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ये कैसा अमृत महोत्सव…बलात्कारियों-हत्यारों को सम्मान, पानी पीने पर दलित बच्चे की हत्या

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15 अगस्त के दिन गुजरात में बलात्कार और हत्या के मामले में सज़ा काट रहे कैदी विशेष माफी के साथ रिहा कर दिए गए, ठीक उसके पहले प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से अपील करते हैं कि किसी न किसी कारण से हमारे अंदर एक ऐसी विकृति आयी है, हमारी बोलचाल में, हमारे व्यवहार में, हमारे कुछ शब्दों में हम नारी का अपमान करते हैं. क्या हम इससे मुक्ति का संकल्प ले सकते हैं ?

शब्दों से मुक्ति का संकल्प लोगों के बीच पहुंचा भी नहीं होगा कि बलात्कार और हत्या के केस में आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे कैदियों की मुक्ति की खबर आ गई. इनके लिए 15 अगस्त का दिन अमृत काल बन कर आएगा, यह तो अमृत की कल्पना करने वालों ने भी नहीं सोचा होगा. क्या इसी वजह से सवाल हो रहे हैं या इनकी रिहाई में कानून की अनदेखी हुई है या केवल अति उदारता बरती गई है ?

बलात्कार और हत्या के आरोप में सज़ा काटने के बाद रिहा किए जा रहे इन दस लोगों के लिए वाकई 15 अगस्त का दिन अमृत काल लेकर आया है. बाहर आकर कितनी शान से खड़े हैं, इनके चरण स्पर्श किए जा रहे हैं ताकि हत्या और बलात्कार के इन दोषियों को आशीर्वाद भी मिल सके. उसके बाद इनका स्वागत मिठाइयों के साथ भी किया गया. इतना काफी नहीं था, इसलिए महिलाओं ने टीका लगाकर स्वागत किया और बलात्कार के दोषियों ने टीके भी लगवाए.

परंपरा अपनी जगह होती है और अपराध और उससे जुड़ी मानसिकता की दुकान अपनी जगह. जेल से बाहर आकर आशीर्वाद देने वाले इन दोषियों के नाम हैं, बिपिन चंद्र जोशी, शैलेश भट्ट, राधेश्याम शाह, बाकाभाई वोहानिया, केशरभाई वोहानिया, जसवंत नाई, गोविंद नाई, प्रदीप मोर्धिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चंदाना. बलात्कार और हत्या के आरोपी को 15 अगस्त के दिन विशेष रिहाई मिले इससे 15 अगस्त का महत्व काफी बढ़ जाता है. बिल्किस के पति याकूब रसूल ने कहा है कि उन्हें पता नहीं. वे शांति की प्रार्थना करते हैं.

इंडियन एक्सप्रेस में गुजरात के अतिरिक्त मुख्य सचिव राज कुमार का बयान छपा है कि 11 कैदियों ने 14 साल की सज़ा काट ली है. कानून के हिसाब से आजीवन कारावास का 14 साल पूरा करने के बाद कैदी माफी के लिए अपील कर सकता है. उसके बाद सरकार उनकी अर्ज़ी पर विचार करती है. कैदी सलाहकार समिति और ज़िला स्तर के विधि प्रशासन के सुझावों पर योग्यता के आधार पर, कैदियों को माफी दी जाती है. यह गुजरात सरकार का पक्ष है जो एक्सप्रेस में छपा है. लेकिन एक तथ्य यह भी है कि 2019 में महात्मा गांधी की 150 जयंती के मौके पर जब कैदियों की विशेष माफी का फैसला किया तब ध्यान रखा कि ऐसे मामलों के कैदी रिहा न हो पाएं. आप PIB पत्र सूचना कार्यालय की 18 जुलाई 2018 की प्रेस रिलीज़ देख सकते हैं.

मोदी सरकार की कैबिनेट ने फैसला किया था कि किन-किन मामलों में जेल में बंद कैदियों को माफी दी जाएगी और किन किन मामलों में सज़ा काट रहे कैदियों को विशेष माफी नहीं दी जाएगी. इस आम माफी से नेताओं को बाहर रखा गया था. कहा गया था कि गृह मंत्रालय राज्यों को निर्देश जारी करेगा कि कौन-कौन लोग माफी के लायक नहीं है.

इसमें साफ-साफ लिखा था कि ये कैदी 2 अक्तूबर 2018 और 2 अक्तूबर 2019 के दिन रिहा किए जाएंगे, इनमें से कुछ चंपारण सत्याग्रह के मौके पर 10 अप्रैल 2019 को रिहा किए जाएंगे. केंद्र सरकार ने साफ किया था कि हत्या के आरोप में सज़ा काट रहे कैदियों को विशेष माफी नहीं मिलेगी. हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे कैदियों को विशेष माफी नहीं दी जाएगी. बलात्कार के मामले में सज़ा काट रहे कैदियों को विशेष माफी नहीं दी जाएगी.

हम जल्दी में यह नहीं भूल सकते कि आम माफी लीगल जस्टिस का एक अभिन्न अंग है, और इसके लिए व्यवस्था बनी हुई है, सरकारें सज़ा कम करती रहती हैं, माफी देती रहती हैं. खुद सुप्रीम कोर्ट ने अक्तूबर 2021 में कहा है कि जिन्होंने 8 साल की सज़ा काट ली है या आधी सज़ा काट ली है, उनकी माफी की अर्ज़ी पर तेज़ी से विचार होना चाहिए. इसके लिए हाईकोर्ट से डेटा भी मांगा था कि कितने ऐसे मामले लंबित हैं.

इसके बाद भी मोदी सरकार की कैबिनेट जब 2018 में आम माफी का फैसला करती है, तब इस बात का ध्यान रखती है कि संगीन अपराध के मामलों में सज़ा पाए कैदियों को आम माफी न मिले. केवल 2018 में ही नहीं, 2022 में भी. यानी वह नीतिगत रुप से सहमत नहीं है कि हत्या और बलात्कार के मामले के कैदियों को विशेष माफी दी जाए.

इस साल आज़ादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में भी कैदियों को विशेष माफी देने का फैसला किया गया है लेकिन इसमें भी संगीन मामलों में सज़ा काट रहे कैदियों को माफी की बात नहीं है. यह आदेश भी राज्यों को भेजा गया है, तब भी गुजरात सरकार ने बिल्किस बानो के केस में सज़ा काट रहे कैदियों को विशेष माफी दी है.

यह उस आदेश की तस्वीर है जो 10 जून 2022 को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के गृह विभाग के प्रधान सचिवों और जेल के प्रमुखों को जारी किया गया था. इसमें साफ साफ लिखा है कि किन किन मामलों में सज़ा काट रहे कैदियों को विशेष माफी नहीं देनी है. इसमें लिखा है कि आज़ादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में अप्रैल 2022 में गृह मंत्री ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उप राज्यपालों को इस बारे में कदम उठाने के लिए पत्र लिखा है. इसके बाद केंद्रीय गृह सचिव ने राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखा है कि जिन्हें आजीवन कारावास की सज़ा हुई है उन कैदियों को विशेष माफी न दी जाए. इस आदेश पत्र में कई तरह के मामलों का ज़िक्र है. ड्रग्स, टाडा वगैरह लंबी सूची है. इसमें बलात्कार भी शामिल है.

अब हमें याद रखना होगा कि बिल्किस बानों के केस में जिन कैदियों को विशेष माफी दी गई है, उन्होंने 1992 की नीति के तहत माफी मांगी है. कानून जिस वक्त गिरफ्तारी होती है उसी वक्त की नीति लागू होती है. तब क्यों केंद्र सरकार आम माफी की शर्तें तय करती है कि किसे माफी मिलेगी और किसे नहीं और इसे राज्य को क्यों भेजती है ? इसका मतलब क्या है ? क्योंकि हत्या और बलात्कार के मामले में जिसे आज सज़ा मिली होगी, उसे तो निश्चित ही माफी नहीं मिलेगी. ज़ाहिर है केंद्र के इस निर्देश का लाभ उन कैदियों को नहीं मिलेगा जिनकी गिरफ्तारी के वक्त कुछ और नियम थे.

इस मामले में कई कानूनी और तकनीकि पहलू होंगे इसलिए हम झट से कहने के बजाए सहज बुद्धि से सवाल कर रहे हैं कि क्या केंद्र सरकार का निर्देश बिल्किस बानों के केस में लागू होता है ? सुप्रीम कोर्ट ने तो कमेटी बनाकर विचार करने के लिए कहा था. उस कमेटी को फैसला सुप्रीम कोर्ट के हिसाब से करना था या सरकार की नीति के हिसाब से ? कोर्ट ने भी तो यही कहा था कि जो राज्य सरकार की नीति होगी उसके हिसाब से कमेटी विचार करे. अच्छा होता अगर सरकार मीडिया के सामने आती और इन प्रश्नों पर जवाब देती.

बस रिकार्ड के लिए हम बताना चाहते हैं कि भारत सरकार की संस्था ब्यूरो आफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट की वेवसाइट पर गुजरात सरकार का एक नीति-पत्र मिला है. यह 2014 का आदेश है और इसके एनेक्सचर 1 में साफ लिखा है कि बलात्कार और गैंग रेप के बाद हत्या के केस में विशेष माफी की नीति लागू नहीं होगी. यह भी लिखा है कि जिस केस में CBI ने जांच की है उस केस में विशेष माफी नहीं दी जा सकती है.

बिल्किस बानो के केस की जांच CBI ने की है बल्कि गुजरात के इस नीति पत्र में तो अनिवार्य वस्तु अधिनियम के तहत गिरफ्तार लोगों को भी आम माफी नहीं है तब फिर बलात्कार और हत्या के आरोपियों को कैसे विशेष माफी दी गई ? रेबेका जॉन कहती हैं कि फैसला अवैध नहीं है, गैर कानूनी नहीं है, मगर उचित नहीं है.

गुजरात के अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह राज कुमार के बयान के बारे में बताया था जो एक्सप्रेस में छपा है. ज़ाहिर है उन्होंने अपना बयान दिया होगा. एक्सप्रेस में छपे उनके बयान को लाइव लॉ ने भी कोट किया है.

‘जिन मानकों पर विचार किया जाता है, उनमें उम्र, अपराध की प्रकृति, कैदी का बर्ताव वगैरह शामिल है. इस विशेष केस में सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए योग्य पाया गया है क्योंकि वे अजीवन कारावास का 14 साल काट चुके हैं.’

हम फिर से बता दें कि ये वही कैदी हैं जिनकी रिहाई की यहां चर्चा हो रही है. गिनती में ये दस हैं. इन पर पांच महीने की गर्भवती बिल्किस बानों के साथ बलात्कार और उसके रिश्तेदारों की हत्या के मामले में आजीवन कारासावस की सज़ा भुगत रहे थे. इनमें से ज्यादातर ने 14 साल की सज़ा पूरी कर ली है. 15 अगस्त के दिन न सिर्फ इन्हें आम माफी मिली है बल्कि मिठाई खिला कर टीका लगाकर इनका स्वागत किया जा रहा है. जब गांधी की 150 जयंती मनाई जा रही थी तब बकायदा मोदी कैबिनेट फैसला करती है कि हत्या और बलात्कार के कैदियों को आम माफी नहीं मिलेगी. गुजरात सरकार को भी निर्देश भेजती है, फिर इसपर.अलग फैसला कैसे हुआ ?

कैदी राधेश्याम शाह ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई थी कि सुप्रीम कोर्ट गुजरात राज्य को निर्देश दे कि 9 जुलाई 1992 की नीति के तहत समय से पहले उसकी रिहाई पर विचार करे. जिस समय इन्हें जेल की सज़ा सुनाई गई थी, उस समय यही नीति मौजूद थी. अन्य कैदियों ने भी हाई कोर्ट में समय से पहले रिहाई की याचिका दी थी. लाइव ला ने लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट की बेंच जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस विक्रम नाथ के निर्देश के बाद राज्य सरकार ने गोधरा ज़िले में कमेटी बनाई गई थी. इसी कमेटी ने सर्वसम्मति से इनकी रिहाई का निर्णय दिया और राज्य सरकार ने मंज़ूर किया.

बिल्किस बानों को इंसाफ दिलाने में कई समुदाय के और कई पेशे से जुड़े लोगों ने मदद की थी मगर आज कई लोग इस भय से कैमरे पर सामने नहीं आना चाहते. तीस्ता शीतलवाड की गिरफ्तारी के कारण उनके भीतर भय फैल गया है. कुछ लोग अपने कारणों से मीडिया के सामने आना भी नहीं चाहते. दोनों बातें हैं लेकिन भय का अगर मामला है तब आप इस खबर को या इस खबर पर प्राइम टाइम के इस एपिसोड का लिंक अपनी हाउसिंग सोसायटी के व्हाट्स एप ग्रुप में शेयर करके देखिए. हाउसिंग सोसायटी में महिलाओं का भी ग्रुप होता है, आप उसी में शेयर करके देखिएगा. आपके भीतर देश के लिए कुछ करने की प्रेरणा जागेगी.

‘क्या हम स्वभाव से, संस्कार से, रोजमर्रा की जिंदगी में नारी को अपमानित करने वाली हर बात से मुक्ति का संकल्प ले सकते हैं. नारी का गौरव राष्ट्र के सपने पूरे करने में बहुत बड़ी पूंजी बनने वाला है. यह सामर्थ्य मैं देख रहा हूं और इसलिए मैं इस बात का आग्रही हूं.’

प्रधानमंत्री किस सामर्थ्य को देख रहे हैं ? अगर आपमें कोई सामर्थ्य देख रहे हैं तो आप एक काम करें. मेरा भी यही आग्रह है कि प्राइम टाइम के इस एपिसोड को हाउसिंग सोसायटी के सभी व्हाट्स एप ग्रुप में शेयर करके देखिए. नारी के सम्मान के बारे में आपकी समझ काफी व्यापक होगी. आज़ादी का अमृत महोत्सव किसका मन रहा है, हत्या और बलात्कार के कैदियों का या बिल्किस का ? बिल्किस ने इन्हें सज़ा दिलाने के लिए जो लड़ाई लड़ी वैसी लड़ाई का सामना कम लोग कर पाते हैं. आपने देखा ही कि इस मामले पर कई लोग बयान देने को राज़ी नहीं हैं तो इस हिसाब से बिल्किस का संघर्ष डर की कितनी खाइयों को पार करने का रहा होगा.

19 साल की बिल्किस पांच महीने की गर्भवती थी. दबी बिल्किस को देख लिया और उसके साथ बलात्कार किया. बिल्किस की दो साल की बच्ची थी, जिसे दीवार पर दे मारा और हत्या कर दी. उसका शव नहीं मिला. उस दिन दंगाइयों ने बिल्किस के रिश्तेदारों सहित 14 लोगों की हत्या कर दी थी. बिल्किस की मां की भी हत्या कर दी गई थी. सत्र न्यायालय में केस खारिज हो गया लेकिन बिल्किस का हौसला नहीं टूटा. उसने तय किया कि लड़ाई लड़ेगी.

इस लड़ाई में गगन सेठी, फराह नकवी से लेकर तमाम लोगों ने साथ दिया. CBI ने जो जांच की उससे आरोपियों का बचना मुश्किल हो गया था. 21 जनवरी 2008 को CBI की विशेष अदालत ने 11 आरोपियों को आजीवन कैद की सज़ा सुनाई थी. बिल्किस के साथ बलात्कार और उसके सात रिश्तेदारों की हत्या के मामले में सज़ा सुनाई गई थी.

4 मई 2017 को बांबे हाई कोर्ट ने इसी मामले में 5 लोगों के खिलाफ सज़ा सुनाई थी. इनमें दो डॉक्टर और एक IPS अफसर आर. एस. भगोरा भी थे. इन पर आरोप था कि दोषियों को बचाने के लिए सबूत बदल दिए गए थे. ये लोग सुप्रीम कोर्ट गए थे जहां से इन्हें कोई राहत नहीं मिली. IPS आर. एस. भगोरा का दो रैंक घटा दिया गया था. पदावनति मिली थी. कोर्ट ने CBI की जांच की तारीफ की थी. 2019 में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस दीपक गुप्ता ने गुजरात सरकार से कहा कि बिल्किस बानों को मुआवज़े के तौर पर पचास लाख रुपए दे, उसे नौकरी दे और घर बना कर दे. हत्या की धमकी के चलते बिल्किस बानों को 17 साल में अपना ठिकाना 20 बार बदलना पड़ा था.

वाइव्स आफ इंडिया की दीपल त्रिवेदी ने बिल्किस बानों से बात की है। इस फैसले के बार में बिल्किस ने उनसे कहा है कि वह इस ख़बर से मायूस हो गई है. इतनी मायूस कि ख़बर सुनने के बाद शाम को खाना नहीं पकाया. खाना नहीं खाया. बिल्किस ने कहा कि 2022 आ गया मगर बीस साल बाद भी उसके भीतर 2002 की सिहरन होने लगी है. उसने भय से अपना ठिकाना भी बदल लिया है. जब इन्हें सजा मिली थी, तब लगा था कि इंसाफ़ मिला है मगर रिहाई की खबर सुनकर लगता है कि इंसाफ़ नहीं खिलवाड़ हुआ है.

अब हम आते हैं राजस्थान की घटना पर. जालोर ज़िले के सुराणां गांव में एक घटना हुई है. 9 साल के इंद्र कुमार मेघवाल को उसके मास्टर छैल सिंह ने इतना मारा, इतना मारा कि उसकी आंख सूज गई और कान की नसें फट गईं. इस घटना से जुड़ी तमाम ख़बरें छप चुकी हैं, इंद्र मेघवाल के हत्या के आरोपी मास्टर छैल सिंह गिरफ्तार हो चुके हैं. जिस स्कूल में इंद्र मेघवाल को मारा गया उसका नाम सरस्वती विद्या मंदिर है.

हम चाहते हैं कि इंद्र मेघवाल की तस्वीर को लंबे समय के लिए स्क्रीन पर रहने दें ताकि आपसे एक सवाल कर सकूं. क्या आप इस तस्वीर को देखकर काग़ज़ के किसी टुकड़े पर लिख सकते हैं कि भारत विश्व गुरु है. छैल सिंह सरस्वती विद्या मंदिर के संचालक हैं. आरोप है कि इस स्कूल में एक मटकी अलग से रखी गई थी. इंद्र मेघवाल को प्यास लगी और उसने मटकी से पानी पी ली. क्या यह इतना बड़ा अपराध है कि छैल सिंह को गुस्सा आ गया और वह इंद्र मेघवाल को मारने लग जाता है ?

पानी पीना गुस्से का कारण नहीं हो सकता, गुस्से का कारण इंद्र मेघवाल की जाति ही है. उसकी जाति के कारण ही मास्टर को इतना गुस्सा आया होगा, वरना मटकी से पानी पी लेना किसी प्रकार की अनुशासनहीनता नहीं हो सकती. क्या हम नहीं जानते कि इस देश में पानी पीने के दो बर्तन होते हैं, दो कायदे होते हैं, संविधान ने खत्म कर दिया है मगर घरों में अलग-अलग रुप में अलग बर्तन का सिस्टम आज भी लागू है और उसका एक मात्र कारण जाति है. धर्म से नफरत है. इंद्र मेघवाल की हत्या इस बात का प्रमाण है कि आज भी पानी पीने का दो सिस्टम लागू है.

हम इस सच्चाई को जानते हैं लेकिन NRI अंकिल और हाउसिंग सोसायटी के व्हाट्स ग्रुप जिनका काम मोहल्ले के स्तर पर सवालों को कंट्रोल करना है, वो ऐसे सवालों पर कभी बहस नहीं होने देते. आपमें से कई दर्शक किसी न किसी हाउसिंग सोसायटी में रहते होंगे, जिसके व्हाट्स एप ग्रुप में दिन रात धर्मांध बातों को शेयर किया जाता है, क्या आप बता सकते हैं कि इंद्र मेघवाल की हत्या की घटना भी शेयर की गई है ? उसकी ये तस्वीर साझा कर लोगों ने शर्मिंदगी व्यक्ति की है ?

धर्मांधता और जातिवाद का सबसे बड़ा आधुनिक अड्डा है हाउसिंग सोसायटी का व्हाट्स एप ग्रुप. वहां जानबूझ कर जातिवाद की इन तस्वीरों की चर्चा नहीं होती क्योंकि धर्म के नाम पर नफरत की उनकी दुकान उजड़ जाएगी. क्या आप दर्शकों में से कोई भी बता सकता है कि आपकी हाउसिंग सोसायटी के व्हाट्स ग्रुप में इंद्र मेघवाल की हत्या पर बहस हो रही है, जिस तरह धर्मांधता और झूठ के तमाम मुद्दों पर होती है ?

अगर ऐसी घटनाओं के प्रति कोई समाज और देश ईमानदारी से संवेदनशील होता, उसे शर्मिंदगी हो रही होती तो ऐसा हो ही नहीं सकता था कि आज़ादी की 75 वीं सालगिरह के मौके पर इसका ज़िक्र नहीं किया जाता. इंद्र मेघवाल को जिस तरह से मास्टर छैल सिंह ने मारा है, उसका वीडियो आप देख नहीं देख सकते. इस घटना ने अगर देश को झकझोरा होता तो लाल किले से प्रधानमंत्री अपने 82 मिनट के भाषण में इसका ज़िक्र ज़रूर करते हैं। ऐसा नहीं था कि कभी लाल किले से इसका आह्वान नहीं किया गया था. 2015 के भाषण में तो उन्होंने किया ही था –

‘अगर देश की एकता बिखर जाए, तो सपने भी चूर-चूर हो जाते हैं और इसलिए चाहे जातिवाद का जहर हो, सम्‍प्रदायवाद का जुनून हो, उसे हमें किसी भी रूप में जगह नहीं देनी, पनपने नहीं देना है. जातिवाद का जहर हो, सम्‍प्रदायवाद का जुनून हो, उसे हमें विकास के अमृत से मिटाना है, विकास की अमृतधारा पहुंचानी है और विकास की अमृतधारा से एक नई चेतना प्रकट करने का प्रयास करना है.’

15 अगस्त 2015 के इस भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जातिवाद और संप्रदायवाद का ज़हर मिटाकर टीम इंडिया बनाने की बात की थी. ज़ाहिर है, सात साल में लोग वो भाषण भूल चुके हैं. अगर प्रधानमंत्री को ही याद रहता तो ज़िक्र करते हैं कि हमने टीम इंडिया बनाने की बात की थी लेकिन इंद्र मेघवाल को पानी पीने के कारण उसके मास्टर ने मार दिया, इससे लगता है कि हम टीम नहीं बना सके. अगर ऐसा करते तब पता चलता कि कम से कम से वे अपने भाषण को लेकर गंभीर हैं.

दरअसल टीम इंडिया बनाने की बात का असर होता तो तो कर्नाटक की सरकार के विज्ञापन में नेहरू को गायब नहीं कर दिया जाता और ऐसा होता तो उनकी पार्टी के ही लोग इसका विरोध करते. 2015 में टीम इंडिया की बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे थे 2022 में उस टीम की ये हालत हो गई थी कि उनकी ही पार्टी की एक सरकार के विज्ञापन में नेहरू की तस्वीर आज़ादी की टीम से बाहर कर दी गई थी.

‘क्या कभी दुनिया ने सोचा है कि सवा सौ करोड़ देशवासियों की ये Team, जब टीम बनकर के लग जाती है तो वो राष्ट्र को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाते हैं, वे राष्ट्र को बनाते हैं, वो राष्ट्र को बढ़ाते हैं, वे राष्ट्र को बचाते भी हैं, और इसलिए हम जो कुछ भी कर रहे हैं, हम जहां पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं, वह ये सवा सौ करोड़ की Team India के कारण है और टीम इंडिया के आभारी हैं.’

अगर यह देश टीम इंडिया होता तो मेघवाल को पानी पीने पर किसी को गुस्सा न आता और कोई उसकी हत्या नही करता. इंद्र मेघवाल की हत्या के आरोपी के खिलाफ कार्रवाई हो चुकी है लेकिन यह समझा जा रहा है कि जेल जाने और कोर्ट का फैसला आ जाने से ही इस घटना का इंसाफ है तो यह अधूरी समझ है. इस घटना का इंसाफ यह नहीं कि कम से कम समय में कोर्ट सख्त सज़ा सुना दे, बल्कि इसका इंसाफ यह है कि सभी स्कूलों की असेंबली में इसकी चर्चा हो. प्रिंसिपल बच्चों को बताएं कि ऐसी शर्मनाक घटना हुई है, जो नहीं होनी चाहिए मगर कहीं चर्चा नहीं हो रही है.

इंद्र मेघवाल की हत्या के विरोध में जो भी विरोध हो रहा है, उसमें शामिल लोगों से बात कर समझ सकते हैं कि कौन विरोध कर रहा है. कौन इससे आहत हो रहा है, किसका वजूद हिल गया है. आप एक सेकेंड के लिए इंद्र मेघवाल के समाज और उसके माता पिता और रिश्तेदारों की जगह रख कर देखिए, अंतरात्मा नाम की कोई चीज़ होगी तो महसूस कर पाएंगे कि वे इस दुःख को कभी झेल ही नहीं पाएंगे कि आज़ाद देश में पानी पीने के कारण 9 साल के बच्चे की हत्या कर दी गई !

राजस्थान की इस घटना पर चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए.राजस्थान सरकार ने कमेटी बना दी है, कार्रवाई कर दी है लेकिन उस राज्य में यह समस्या बेहद गंभीर है, जो न बीजेपी के राज में खत्म होती है और न कांग्रेस के राज में. धर्म के गौरव के नाम पर दरअसल जाति की इस सच्चाई को दबाया जाता है.

दलित उत्पीड़न ATROCITIES अपराध की एक अलग श्रेणी है. जब जाति के नाम पर किसी को मारा जाता है, हत्या कर दी जाती है, बलात्कार किया जाता है तब उसे ATROCITIES कहते हैं. इसीलिए ऐसे केस में जाति का ज़िक्र करना होता है. इसी 26 जुलाई को लोकसभा में सरकार ने बताया है कि अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध और उत्पीड़न के मामलों का रिकार्ड बताता है कि देश में 2017 से 2020 के बीच ऐसे मामलों में 16% की वृद्धि हुई है. इसी दौरान अकेले राजस्थान में 65% की वृद्धि हुई है.

राजस्थान में 2017 में 4238 मामले दर्ज हुई, 2020 में ऐसे मामले 7017 हुई. मई के महीने में टाइम्स आफ इंडिया में छपा है कि उत्तराखंड में अनुसूचित जाति और जनजाति के खिलाफ अपराध की घटनाओं में 35 प्रतिशत की वृद्धि हुई है पिछले तीन वर्षों में.

ज़ाहिर है हम केवल ऐसी घटनाओं को इस नज़र से देखते हैं कि कार्रवाई हुई कि नहीं हुई. चूंकि अनुसूचित जाति के वोट की आवाज़ है, इस समाज के सक्रिय कार्यकर्ता बोलते हैं तो कार्रवाई का होना कोई बड़ी बात नहीं है, राजनीतिक दबाव के असर में कार्रवाई हो जाती है, राजस्थान सरकार ने भी कार्रवाई की है लेकिन इससे जाति को लेकर समाज में जो मानिसकता है वो खत्म नहीं होती, उसमें दरार नहीं पड़ती.

कांग्रेस को अहसास हो गया है कि यह मामला इतना हल्का नहीं है. आज गहलौत सरकार के मंत्री भजनलाल जाटव, प्रदेश कांग्रेस के प्रमुख गोविंद सिंह डोटासरा, ममता भूपेश वगैरह इंद्र मेघवाल के घर पहुंचे. इसके अलावा कांग्रेस के कई नेता भी थे. राज्य सरकार ने मुआवज़े का एलान किया है मगर दलित संगठन परिवार के दो सदस्यों की नौकरी और पचास लाख का मुआवज़ा दिए जाने की मांग कर रहे हैं. सचिन पायलट ने कहा कि ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाना होगा.

राजनीति भी होगी, कार्रवाई भी होगी मगर ये न तो इंसाफ है न जाति की समस्या का हल है. जरूर त्वरित और सख्त कार्रवाई से अंकुश लगता है लेकिन किसी न किसी को इस ज़हर के खिलाफ जनता और समाज से बात करनी ही होगी. जाति की इस सोच के खिलाफ सरकारी तौर पर या राजनीतिक तौर पर कोई अभियान नहीं चलता है. तमाम जाति के लोग अपना खेमा बनाकर और संगठन बना कर केवल कार्रवाई की लड़ाई लड़ते हैं, इसे मिटाने की बात नहीं करते. फिर भी बारां अटरू से दो बार से कांग्रेस के विधायक रहे पानाचंद मेघवाल ने इस्तीफा देकर ठीक किया है. उन्होंने अपने पत्र में सही लिखा है कि –

‘प्रदेश में दलित और वंचितों को मटकी से पानी पीने के नाम पर तो कहीं घोड़ी पर चढ़ने और मूंछ रखने पर घोर यातनाएं देकर मौत के घाट उतारा जा रहा है. जांच के नाम पर फाइलों को इधर से उधर घुमाकर न्यायिक प्रक्रिया को अटकाया जा रहा है. पिछले कुछ सालों से दलितों पर अत्याचार की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं.’

जाति का ज़हर इतना पसरा है कि 11 अगस्त के डेक्कन हेरल्ड में एक खबर छपी है तमिलनाडु से. Tamil Nadu Untouchability Eradication Front (TNUEF) ने एक सर्वे कराया है. अपने सर्वे में पाया है कि जिस किसी पंचायत में दलित प्रधान हैं, उनके दफ्तर में बैठने के लिए कुर्सी नहीं है. यहां तक कि उन्हें तिरंगा फहराने की अनुमति नहीं दी जाती है. हम एक संस्था के सर्वे को रिपोर्ट कर रहे हैं लेकिन अगर यह खबर सही है तो फिर यह बीमारी केवल कार्रवाई से नहीं जाने वाली है. दिक्कत ये है कि कार्रवाई भी नहीं होती है, उसी में होती है जिसमें दबाव बनता है.

यह कुछ पोस्टर हैं जो राजस्थान की घटना के बाद सोशल मीडिया में चले हैं, जिनमें आज़ादी के अमृत महोत्सव को मृत महोत्सव का नाम दिया गया है. आप ही सोचिए कि जिस देश में मटकी से पानी पीने पर किसी बच्चे को मार दिया जाए, आप अमृत महोत्सव कह सकते हैं ? पानी ही तो अमृत है, अमृत पीने पर इंद्र मेघवाल को मार दिया गया. मैं आप दर्शकों को जानता हूं, आपको बुरा लग रहा होगा, लेकिन मैं यही बात आम लोगों के लिए नहीं कह सकता कि मैं लोगों से उम्मीद करता हूं कि वे इस पर सोचेंगे, ऐसी घटना का विरोध करेंगे. मैं चाहता तो उम्मीद की जगह भरोसा कह सकता था मगर भरोसा नहीं है. आप ब्रेक ले लीजिए.

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