इंदौर
2020 के खत्म होने के साथ ही इंदौर को आर्थिक राजधानी बने 300 साल पूरे हो गए हैं। आज से 300 साल पहले होलकर शासकों ने कम्पेल को छोड़ इंदौर को अपना स्थानीय मुख्यालय बनाया था। करीब 253 साल पहले इंदौर होलकर रियासत में राज्य संभालने वाली देवी अहिल्याबाई होलकर के शासन से पहले 16वीं सदी के दक्षिण और दिल्ली के बीच एक व्यापारिक केंद्र के रूप में इंदौर का अस्तित्व था।
1715 में स्थानीय जमींदारों ने इंदौर को नर्मदा नदी घाटी मार्ग पर व्यापार केंद्र के रूप में बसाया था। जिले में आने वाले गांव कम्पेल में होलकर रियासत का मुख्यालय था। शहर में बढ़ी व्यावसायिक गतिविधियों के कारण 1720 में स्थानीय परगना मुख्यालय को कम्पेल से हटाकर इंदौर कर दिया गया।
मालवा पर पूर्ण नियंत्रण लेने के बाद 18 मई 1724 को इंदौर मराठा साम्राज्य में शामिल हो गया था। 1733 में बाजीराव पेशवा ने इंदौर मल्हारराव होलकर को पुरस्कार के रूप में दिया था। मल्हारराव ने मालवा के दक्षिण-पश्चिम भाग में होलकर राजवंश की नींव रखी और इंदौर को राजधानी बनाया। उनके बाद दो अन्य शासक आए। हालांकि उनका नाम उतना नहीं रहा। अहिल्या बाई ने शासन सफलतापूर्वक चलाया।
तब से अब तक… इस तरह बदलती रही राजधानी
- 29 जुलाई 1732 : बाजीराव पेशवा प्रथम ने होलकर राज्य में ‘28 और आधा परगना’ विलय किए, जिससे मल्हारराव होलकर ने होलकर राजवंश की स्थापना की। देवी अहिल्या बाई होलकर ने 1767 में राज्य की नई राजधानी महेश्वर में स्थापित की। हालांकि इंदौर व्यापारिक और सैन्य केंद्र बना रहा।
- 1818 : मराठा युद्ध के दौरान महिदपुर की लड़ाई में होलकर, ब्रिटिश से हार गए। परिणामस्वरूप राजधानी फिर से महेश्वर से इंदौर स्थानांतरित हो गई।
- 1948 : मध्य भारत के गठन के साथ इंदौर, राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी बन गया।
- 1 नवंबर 1956 : मप्र राज्य के गठन के साथ, राजधानी को भोपाल स्थानांतरित कर दिया गया।