भक्तों के लिए *बादल सरोज* की टिप्पणी)
अभी 20 जनवरी – जिस दिन राष्ट्रपति का पदभार लिया जायेगा – दूर है, मगर इंडियंस और एशियाईयों सहित आप्रवासियों को अमरीका से खदेड़ बाहर करने, उनके लिए जेल बनाने का ट्रम्प का पागलपन उन्माद पर है। आखिर क्यों न हो? नतीजों के बाद उसकी प्रचार टीम का दावा है कि इसी एजेंडे को आगे रखकर यह चुनाव जीता गया है।
*सनद रहे कि* :
जिन घुसपैठियों, शरणार्थियों के नाम पर आज इतना उन्माद खड़ा किया जा रहा है, यदि ये सब अमरीका में नहीं आये होते, तो डोनाल्ड ट्रम्प तो कुंवारे ही रह जाते।
उनके सभी घोषित विवाह उन स्त्रियों से हुए हैं, जो “बाहर” से आयी थीं। इवाना जेलनिकोवा चेकोस्लोवाकिया से आयी थीं, मारला मैपल्स भी शरणार्थी थी और मौजूदा पत्नी मेलेनिया ट्रम्प स्लोवेनिया से आयी शरणार्थी हैं। उनके आधा दर्जन “दोस्त” भी खांटी अमरीकन नहीं है। कोई फ्रांस से है, तो कोई अर्जेंटीना से!!
जिस रूपर्ट मुर्डोक के लोमड़ी – फॉक्स – चैनल और मीडिया समूह के दम पर ट्रम्प का नफरती अभियान चला, वह खुद ऑस्ट्रेलिया का भगोड़ा है।
इस चुनाव में ट्रम्प का खासमखास रहा उसका वित्त पोषक, ट्विटर X का मालिक नस्लवादी एलन मस्क खुद दक्षिण अफ्रीका में जन्मा, कनाडा से भागा अफ्रीकन कनाडियन अमरीकी है।
जिस स्टीव जॉब्स ने सूचना क्रान्ति के जरिये इनका वर्चस्व बनवाया, वह स्वयं सीरिया से आया शरणार्थी था।
*वैसे भी ये खांटी अमरीकन है किस चिड़िया का नाम?*
अमरीका तो रेड इंडियंस, वम्पानो आग, ज़ूनी, नवाजो, और होपी जनजातियों और चेरोकी, चोक्टाव, चिकासॉ, मस्कोगी, और सेमिनोल ऐसे ही अन्य आदिवासी कबीलों का था – बाकी सब तो ट्रम्प की भाषा में कहें, तो 500 साल के घुसपैठिये ही हैं।
*(टिप्पणीकार ‘लोकजतन’ के संपादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं। संपर्क : 94242-31650)*
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