शशिकांत गुप्ते
सन 1971 में प्रदर्शित फ़िल्म हाथी मेरे साथी के इस गीत को सुन रहा था। इसे लिखा है, गीतकार आनंद बक्शी ने।
जब जानवर कोई इंसान को मारे
कहते हैं दुनिया में वहशी उसे सारे
एक जानवर की जान आज इंसानों ने ली है
चुप क्यों है संसार
खुश रहना मेरे यार..
यदि कोई इंसान पशुवत आचरण करता है तो वह जानवर से क्या कम होता है?
यह गीत फ़िल्म में एक Situation मतलब प्रसंग पर लिखा है, जब एक इंसान जानवर की हत्या कर देता है।
वैसे तो फ़िल्म में जो भी दृश्य दिखाए जातें है,वे सभी बनावटी होतें हैं।
वास्तविक जीवन में यह सम्भव नहीं है। वास्तविक जीवन में वे लोग ही हिंसा का प्रश्रय देतें हैं जो मानसिक रूप से विकृत होतें है, या कायर होतें हैं।
मानव में मानवीयता जागृत हो जाती है तो उसमें आत्मविश्वास पैदा होता है। जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास पैदा होता है उसे किसी शस्त्र की जरूरत नहीं होतो है। प्रत्यक्ष उदाहरण है। मजबूती का नाम महात्म्य गांधी
हिंसा एक क्रूर प्रवृत्ति है। मानव में हिंसा का जन्म कुटिल विचारों को सुनने,पढ़ने से होता है।
महान क्रांतिकारी शहीद आजम भगतसिंह ने कहा है।
बम और पिस्तौल से क्रांति नहीं आती। क्रांति की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है
भगतसिंह ने असेंबली में बम गिरने का उनका उद्देश्य निम्न वाक्य में स्पष्ट किया है।
अगर बहरों को सुनाना है तो आवाज़ को बहुत ज़ोरदार होना होगा। जब हमने बम (असेंबली में) गिराया था तो हमारा मकसद किसी को मारना नहीं था। हमने अंग्रेजी हुकूमत पर बम गिराया था।
आवाज से तात्पर्य है। अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को निर्भीक होकर अभिव्यक्त करना ही जोरदार आवाज होती है।
कर्कश आवाज में चिंघाड़ने से कुछ हासिल नहीं होता है।
जब आदमी में इंसानियत जागती है,तब वह अपनी आलोचना करने वालों से मित्रवत व्यवहार करता है। कारण इंसानियत उसे वैचारिक रूप से परिपक्व बनाती है।
अपरिपक्वता ही अहंकार का पर्यायवाची शब्द है। अहंकारी व्यक्ति अपने अवगुणों को छिपाने के लिए, दूसरों से संवाद नहीं करता है। ऐसे व्यक्ति अपने इर्दगिर्द अपने प्रशंसकों को ही पसंद करता है। ऐसे प्रशंसक ही अंधभक्त होतें हैं।
इंसान की फितरत को गीतकार शैलेंद्रजी ने सन 1970 में प्रदर्शित फ़िल्म मेरा नाम जोकर में लिखे इस गीत की इन पंक्तियों में स्पष्ट किया है।
और इंसान
ये माल जिसका खाता है
प्यार जिस से पाता है, गीत जिस के गाता है
उसके ही सीने में भौंकता कटार है
ए भाई ज़रा देख के चलो
यही अंतर है इंसान और जानवर में।
सन 1977 के सत्ता परिवर्तन के समय लोकनायक जयप्रकाश नारायणजी ने वैचारिक क्रांति का ही आव्हान किया है।
शशिकांत गुप्ते इंदौर