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मोदीजी और राहुल में यही है अंतर

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हितेश एस वर्मा

भारत के दो सबसे शक्तिशाली नेता, जिन्हें क्राउड पुलर, मास लीडर कहा जा सकता है। भाजपा के नरेंद्र मोदी 2001 से 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे, 2014 से देश के प्रधानमंत्री हैं और पूर्ण बहुमत की सरकार चला रहे हैं। यानी कुल मिला कर 24 सालों से सत्ता सुख भोग रहे हैं। 

कांग्रेस के राहुल गांधी 2009 में पहली बार अमेठी सांसद चुने गए, फिर पुनः 2014 में अमेठी से सांसद बने और 2019 में वायनाड से सांसद निर्वाचित हुए। 2009 से 2014 के बीच कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में सांसद रहे हैं तब वे उतने अनुभवी नहीं थे की सरकार में फैसले ले सकें।

कहने को हम व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के जरिए अक्सर कांग्रेस को सत्तर साल सत्ता सुख भोगने के लिए जानते हैं जिसके अंतिम वर्षों में भी राहुल को न के बराबर सुख भोगते देखा गया वहीं दूसरी ओर मोदी लगातार वर्षों से सत्ता में बने हुए हैं। यह बड़ी चौंकाने वाली बात है मोदी इतने वर्ष सत्ता सुख भोगते हुए जनता के समक्ष अपने बेचारे पन को जीवित रखने में सफल रहे।

जिस गुजरात मॉडल का हवाला देकर मोदी केंद्र की सत्ता पर काबिज हुए उस मुख्यमंत्री कार्यकाल में अधिकांश समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार रही, यानी यदि केंद्र का आर्थिक सहयोग न मिला होता तो आज गुजरात वह रोल मॉडल नहीं बन पाता जिसका हवाला देकर वे प्रधानमंत्री बन पाए हैं।

एक नेता लगातार विस्तार कर रहा है, दूसरा नेता अपनी पार्टी के सर्वाइवल की लड़ाई लड़ने के साथ ही अपनी पार्टी को आंतरिक रूप से रिवाइव करने में संघर्षरत है। सत्ता सुख और संघर्ष के पर्याय बन चुके इन दोनों ही नेताओं की राजनेतिक यात्रा सही मायने में भारतीय जनता को समझने की ज़रूरत है।

मीडिया और सरकार जितने काम होने का डंका बजाती है और यदि वाकई मोदी इतने महान नेता होते, तो आज अयोध्या स्थित राम लला की मूर्ति की पीछे छिप कर 2024 की तयारी करते क्या? और यदि राहुल वाकई पप्पू होते तो क्या वाकई सड़क पर खुलेआम घूमकर इतना जनसमर्थन जुटा पाते क्या? यह विचार करने योग्य बात है, है की नहीं?

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