~ राजेंद्र शुक्ला (मुंबई)
आकर्षक व्यक्तित्व एक अमूल्य जीवन निधि ही नहीं बल्कि शक्ति और सफलता के आकाँक्षियों के लिए नितान्त अनिवार्य आवश्यकता है।
देखने में गन्दा और अस्वस्थ व्यक्ति आचार व्यवहार में भी प्रायः वैसा ही होता है। कोई भी व्यक्ति इतना गरीब नहीं हो सकता, कि वह साफ-सुथरा न रह सके या ढंँग के कपड़े न पहन सके। इसमें कपड़ों के सस्ते या महंँगे होने का प्रश्न नहीं है, अपितु उनके पहनने के ढंँग और तरीकों का सवाल ही प्रमुख है।
स्वच्छता का प्रभाव चरित्र, शरीर व मन तथा कार्य कुशलता और आत्म-सम्मान पर बहुत अधिक पड़ता है।
स्वस्थ और स्वच्छ शरीर तथा स्वच्छ मन में गहरा और निकट का संबंध है। जिसमें एक ही कमी है, उसमें दूसरे का अभाव स्वाभाविक है।
किसी सुसंस्कृत व्यक्ति को पहचानने के लक्षण स्पष्ट हैं, वह अपने को भुलाकर दूसरों का ख्याल रखता है, वह यथाशक्ति दूसरों की मदद करता है और हर तरह के संग-साथ में अपने शिष्टाचार से पहचान लिया जाता है।
विनम्र लोग प्रसन्न भी रहते हैं। चिड़चिड़ेपन और क्रोधी प्रकृति का प्रभाव सबसे पहले स्वास्थ्य पर पड़ता है।
आत्मविश्वास की कमी, हीनता की भावना के कारण ऐसी कई आदतें बन जाती है, जिनके कारण व्यवहार अटपटा लगे लगता है, जैसे तुनक-मिजाजी, व्यंग्य करने की आदत, हाथ मलते रहना, उंँगलियों से उलझते रहना आदि।
चालढाल में चुस्ती और साफ उत्तर देने वाले व्यक्ति में सतर्कता और उज्जवल व्यक्तित्व की झलक मिलती है।
प्रत्येक व्यक्ति अपना नाम सम्मान के साथ सुनकर प्रसन्न होता है।
किसी की सम्मति को ठुकराकर आप उसकी सम्मति का ही विरोध नहीं कर रहे, बल्कि सम्मति देने वाले के स्वाभिमान और व्यक्तित्व पर, उसकी इमानदारी पर भी हमला कर रहे हैं।
किसी से कोई काम कराने का संसार में केवल एक ही उपाय है और वह है दूसरे मनुष्य को उस काम को करने की आवश्यकता का अनुभव कराना।
प्रत्येक व्यक्ति प्रशंसा पसन्द करता है। दूसरों की प्रशंसा करने की आदत डालिए और उसमें कंजूसी मत बरतिये।
लोगों में उत्साह भरने की अपनी योग्यता ही किसी व्यक्ति की सबसे बड़ी सम्पत्ति है। मनुष्य के भीतर जो कुछ ही भी सर्वोत्तम है, उसका विकास प्रशंसा और प्रोत्साहन द्वारा ही किया जा सकता है।
गुणग्राहिता हृदय से निकलती है और चापलूसी दांँतों से। गुणग्राहिता निस्वार्थ होती है और चापलूसी स्वार्थमय।