एस पी मित्तल, अजमेर
द कश्मीर फाइल्स फिल्म के बारे में कुछ बुद्धिजीवियों और धर्म निरपेक्षता के झंडाबरदारों का कहना है कि यह फिल्म हिन्दू और मुसलमानों के बीच नफरत फैलाने वाली है। फिल्म में ऐसे दृश्य नहीं दिखाए जाने चाहिए थे जो हिन्दुओं पर अत्याचार के हैं। हालांकि ऐसे लोग तब चुप रहे, जब 90 के दशक में जिहादी मानसिकता के मुसलमानों ने 4 लाख हिन्दुओं पर अत्याचार किए। कश्मीर फाइल्स फिल्म के बाद जिहादियों और उनके समर्थक नेताओं के चेहरे से नकाब उतर गई है। इस फिल्म के माध्यम से कश्मीर के आतंक की जो सच्चाई दिखाई गई उस से पूरा देश वाकिफ हो गया है। लेकिन इस सच्चाई को राष्ट्रीय न्यूज चैनलों ने आगे बढ़ाया है। चैनल वाले कश्मीर घाटी के उन प्वाइंटों को दिखा रहे हैं, जहां कई हिन्दुओं को लाइन में खड़ा कर गोली मार दी गई। कश्मीर में ऐसे एक नहीं बल्कि कई पॉइंट है। जिहादियों के आतंक के आगे कश्मीर के आम मुसलमान भी खामोश रहे। 24-24 हिन्दुओं को एक साथ खड़ा कर गोली से भून दिया गया। मरे हुए व्यक्तियों को भी गोली मारी गई ताकि जिंदा रहने की कोई गुंजाइश नहीं रहे। न्यूज चैनल वाले ऐसे पॉइंट चश्मदीदों के बयानों के साथ दिखा रहे हैं। ऐसे हजारों मंदिर दिखाए जा रहे हैं जो अभी भी खंडहर बने हुए हैं। संभवत: यह पहला अवसर है, जब न्यूज चैनलों के कैमरे ऐसे पॉइंटों पर पहुंचे हैं। 90 के दशक में मंदिरों में जो ताले लगे वो आज तक नहीं खुले है। हालांकि अब आतंकवादियों का पहले जैसा भय नहीं है, लेकिन अभी भी कश्मीर के आम मुसलमान चुप हैं। अनुच्छेद 370 के हटने के बाद जिहादियों को अब घाटी में पहले जैसा संरक्षण नहीं मिल रहा है, लेकिन फिर भी जिहादी तत्व आए दिन कोई न कोई वारदात कर ही देते हैं। उन कश्मीरी मुसलमानों को भी मारा जा रहा है जो सरकार के मुलाजिम हैं। न्यूज चैनलों ने कश्मीर फाइल्स से आगे की जो सच्चाई दिखाना शुरू किया है, उससे देशवासियों को और अधिक सच जानने का अवसर मिलेगा। गंभीर बात तो यह है कि ऐसे अत्याचार आजाद भारत में हुए है। 90 के दशक में कश्मीर में जो कुछ भी घटित हुआ उससे 1947 के विभाजन के समय हुए हादसों की याद ताजा करा दी। धर्मनिरपेक्षता के झंडाबरदार कश्मीर फाइल्स फिल्म की तो आलोचना करते हैं, लेकिन चार लाख हिन्दुओं पर हुए अत्याचार पर चुप रहते हैं।