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 पहला अवसर होगा, जब किसी विधानसभा के सत्र का सत्रावसान 10 माह तक नहीं हुआ

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एस पी मित्तल, अजमेर

वर्ष 2022 में राजस्थान विधानसभा का बजट सत्र फरवरी में हुआ था। लेकिन सत्र का सत्रावसान किए बगैर ही सितंबर माह में विधानसभा फिर से आयोजित कर ली। चूंकि पहले सत्र का सत्रावसान (समापन) नहीं हुआ, इसलिए सितंबर के सत्र को दूसरा चरण माना गया। अब 10 माह गुजर गए हैं,लेकिन अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने 2022 वाले बजट सत्र के समापन (सत्रावसान) की सिफारिश विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी ने नहीं की है। जबकि सरकार ने 2023 के बजट सत्र की तैयारियां शुरू कर दी है। माना जा रहा है कि 15 जनवरी के बाद बजट सत्र बुला लिया जाएगा। संवैधानिक नियम और परंपराओं के अनुसार बजट सत्र शुरू होने से पहले राज्यपाल का अभिभाषण होता है। सदन में राज्यपाल का अभिभाषण तभी होगा, जब पिछले वर्ष के सत्र का सत्रावसान हो चुका हो। सवाल उठता है कि कांग्रेस सरकार संसदीय नियमों और परंपरा के अनुरूप 2022 के विधानसभा सत्र का समापन क्यों नहीं कर रही है? जानकारों की मानें तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अभी भी अपनी सरकार गिरने का डर है। यदि सत्र का सत्रावसान किया जाता है तो फिर नए सत्र के राज्यपाल से अनुमति लेनी पड़ेगी। यानी विधानसभा सत्र राज्यपाल के निर्णय पर निर्भर हो जाएगा। राज्यपाल की अनुमति के बगैर सरकार या विधानसभा अध्यक्ष अपने स्तर पर विधानसभा का सत्र नहीं बुला सकते। सब जानते हैं कि राजस्थान में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के 91 विधायकों के सामूहिक इस्तीफे का मामला विधानसभा अध्यक्ष जोशी के पास लंबित है। इन 91 विधायकों ने अशोक गहलोत को ही मुख्यमंत्री बनाए रखने के लिए 25 सितंबर 2022 को इस्तीफा दिया था। तीन माह बाद भी अध्यक्ष जोशी ने विधायकों के इस्तीफे पर कोई निर्णय नहीं लिया है। ऐसे में राज्यपाल कलराज मिश्र विधानसभा का बजट सत्र बुलाने से पहले अध्यक्ष सीपी जोशी से 91 विधायकों के इस्तीफे पर स्पष्टीकरण मांग सकते हैं और तब राजस्थान में कोई संवैधानिक संकट खड़ा हो सकता है। हालांकि कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे के मामले में भाजपा विधायक दल के उप नेता राजेंद्र सिंह राठौड़ ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी है और कोर्ट विधानसभा अध्यक्ष जोशी को नोटिस भी जारी कर दिए हैं, लेकिन कोर्ट की अपनी प्रक्रिया है, जबकि राज्यपाल का स्पष्टीकरण मांगना विधानसभा सत्र को बुलाने से जुड़ जाएगा। यदि राज्यपाल सत्र की अनुमति से पहले 91 विधायकों के इस्तीफे पर स्पष्टीकरण अनिवार्यता लगा देते हैं तो फिर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के महत्वाकांक्षी बजट सत्र का क्या होगा? यह बजट सत्र गहलोत सरकार का अंतिम बजट सत्र होगा, क्योंकि राजस्थान में नवंबर 2023 में विधानसभा के चुनाव होने हैं। संवैधानिक उलझनों को देखते हुए ही 2022 के विधानसभा सत्र का समापन अभी तक नहीं किया गया है। हो सकता है कि 2022 के सत्र का तीसरा चरण बुलाकर 2023 का बजट सत्र बुला लिया जाए। अलबत्त संविधान के विशेषज्ञ माने जाने वाले राज्यपाल कलराज मिश्र इन दिनों सरकार और विधानसभा की गतिविधियों पर नजर रखते हुए हैं। युवा पीढ़ी को देश का संविधान पढ़ाने और समझाने के लिए मिश्र ने जयपुर में अपने सरकारी आवास  राजभवन में संविधान पार्क का निर्माण भी करवाया है।

इतिहास में पहला अवसर:

लगातार चार दफा के भाजपा विधायक और विधानसभा की प्रक्रिया के जानकार वासुदेव देवनानी ने कहा है कि यह भारत के संसदीय इतिहास में पहला अवसर है, जब किसी विधानसभा सत्र का 10 माह तक सत्रावसान नहीं किया गया है। देवनानी ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी सरकार को बचाए रखने के लिए संविधान के नियम कायदों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। कांग्रेस में चल रही गुटबाजी का ही नतीजा है कि गहलोत विधानसभा सत्र का समापन नहीं कर रही है। इससे प्रदेश के विधायकों के अधिकारों का भी हनन हो रहा है। एक सत्र में एक विधायक को 100 सवाल पूछने का अधिकार है, लेकिन एक ही सत्र को दो बार बुलाने से विधायकों को नए सवाल पूछने का  अवसर नहीं मिला। सत्र का समापन नहीं होने से तारांकित प्रश्न भी गहलोत से मांग की कि 2022 के सत्र का सत्रावसान कर 2023 के लिए नए सत्र की प्रक्रिया शुरू की जाए, ताकि विधायकों को नए प्रश्न पूछने का अधिकार मिले। 

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