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मोदी जी के ये “विकास” “सेवा” “सुधार” और “उत्थान” के अभियान, गजब के

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मुनेश त्यागी 

     भाजपा के सारे कार्यकर्ता आज उत्साह से लबरेज हैं, गजब की खुशी और मुस्कुराहट उनके चेहरे पर छाई हुई है। हो भी क्यों न? भाजपा ने सारे अंदाजों के खिलाफ मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव बंपर मेजोरिटी से जीत लिए हैं। इनमें प्रधानमंत्री मोदी के उस वक्तव्य का भी काफी बड़ा योगदान रहा है जिसमें उन्होंने कहा था कि “मेरे लिए सबसे बड़ी चार जातियां हैं,,,, 1.युवा, 2.महिलाएं, 3.गरीब और 4.किसान। मेरा मकसद इन चारों का उत्थान और इनका जीवन स्तर सुधारना है। इनका भला हो जाएगा तो सबका भला हो जाएगा।”

      गौर से देखा जाए तो “उत्थान” शब्द मोदी और भाजपाइयों के लिए मात्र एक जुमला बनकर ही हमारे सामने मौजूद हैं। मोदी सरकार का पिछले नौ साल का रिकार्ड देखा जाए तो वहां निराशा के अलावा और किसी चीज के दर्शन नहीं होते हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, भ्रष्टाचार, महंगाई, न्याय, बेरोजगारी और जन विरोधी नीतियां आज पूरे देश की जनता के सामने हैं। आज हमारे देश की जनता को और ज्यादा जागरूक होने की बहुत बड़ी जरूरत पैदा हो गई है।

    भारत में करोड़ों करोड़ों मजदूर हैं जो अपनी आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से आजकल लगभग गुलामी के जाल में फंस गए हैं।ये सब मोदी जी की किसी भी जाति में शामिल नही हैं। हमारे देश में 85% मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं मिलता है। सैकड़ो मजदूर कानूनों के मौजूदगी के बावजूद भी अधिकांश मजदूर, आज सबसे ज्यादा शोषण और अन्याय के शिकार बनकर रह गए हैं और इन्हें न्याय मिलने के लगभग सभी रास्ते मोदी सरकार ने बंद कर दिए हैं। सरकारी लापरवाही के कारण वे आधुनिक गुलाम बनकर रह गए हैं।

      किसानों के “सुधारों” पर एक नजर डालना बहुत जरूरी है। भारत के अधिकांश किसानों को अपनी फसलों का वाजिब दाम नहीं मिलता। हजारों कोशिशें और संघर्षों के बाद सरकार इस और कोई ध्यान नहीं दे रही है। हां वह किसानों को गुलाम बनाने के लिए चार कृषि कानून जरूर लाई थी जिन्हें मजदूरों ने बहुत बहादुराना संघर्ष करके, सरकार को वापस करने पर मजबूर कर दिया था।

     सरकार ने जन विरोधी नीतियां अपना कर जनता के जीवन में इतना “सुधार” किया कि पिछले 4 सालों 2017 से 2021 के बीच 7, 20, 611 लोगों को बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी और शोषण के कारण आत्महत्या करने को मजबूर होना पड़ा है। यानी इन चार सालों में ही प्रतिदिन 65 किसानों मजदूरों गरीबों महिलाओं और बेरोजगार और नौजवानों को मौत को चुनना पड़ा है।

      न्याय व्यवस्था में गजब का “सुधार” हुआ है। आज भारत में 10 करोड़ से ज्यादा मुकदमें विभिन्न अदालतों में पेंडिंग हैं। मुकदमों के अनुपात में अदालतें, जज, बाबू, पेशकार और स्टेनो नहीं हैं। आज दुनिया में भारत के वादकारियों को सबसे ज्यादा अन्याय का शिकार होना पड़ रहा है। “सुधार” के नाम पर मोदी सरकार और भाजपा की राज्य सरकारों ने सस्ते एवं सुलभ न्याय के विचार को ताक पर ही रख दिया है और संविधान के आवश्यक प्रावधानों को मिट्टी में मिला दिया है।

      स्वास्थ्य सेवाओं में भी गजब के “सुधार” देखने को मिल रहे हैं। पिछले 9 सालों में मोदी सरकार ने कोई भी एम्स या सरकारी अस्पताल का निर्माण नहीं किया है, डॉक्टर और स्टाफ की भारी कमी है। बीमार लोगों और उनके परिवार जनों को 24 24 घंटे पहले सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए लाइनों में लगने को मजबूर होना पड़ रहा है। इस सर्वव्यापी समस्या को सुलझाने के लिए मोदी सरकार के पास कोई एजेंडा या समाधान नहीं है, बल्कि जनता को मुफ्त इलाज देने की सरकार की कोई मनसा ही नहीं है और गरीबों को प्राइवेट अस्पतालों में लूटने के लिए बुरी तरह से मजबूर कर दिया गया है। हालात यहां तक बिगड़ गए हैं कि मोदी की पूरी की पूरी भाजपा लुटेरे डॉक्टर और अस्पतालों के साथ खड़ी होकर, उनके साथ लामबंद हो गई है।

     युवाओं को दी जाने वाली “सेवाओं” में मोदी सरकार का बहुत बड़ा हाथ है। 32 करोड लोग बेरोजगारी के महा जाल में फंस गए हैं जो दुनिया में सबसे बड़ी संख्या है। हर साल 2 करोड़ नौकरियां का वायदा करने वाली मोदी जी के पिछले 9 साल में केवल 7 लाख 22,311 लोगों को ही सरकारी नौकरियां मिली है जबकि करोड़ों पद खाली पड़े हुए हैं। नौकरियों का आवेदन करने वालों की संख्या 22 करोड़ 6 लाख से भी ज्यादा हो गई है।

     महंगाई ने लोगों का इतना “भला” किया है कि लोग बेहाल हो गए हैं। महंगाई का रुतबा देखिए कि धन्ना सेठ अपनी कमाई का केवल 12% ही खाने पर खर्च करते हैं, जबकि जिंदा रहने के लिए आम आदमी रूखी सूखी रोटियां से पेट भरने के लिए, अपनी आमदनी का 53% खाने पर खर्च करके,  जीने को मजबूर हो गया है।

     मोदी राज ने जनता की इतनी जोरदार “सेवा” की है कि पिछले 6 सालों में ही भारत के धरना सेठों के 11 लाख करोड़ से ज्यादा के लोन बट्टे खाते में डालकर, भारत के बैंकों को बीमार होने के कगार पर पहुंचा दिया है। यह संख्या अब 25 लाख करोड़ से भी ज्यादा पहुंच गई है। जबकि 2004 से 2014 तक दस वर्षों में धन्नासेठों की लोन माफी की राशि 2 लाख 22 हजार करोड़ थी। लाखों करोड़ों का लोन न चुकाने वाले “विल्कुल डिफॉल्टरों” की संख्या 15000 से भी ज्यादा हो गई है। 14 धनपशु लोग करोड़ों अरबों का लोन लेकर, देश छोड़कर ही भाग गए हैं और चौकीदार उनका मुंह देखता ही रह गया।

       मोदी जी के राज में एक और गजब के “उत्थान” ने जन्म लिया है। इस उत्थान में 81 करोड गरीब लोग कंगाली के महासमुद्र में समा गए हैं। सरकार ने इन 81 करोड लोगों को रोजगार देने के कोई योजना नहीं बनाई है। इसे मोदी सरकार की महान उपलब्धि ही कहा जाएगा। इस महान उत्थान के बाद भी दुनिया में सबसे ज्यादा लोग भारत में गरीबी की रेखा के नीचे रहने को मजबूर हैं।

       पिछले 9 वर्षों के दौरान भारतीय जनता पार्टी का गजब का “विकास” हुआ है। उसके हर जिले में फाइव स्टार ऑफिस बन गए हैं। दिल्ली में भाजपा का सबसे बड़ा आधुनिक सुख सुविधाओं से संपन्न फाइव स्टार ऑफिस बनकर खड़ा हो गया है।

      भाजपा की आर्थिक स्थिति के “उत्थान” के तो कहने ही क्या? भाजपा की घोषित संपत्ति 2017 में 1213 करोड़ की थी, जो वर्ष 2020 में बढ़कर लगभग 5000 करोड़ हो गई और आज यह संपत्ति बढ़कर 8000 करोड़ से भी ज्यादा हो गई है।

        मोदी जी के आर्थिक “विकास” की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। इस आर्थिक विकास की रफ्तार इतनी तेज है कि भारत के एक प्रतिशत अमीरों के पास भारत की 51% संपत्ति का हिस्सा है। 10 परसेंट अमीरों के पास 27% राष्ट्रीय संपत्ति का हिस्सा है और शेष 90% लोगों के पास राष्ट्रीय संपत्ति का केवल 22% हिस्सा है। भारत में लगातार बढ़ती आर्थिक असमानता का यह विकास, दुनिया में अमीरी गरीबी के असमान विकास का सबसे बड़ा उदाहरण है। बलि बलि जाऊं इस “विकास मोडल” पर।

      मोदी जी के ये “विकास” “सेवा” “सुधार” और “उत्थान” के अभियान, गजब के अभियान हैं। जोर-शोर से चलाये जा रहे इन अभियानों के बाद भी इनसे भारत की करोड़ों करोड़ आम जनता का कोई विकास, सेवा, सुधार या उत्थान नहीं हुआ है। इसलिए भारत के करोड़ों करोड़ किसान मजदूर भाइयों, इन जुमलेबाज उत्थानकारों से बचकर रहना, सावधान रहना। याद रखिएगा कि अब तो इन “उत्थानों” की और ज्यादा तेज आंधी चलेगी।

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