समझ पाते; उनकी अहमियत खो जाती है। एल्गोरिदम यह तय करते हैं कि आपकी पोस्ट कितने लोगों तक पहुंचेगी, लेकिन यह सच्चाई या महत्व पर नहीं, बल्कि लाइक, शेयर और कमेंट की संभावनाओं पर निर्भर करता है। सार्थक मुद्दे नजरअंदाज हो जाते हैं,जबकि मनोरंजक या विवादित पोस्ट ज्यादा फैलती हैं। इससे लोगों को लगता है कि उनकी बातों का कोई मतलब नहीं है,और वे जरूरी विषयों पर चर्चा करना छोड़ देते हैं। लेखक सुझाव देते हैं कि सार्थक संवाद के लिए सोशल मीडिया पर निर्भर न रहें और सीधे लोगों तक अपनी बात पहुंचाएं।

सातवें कारण है कि “सोशल मीडिया आपकी सहानुभूति की क्षमता को नष्ट कर रहा है” । यह हमें दूसरों की भावनाओं को समझने से दूर कर रहा है। असली जिंदगी में हम दूसरों की प्रतिक्रियाओं से प्रभावित होते हैं,लेकिन सोशल मीडिया पर हर किसी को अलग-अलग जानकारी मिलती है। जब लोग केवल अपनी पसंद की चीजें देखते हैं, तो वे दूसरों की भावनाओं और अनुभवों को समझ नहीं पाते। इससे सहानुभूति की भावना कम हो जाती है और ऑनलाइन बातचीत में लोग बिना सोचे-समझे कटु शब्दों का इस्तेमाल करने लगते हैं। लेखक कहते हैं कि सोशल मीडिया हमें जोड़ने के बजाय अलग-थलग कर रहा है, जिससे समाज में भावनात्मक दूरी बढ़ रही है।

आठवां कारण है कि “सोशल मीडिया आपको दुखी कर रहा है” । इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि उपयोगकर्ताओं को लगातार तुलना और सामाजिक स्थिति की होड़ में फंसा देता है। इससे दुख और तनाव बढ़ता है। इसमें झूठे मानक होते हैं, जैसे सुंदरता और सामाजिक प्रतिष्ठा के फर्जी पैमाने, जिससे लोग खुद को कमतर महसूस करने लगते हैं। ट्रोलिंग और ऑनलाइन उत्पीड़न मानसिक तनाव बढ़ाते हैं। सोशल मीडिया के एल्गोरिदम भावनात्मक हेरफेर करते हैं, जिससे नकारात्मक भावनाएँ दबने के बजाय बढ़ती हैं। सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताने से असली जिंदगी के रिश्ते, बातचीत और अनुभव कम हो जाते हैं। लोग असली खुशी की बजाय वर्चुअल दुनिया में खुशी तलाशने लगते हैं,जिससे उनकी मानसिक स्थिति प्रभावित होती है।

नौवां कारण है कि “सोशल मीडिया आपकी आर्थिक गरिमा छीन रहा है” । इनकी कंपनियां हमारे डेटा और ध्यान का उपयोग करके अपना मुनाफा बढ़ाती हैं, लेकिन हमें इसका कोई सीधा लाभ नहीं मिलता। हमारी मेहनत,समय और बातचीत उनके लिए सिर्फ एक व्यापारिक वस्तु बन जाती है जिससे वे विज्ञापनों के जरिए पैसे कमाते हैं। जो पोस्ट ज्यादा लोगों तक पहुंचती हैं,वे आमतौर पर वे होती हैं जिनके लिए पैसे दिए गए होते हैं। अगर आप कोई पोस्ट फ्री में डालते हैं,तो वह कम लोगों तक पहुंचेगी, लेकिन पैसे देकर प्रमोट करने पर वह ज्यादा लोगों तक जाएगी। यानी,सोशल मीडिया कंपनियां हमारी मेहनत से कमाई करती हैं,लेकिन हमें उसका उचित हिस्सा नहीं मिलता।

और अंतिम कारण है कि “सोशल मीडिया राजनीति को असंभव बना रहा है” । सोशल मीडिया ने युवाओं को सच्चे लोकतंत्र से दूर कर दिया है। यहां सच्चाई के बजाय झूठी खबरें और विवादित बातें अधिक वायरल होती हैं। इससे युवा धीरे-धीरे राजनीति और लोकतंत्र पर भरोसा खो रहे हैं। मिस्र में तहरीर चौक पर युवाओं ने तानाशाही सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया। लेकिन क्रांति के बाद अधिकांश प्रदर्शनकारियों को रोजगार नहीं मिला,और कट्टरपंथी समूहों ने सत्ता पर कब्जा कर लिया। सोशल मीडिया ने क्रांति का भ्रम तो पैदा किया,लेकिन स्थायी बदलाव का रास्ता नहीं दिखाया। सोशल मीडिया ने राजनीति के सही तरीके से काम करने में रुकावट पैदा कर दी है। यह झूठ,नफरत और बंटवारे को बढ़ावा देता है।

निश्चय ही लेखक ने जो कारण बताएं हैं उससे इंकार नहीं किया जा सकता, लेकिन फिर भी इसकी महत्ता को भी ख़ारिज नहीं किया जा सकता। आज यह आम लोगों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन का बड़ा श्रोत भी है। इसके संतुलित और विवेकपूर्ण प्रयोग का सुझाव दिया जाना अधिक सार्थक होगा, न कि इसका परित्याग कर दिया जाना।

संदर्भ: जेरॉन लेनियर, टेन आर्ग्युमेंट्स फॉर डिलीटिंग योर सोशल मीडिया अकाउंट्स राइट नाउ, हेनरी हॉल्ट एण्ड कंपनी न्यू यॉर्क, 2018, पृष्ठ 160.

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