राकेश अचल
अठारहवीं लोकसभा में यद्यपि सरकार को पहले ही दिन विपक्ष के तेवरों का सामना करना पड़ा है ,लेकिन विपक्ष को भी याद रखना चाहिए कि 2024 में भाजपा के नेतृत्व में तीसरी बार गठबंधन की सरकार बनी है और इसकी अगुवाई प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी कर रहे हैं । ये सरकार अटलबिहारी बाजपेयी की सरकार नहीं है जिसे आसानी से अपदस्थ किया जा सके।
नरेंद्र दामोदर दास मोदी के नेतृत्व में तीसरी बार बनी गठबंधन की सरकार में हालाँकि भाजपा की ताकत 2014 और 2019 जैसी नहीं है ,लेकिन भाजपा की हैसियत अभी भी मरे हुए हाथी जितनी तो है ही ,यानि कम से कम सवा लाख की। इसलिए विपक्ष ये सपने देखना छोड़ दे कि इस सरकार को फूंक मार कर उड़ाया या गिराया जा सकता है। वैसे भी 2024 में देश की जनता ने भाजपा और विपक्ष को स्पष्ट जनादेश नहीं दिया है । भाजपा की ताकत कम कर उसे बैशाखनंदन बना दिया है वही विपक्ष को ताकत देकर ये संकेत दिया है कि यदि उन्हें सत्ता तक पहुंचना है तो एकता बनाये रखते हुए अगले चुनाव तक काम करना पड़ेगा ,हुलफुलाहट में विपक्ष यदि कोई कदम उठता है तो वो देश के लिए भारी पड़ सकता है।
नयी संसद के पहले ही दिन विपक्ष ने संविधान की प्रतियां लेकर जो जुलूस निकला उससे नयी सरकार भयभीत कदाचित नहीं हुई है । प्रधानमंत्री ने संसद में प्रवेश से पहले जिस तरीके से आपातकाल का पुण्य स्मरण किया है उससे जाहिर है कि न उनके सिर से कांग्रेस का भूत अभी उतरा है और न उनका देश को कांग्रेस विहीन करने का लक्ष्य ही बदला है। मोदी जी लंगड़ी-लूली सरकार के जरिये भी अपने पुराने लक्ष्य को हासिल करने के लिए वो सब करेंगे जो उन्होंने अपनी पिछली सरकारों में किया था। विपक्ष लाख संविधान की प्रतियां लहराए वो नयी सरकार के बढ़ते हुए कदमों को शायद नहीं रोक पायेगा। विपक्ष की ताकत का अंदाजा लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव में ही हो जाएगा।
नए जनादेश में सब कुछ स्पष्ट है। विपक्ष को विपक्ष की भूमिका में तब तक रहना है जब तक कि नए आम चुनाव नहीं हो जाते । कायदे से चुनाव पांच साल बाद होना चाहिए लेकिन मौजूदा सूरतेहाल में ये चुनाव कभी भी हो सकते हैं। मेरा अनुभव कहता है कि देश में नए चुनाव समय से पहले करने का फैसला विपक्ष नहीं, बल्कि मौजूदा सरकार ही करेगी। मौजूदा सरकार अगले कुछ ही महीनों में अपनी खोई हुई ताकत वापस हासिल करने के लिए शीघ्र ही आपरेशन लोटस की तर्ज पर कोई नया आपरेशन शुरू कर सकती है। नयी खिचड़ी सरकार के सामने कल भी कांग्रेस और विपक्ष निशाने पर था और आज भी है। सरकार सदन में अपने समर्थकों की मौजूदा संख्या बढ़ाने के लिए वो सब नैतिक -अनैतिक कर सकती है जो अटल बिहारी बाजपेयी नहीं कर पाए थे। अटल जी ने सत्ता बचने के लिए चिमटे का सहारा लेने से इंकार कर दिया था ,लेकिन मोदी जी चिमटा क्या प्लास तक का इस्तेमाल करने से हिचकने वाले नहीं है।
चूंकि नयी संसद का श्री गणेश कहें या विस्मिल्लाह कहें ,कड़वाहट के साथ हो रहा है ,इसलिए मुझे लगता है कि अभी देश में अदावत की राजनीती का युग समाप्त होने वाला नहीं है। आने वाले दिनों में भी ईडी और सीबीआई विपक्ष के खिलाफ उसी तरह इस्तेमाल की जाएगी जिस तरह पहले की गयी है। नयी सरकार ने भले ही संविधान की शपथ लेकर देश सेवा का वादा किया है किन्तु संविधान के दायरे में रहकर भी वो विपक्ष को नुक्सान करने से हिचकेगी नहीं। दरसल अभी मधु का छत्ता भाजपा के पास है । विपक्ष के पास जो छत्ता है उसका मधु निकाला जा चुका है या उसमें मधु भरने में अभी समय लगेगा। ऐसे में विपक्ष के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी एकता को बनाये रखने की है। सत्ता की चाशनी में विपक्ष की कोई भी मख्खी छलांग लगा सकती है।
देश के नए विपक्ष को नहीं भूलना चाहिए कि देश की तमाम संवैधानिक संस्थाओं पर अभी भी संघ के प्रचारक काबिज है। यहां तक कि न्यायपालिका भी इससे अछूती नहीं है। अनेक मामलों में आये अदालती फैसलों पर आप संघ प्रचारकों की सोच की छाप परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से पड़ती देख सकते हैं। आज भी पुरानी ईडी है जो अधीनस्थ न्यायलय से जमानत मिलने के बाद भी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जेल से बाहर नहीं आने देने के लिए ऊपर की अदालत में खड़ी हुई है। आज भी झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को किसी भी अदालत ने जमानत नहीं दी है। जाहिर है कि देश में जितनी भी संस्थाएं न्याय न्याय का फैसला करतीं हैं वे अभी भी संघ और भाजपा केप्रभाव में हैं। इन्हें विपक्ष हटा नहीं सकता हाँ, इनकी मुश्कें बाँधने के लिए दबाब बना सकता है।
देश और दुनिया ने अतीत में देखा है कि पुरानी सरकार ने किस तरह से संसद को ध्वनिमत से चलाया था और विपक्ष को रत्ती भर भाव नहीं दिया था। कल को आज भी दोहराया जा सकता है। संसद को आज भी ध्वनिमत से चलने की जुर्रत नयी सरकार कर सकती है। 1 जुलाई से देश में लागू होने वाले नए क़ानून उसी पुरानी संसद की देन हैं जिसमें विपक्ष नहीं था। आज यदि विपक्ष इन कानूनों को लागू करवाने से रोकने में कामयाब हो जाये तो माना जा सकता हैकि भविष्य में वो नई सरकार को बे-पटरी होने से रोक सकता है। अन्यथा कुछ बदलने वाला नहीं है इस देश में।
नयी सरकार को लेकर मुझे तो कोई नई उम्मीद नहीं है ,विपक्ष को हो तो हो। मुझे लगता है कि नयी सरकार पुराने ढर्रे पर ही चलने वाली है । यदि ये नई सरकार सचमुच गठबंधन की सरकार होती तो इसका कोई कॉमन मिनिमम प्रोग्राम होता। इस सरकार का एजेंडा वो ही है जो भाजपा और संघ का है। जेडीयू और टीडीपी का एकमात्र एजेंडा अपने-अपने राज्य में अपनी-अपनी पार्टी की सरकारों को बनाये रखने का है । इन दोनों बैशखियाँ प्रदान करने वाले दल भाजपा को उसके एजेंडे पर काम करने से रोकने की हैसियत नहीं रखते । ये दोनों दल विपक्ष के साथ खड़े होने का साहस भी आनन-फानन में जुटा नहीं सकते ,क्योंकि ये दोनों जानते हैं कि मोदी जी की फितरत क्या है ? वे केवल कांग्रेस की ही नहीं बल्कि टीडीपी और जेडीयू की भी सात पुश्तों की खबर रखते हैं। किसी ने उन्हें जरा भी ब्लैकमेल करने का प्रयास किया वे अपनी पर आने से नहीं हिचकेंगे। वे तभी तक नई सरकार को चलाएंगे जब तक कि भाजपा दोबारा से शक्ति हासिल नहीं कर लेती। मोदी जी को विपक्ष और देश की नहीं अपनी भाजपा की चिंता है।
बहरहाल देश के सामने तेल और तेल की धार देखने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है । नयी सरकार नए बजट में एक बार फिर मतदाताओं के सामने मुफ्त के पांच किलो अनाज जैसी और नई रेवड़ियां उछाल सकती है। तब तक सभी को संसद के तमाशे पर नजर रखना चाहिये । इस समय मनोरंजन का सबसे बढ़िया सीधा प्रसारण संसद से ही सम्भव है। अभी मदारी भी पुराण है और जमूरे भी। डमरू की धुन भी पुरानी ही है।