अग्नि आलोक
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जो उतरते थे दिलो में  वो तराने किधर  गए

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सरल कुमार वर्मा

जो उतरते थे दिलो में वो तराने किधर गए
वो रंज में खुशी के बहाने किधर गए

ये रंजिशो से मोहब्बत ले जाएगी कहां तक
वो इंसानियत के सारे फसाने किधर गए

रूठना था झगड़ना था मन कसैला न था
दिलो की सफाई के नुस्खे पुराने किधर गए

जवा हो पाती नहीं नस्ले नई और वो
बिछा देते है नफरती बिसाते जिधर गए

गाते थे बेमौसम स्वदेशी की कव्वाली जो
आजकल वो कव्वाल घराने किधर गए

प्याज तक खाते न थे वो शुद्ध शाकाहारी थे
जुटे है देश को कच्चा चबाने जिधर गए

पिलाते थे जो राष्ट्रवाद की चिलम लंकाइयो
तुम्हारे राजसी फकीर झोले उठाने किधर गए

नए नए चकले खुल गए बिकता जमीर झूम के
जिन्हे है नाज हिन्द पर वो दीवाने किधर गए
सरल कुमार वर्मा
उन्नाव,यूपी
9695164945

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