सुसंस्कृति परिहार
पिछले तीन दिसम्बर को आए तीन विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को मिली तथाकथित हार से कांग्रेस में घबराहट और बैचेनी बड़े पैमाने पर दिखाई दे रही है छोटे बड़े कार्यकर्ता और मतदाता भी निराश नज़र आ रहे हैं।निराश होना स्वाभाविक है जब इस बार कांग्रेस के तमाम कार्यकर्ताओं ने बड़े मनोयोग से चुनाव में काम किया हो,सभी अखबारों और चैनलों ने कांग्रेस के पक्ष में माहौल को रेखांकित किया हो तमाम ज्योतिषि और बुद्धिजीवी इस बार बदलाव की लहर देख रहे हों तब आए, ये परिणाम नज़र अंदाज़ नहीं किए जा सकते।
लेकिन चालाकियों से भरे ऐसे मौके पर मनोबल कम नहीं होना चाहिए भरोसा रखिए कांग्रेस जीती है।ये ईवीएम के परिणाम है जो परिणाम आने के दो-तीन रोज़ पहले प्रायोजित किए गए।इसका असर तीनों राज्यों के नवागत चेहरों का मुख्यमंत्री होना है तथा भारी बहुमतधारियों और अनुभवियों की उपेक्षा है। यूं ही कोई सज़दा में सर झुकता नहीं है। इसीलिए नए नवेले मंत्रियों को भी मंत्रीमंडल में स्थान दिया गया है। सिर्फ एक चेहरा सब पर भारी पड़ा और इसकी वजह साफ़ है ईवीएम की डोर चुनाव आयुक्त याने कठपुतली को वहीं एक चेहरा मन मुताबिक नचा रहा है। उसे अच्छी तरह मालूम है कौन कैसे जीता है इसकी पुष्टि इस बात से भी हो जाती है कि चुनाव आयोग के आयुक्त की चयन कमेटी से सीजेआई को सदन में प्रस्ताव पास कर हटाया गया है।संसद में आवाज़ ना उठे इसलिये 141से अधिक सांसदों का निलंबन सत्रावसान तक किया गया।ईवीएम के ख़िलाफ़ मध्यप्रदेश से 15,000 से अधिक शिकायतें सुको में पहुंची है इसीलिए जल्द से जल्द आमचुनाव की बेचैनी भी इस चेहरे को है वह तो अपने समय से होने ही थे। शायद इसलिए जल्दबाजी है कि जनता-जनार्दन के बीच एक चेहरे का भ्रम बना रहे। आंतरिक संघर्ष उभर ना पाए साथ सी सर्वोच्च न्यायालय ईवीएम पर बैन ना लगा दे।इतने भारी बहुमत के बीच यह बैचेनी भी बहुत कुछ सवाल उठाती है।
बहरहाल कांग्रेस के अंदर हार के मंथन का सवाल ही नहीं उठता। ये सच है कि जितनी मज़बूती और ताकत से कांग्रेस ने इस बार चुनाव लड़ा उतना शायद कभी नहीं लड़ा गया।जन जन की कांग्रेस के प्रति रूझान देखकर इस बार बड़े पैमाने पर भाजपा से दलबदल कांग्रेस की ओर हुआ। कांग्रेस की ताकत बढ़ी है घटी नहीं है। ये हौसला टूटे ना इस बात की फ्रिक होना चाहिए। ईवीएम के ख़िलाफ़ जन आंदोलन बहुत ज़रूरी है।जब चुनाव परिणाम ही ग़लत मिलें तो चुनाव का कोई मतलब नहीं। इसलिए संपूर्ण ताकत यहीं झोंकनी चाहिए।कुछ परिवर्तन जो हुए हैं वो ठीक है किंतु जिनकी चुनावी भूमिका पर संदेह किया जा रहा है वह ग़लत है इससे उलझनें बढ़ेंगी और चुनाव का काम पिछड़ जाएगा।यही वह चेहरा चाहता भी है।
किसी ने क्या ख़ूब कहा है मन के हारे हार है मन के जीते जीत।मन को मज़बूत रखकर ही कार्यकर्ताओं को जनता के बीच उतरना पड़ेगा। सिर्फ एक लक्ष्य ईवीएम हटाओ।यह सिर्फ ‘इंडिया’ की सामूहिक पहल से यह संभव नहीं है जन सहयोग के साथ यदि यह आव्हान हो तो आंदोलन को मज़बूती देगा।हम जीते हैं, जीतेंगे यह नारा भी सहभागी हो सकता है। ये अंधेरा छटेगा मगर एक भरपूर कोशिश की दरकार है। हारिए ना हिम्मत।