शशिकांत गुप्ते
तीन तीन तीन। तीन तलाक़,’तीन’सौ सत्तर और तीन बिल? अब तीसरी लहर का अंदेशा भयभीत कर रहा है। तीन, तीन,और तीन के चक्कर में कहीं तीन तेरह वाली कहावत चरितार्थ न हो जाए
तीन तेरह होना का अर्थ ‘ बिखर जाना ‘ है। उक्त कहावत का वाक्य में प्रयोग इसप्रकार है- राम की वानर सेना को देख राक्षस सेना तीन तेरह हो गयी।;उक्त वाक्य का प्रयोग सिर्फ उदाहरणार्थ लिखा है। कलयुग में रामजी और राक्षस की सेना में अंतर करना और दोनोँ ओर की सेनाओं को परख पाना असंभव है।
कलयुग में कब कौन इधर से उधर और उधर से इधर हो जाएगा कहना मुश्किल ही नहीं ना मुमकिन है। छोड़ो यह सब सियासी बातें हैं।
बहरहाल मुद्दा है तीन तीन तीन का तीन बार तीन को जोड़ो तो टोटल होता है नौ। नौ का पहाड़ा ही एक मात्र ऐसा पहाड़ा है कि पहाड़े की प्रत्येक संख्या का जोड़ नौ ही होता है। नौ एक नौ, नौ दूनी आठराह 18, एक और आठ बराबर नौ,नौ त्रिक सत्ताईस 27 दो और सात नौ, इस तरह प्रत्येक संख्या का जोड़ नौ ही होता है।
एक कहावत है ढाक के तीन पात। जो व्यक्ति अड़ियल होता है, हमेशा एक सा ही रहता है, यानि वह उसके स्वयं के स्वभाव में कोई भी परिर्वतन नहीं करता है।
मानव का यही आचरण उसके अड़ियल मानसिकता का द्योतक है।ऐसा व्यक्ति दूसरों से कभी किसी मुद्दे पर बहस नहीं करता है। बहस से हमेशा घबराता ही है।घबराने का कारण ऐसा व्यक्ति हमेशा अपराध बोध से ग्रस्त ( Guilty ) रहता है।
ऐसा व्यक्ति मानसविज्ञान के अनुसार मानस रोगी होता है।
ऐसे व्यक्ति को मनोचिकित्सक से Counseling की जरूरत होती है। Counseling मतलब मनोचिकित्सक से परामर्श करना चाहिए।
मनोचिकित्सक Counseling कर व्यक्ति में जो मानसिक विकृतियां होतीं हैं, उन्हें दूर करतें है। मानव में मानवीय गुण प्रकट होने लगतें हैं।
यदि समय रहतें ऐसे मानसिक रोगी का इलाज नहीं हो पाया तो ऐसा व्यक्ति मन ही मन बातें करने लगता है।सामाजिकता से स्वयं को दूर कर लेता है।बहुत सी बार ऐसा व्यक्ति हिंसक भी हो जाता है।कारण उसके मानस पटल में संवेदनाएं क्षीण हो जाती है।
जब व्यक्ति के मानस पटल से संवेदनाएं ही क्षीण हो जाएंगी,तब व्यक्ति सिर्फ हिंसक ही नहीं क्रूर भी हो सकता है। यही सारे गुण तानाशाहों में विद्यमान होतें हैं।
तानाशाह होना मानसिक विकृति का ही तो लक्षण है।
निश्चित समयावधि में ऐसे व्यक्ति का इलाज जरूरी है।
एक महत्वपूर्ण बात है,नौ के पहाड़े का आध्यात्म में बहुत महत्व है।
यही नौ का पहाड़ नव विधा भक्ति का शाश्वत उदाहरण है। यह नव विधा भक्ति आध्यात्मिक क्षेत्र में सलग्न श्रद्धावान लोगों को समझ आएगी।
अंधभक्तों को संभवतः समझ में आएगी भी या नहीं यह बहुत ही जटिल प्रश्न है?इसे लोगों के स्वविवेक पर छोड़ देना ही उचित होगा।
शशिकांत गुप्ते इंदौर