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तीन और हस्तियों को ‘भारत रत्न’….आइये जानते हैं ‘उनके’के बारे में…

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किस्से चरण सिंह के: विधानसभा से घर पैदल जाते थे, अपना खर्च खुद ही उठाते थे; निधन के समय खाते में थे 470 रुपये

 पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने का एलान किया गया है। चरण सिंह का जन्म किसान परिवार में हुआ था। उनके साधारण स्वभाव की बात राजनीति में लोग अक्सर करते हैं।र्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न सम्मान से नवाजा जाएगा। शुक्रवार को भारत सरकार ने तीन लोगों को भारत रत्न देने का एलान किया है जिनमें चरण सिंह का नाम भी है। चरण सिंह की पहचान किसान नेता के तौर पर रही है। उन्हें किसानों का मसीहा कहा जाता था। चरण सिंह का लंबा सियासी सफर भी रहा, लेकिन सादगी उनके साथ हमेशा रही। किसान नेता के सादगी के किस्से अक्सर चर्चा में रहे हैं। 

आइये जानते हैं चरण सिंह से जुड़े कुछ रोचक किस्सों के बारे में…

विरोध के कारण कॉपरेटिव फार्मिंग नहीं लागू कर पाए थे पंडित नेहरु 
छपरौली से आने वाले नेता चौधरी नरेंद्र सिंह बताते हैं, ‘चौधरी साहब ने कभी भी अपने विचारों से समझौता नहीं किया। 1959 में नागपुर के अधिवेशन में पंडित जवाहरलाल नेहरू कॉपरेटिव फार्मिंग को लागू करना चाहते थे, मगर चौधरी साहब ने इसका खुलकर विरोध किया। अधिवेशन में ही इसके नुकसान बताए। इस किसान विरोधी बताया। प्रस्ताव पास होने के बावजूद भी पंडित नेहरु इस कानून को लागू करने का साहस नहीं जुटा पाए थे। उनका मत था कि किसान, गांव खुशहाल होंगे, तो देश खुशहाल होगा।’

जब चरण सिंह ने नहीं ली मंत्री पद की शपथ 
चौधरी चरण सिंह जमीन से जुड़े नेता थे। समझौतावादी न होने के कारण उन्हें सियासत की डगर पर काफी संघर्ष करना पड़ा। सुचेता कृपलानी और चंद्रभानु गुप्ता जैसे मुख्यमंत्रियों से चरण सिंह की नहीं बन पाई। वर्ष 1967 में चुनाव के बाद कांग्रेस ने चंद्रभानु गुप्ता को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया। चरण सिंह की शर्त थी कि दागी नेताओं को मंत्रिमंडल से बाहर रखा जाए। केंद्रीय नेतृत्व ने इस पर सहमति भी दे दी, पर चंद्रभानु ने मंत्री बनाए जाने के लिए जिन नामों की सूची तत्कालीन राज्यपाल को सौंपी उनमें वे दो चेहरे भी शामिल थे, जिन पर चरण सिंह को एतराज था। नतीजतन चरण सिंह ने मंत्री पद की शपथ ही नहीं ली। 

पैदल ही विधानसभा से घर आते-जाते
मंत्री थे नहीं सो गाड़ी कहां से होती। एक संस्मरण में जिक्र है, ‘चौधरी साहब पैदल आते-जाते, पर उनके पूर्व निजी सचिव तिलक राम शर्मा को इस पर काफी कष्ट होता। वह किसी न किसी अफसर से आग्रह कर चौधरी साहब के घर भेजते और वहां जाकर उनसे कहते, ‘चौधरी साहब! मैं उधर ही जा रहा हूं। चलिए छोड़ दूं।’ कई दिन यह सिलसिला चला तो उन्हें तिलक राम पर शक हुआ और उन्होंने सख्ती से उन्हें मना कर दिया। अब वह रोज पैदल ही विधानसभा से घर आते-जाते।

खुद के जेब से भरते थे पेट्रोल और टेलीफोन का बिल
चरण सिंह ने अपने काम और व्यवहार से आने वाली पीढ़ी के लिए मानक स्थापित किए। बात उन दिनों की है जब चौधरी चरण सिंह मुख्यमंत्री थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद वह मॉल एवेन्यू स्थित बंगले में रहते थे। एक दिन उन्होंने देखा कि घर आया रिश्तेदार किसी को फोन कर रहा है। वह उससे तो कुछ बोले नहीं, लेकिन शाम को निजी सचिव को आदेश हुआ कि बंगले पर टेलीफोन के पास एक रजिस्टर रखवा दिया जाए, जिस पर फोन करने और आने का ब्यौरा दर्ज हो।

एक पुस्तक के संस्मरण से पता चलता है, ‘निजी सचिव ने कहा, मुख्यमंत्री होने के नाते आपके व्यय की कोई सीमा नहीं है। इसलिए रजिस्टर रखवाने की कोई जरूरत नहीं लगती।’ जवाब में चरण सिंह बोले, ‘मुख्यमंत्री को असीमित अधिकार का मतलब यह तो नहीं कि सरकारी धन निजी काम पर खर्च हो।’ वह रजिस्टर रखवा कर माने। इसके बाद हर महीने रजिस्टर से मिलाकर सरकारी काम के लिए हुए टेलीफोन का बिल निकालकर शेष का भुगतान चौधरी चरण सिंह निजी खाते से करते।

निजी दौरे का खर्च अपने खाते से चुकाते थे
मुख्यमंत्री बने हुए उन्हें कुछ ही दिन हुए थे कि उन्हें एक निजी समारोह में भाग लेने जाना पड़ा। वहां से लौटकर आए तो ड्राइवर से कहा कि इसे अलग नोट कर लेना। ड्राइवर उन्हें गौर से देखने लगा तो बोले, ‘सरकारी दौरे छोड़कर निजी कार्यक्रमों में जाने पर वाहन का पेट्रोल पर होने वाला खर्च मेरे निजी खाते से चुकता किया जाएगा।’ 

निधन के समय खाते में 470 रुपये थे 
चरण सिंह दो बार मुख्यमंत्री और एक बार देश के प्रधानमंत्री रहे। लंबा राजनीतिक जीवन व्यतीत करने के बाद भी उन्होंने अपने लिए संपत्ति नहीं बनाई। दिग्गज नेता के निधन के समय उनके खाते में मात्र 470 रुपये थे।

पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के किस्से, बाबरी घटना से लेकर सोनिया के फोन कॉल की ये है कहानी

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने कांग्रेस के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय पीएम नरसिम्हा राव को भारत रत्न देने की घोषणा की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार संसद में देश की अर्थव्यवस्था को मुश्किलों से निकालकर पटरी पर लाने के लिए राव की तारीफ कर चुके हैं। हालांकि, सोनिया गांधी के कांग्रेस की कमान संभालने के बाद पार्टी ने कभी राव की उपलब्धियों का जिक्र तक करना उचित नहीं समझा।

कुछ ऐसे वाकये भी रहे हैं, जिसे लेकर कांग्रेस नेतृत्व की आलोचना होती है। पूर्व पीएम राव के निधन होने के बाद उनके पार्थिव शरीर को कांग्रेस ऑफिस में नहीं आने देना भी एक ऐसा ही वाकया था। इस वाकये का जिक्र हाल ही में देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने अपनी पुस्तक में किया है। शर्मिष्ठा ने अपने पिता प्रणब मुखर्जी के हवाले से इस बात का जिक्र किया है।

देश के पूर्व राष्ट्रपति रहे प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा ने (प्रणब, माई फादर: ए डॉटर रिमेम्बर्स) किताब में अपने पिता प्रणब मुखर्जी के हवाले से इस घटना का जिक्र किया है। उन्होंने लिखा है कि प्रणब और नरसिम्हा राव के काफी करीबी संबंध थे। लेकिन उनके दिल में एक कसक हमेशा रही कि राव के निधन के बाद सोनिया गांधी ने उनके पार्थिव शरीर को कांग्रेस दफ्तर में घुसने तक नहीं दिया था। शर्मिष्ठा ने बताया कि प्रणब इस घटना को काफी शर्मनाक बताते थे। उन्होंने कहा कि बाबा कहते थे कि यह सोनिया और उनके बच्चों के लिए बेहद शर्मनाक है। शर्मिष्ठा ने बताया कि प्रणब कहते थे कि गांधी परिवार ने राव के साथ बुरा व्यवहार किया। इसके लिए वह सोनिया को ही जिम्मेदार ठहराते थे।

पीवी नरसिम्हा राव के पौत्र एनवी सुभाष ने बताया था कि उनके दादा के शव के साथ कांग्रेस मुख्यालय पर कैसा व्यवहार किया गया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि कांग्रेस ने हमेशा नेहरू, गांधी परिवार के इतर नेताओं की अनदेखी की है खासकर स्वर्गीय पीवी नरसिम्हा राव की। सुभाष ने कहा, यह बहुत ही स्पष्ट है कि उनके पार्थिव शरीर को दिल्ली में एआईसीसी के मुख्यालय में ले जाने की अनुमति नहीं दी गई थी।

पूर्व पीएम नरसिम्हा राव पर किताब लिखने वाले विनय सीतापति ने अपनी किताब (हाफ लायन, हाउ पीवी नरसिम्हा राव ट्रांसफॉर्म्ड इंडिया) में एक वाकिए का जिक्र किया है कि पहले नरसिम्हा राव सोनिया गांधी से महीने में दो बार मिलने जाते थे। लेकिन बाद में दोनों के बीच इतनी दूरियां बढ़ गईं कि जब राव सोनिया गांधी को फोन करते, तो वे उन्हें 4 से 5 मिनट तक इंतजार करवाती थीं। उस समय राव ने अपने एक नजदीकी को बताया था कि मुझे निजी तौर पर फोन होल्ड करने पर एतराज नहीं है, लेकिन भारत के प्रधानमंत्री को जरूर है। लेकिन वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर अपनी आत्मकथा में लिखते है कि मुझे जानकारी है कि राव की बाबरी मस्जिद विध्वंस में भूमिका थी। जब कारसेवक मस्जिद को गिरा रहे थे, तब वो अपने निवास पर पूजा में बैठे हुए थे। वो वहां से तभी उठे जब मस्जिद का आखिरी पत्थर हटा दिया गया, लेकिन विनय सीतापति इस मामले में नरसिम्हा राव को क्लीन चिट देते हैं।

सीतापति लिखते हैं, नवंबर 1992 में दो विध्वंसों की योजना बनाई गई थी। एक थी बाबरी मस्जिद की और दूसरी खुद नरसिम्हा राव की। संघ परिवार बाबरी मस्जिद गिराना चाह रहा था और कांग्रेस में उनके प्रतिद्वंद्वी नरसिम्हा राव को। राव को पता था कि बाबरी मस्जिद गिरे या न गिरे, उनके विरोधी उन्हें ज़रूर 7 रेस कोर्स रोड से बाहर देखना चाहते थे। नवंबर 1992 में सीसीपीए की कम से कम पांच बैठकें हुईं। उनमें एक भी कांग्रेस नेता ने नहीं कहा कि कल्याण सिंह को बर्खास्त कर देना चाहिए।

सीतापति आगे लिखते हैं, राव के अफसर उन्हें सलाह दे रहे थे कि आप किसी राज्य सरकार को तभी हटा सकते हैं जब कानून और व्यवस्था भंग हो गई हो, न कि तब जब कानून और व्यवस्था भंग होने का अंदेशा हो, रही बात बाबरी मस्जिद गिरने के समय राव के पूजा करने की कहानी की, तो क्या कुलदीप नैय्यर वहां स्वयं मौजूद थे। वे कहते हैं कि उनको ये जानकारी समाजवादी नेता मधु लिमए ने दी थी, जिन्हें ये बात प्रधानमंत्री कार्यालय में उनके एक सोर्स ने बताई थी। उन्होंने इस सोर्स का नाम नहीं बताया। विनय सीतापति कहते हैं कि उनका शोध बताता है कि ये बात ग़लत है कि बाबरी मस्जिद गिराए जाने के समय नरसिम्हा राव सो रहे थे या पूजा कर रहे थे। नरेश चंद्रा और गृह सचिव माधव गोडबोले इस बात की पुष्टि करते हैं कि वे उनसे लगातार संपर्क में थे और एक-एक मिनट की सूचना ले रहे थे।

एमएस स्वामीनाथन: पुलिस की नौकरी छोड़कर खेती-किसानी चुनी; कृषि क्रांति के जनक बनकर उभरे

केंद्र सरकार ने भारत में कृषि क्रांति के जनक और प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न देने का एलान किया है। एमएस स्वामीनाथन ने देश में खाने की कमी न होने के उद्देश्य से कृषि की पढ़ाई की थी। दरअसल, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1943 में बंगाल में भीषण अकाल पड़ा था, जिसने उन्हें झकझोर कर रख दिया। इसे देखते हुए उन्होंने 1944 में मद्रास एग्रीकल्चरल कॉलेज से कृषि विज्ञान में बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री हासिल की। 

1947 में वह आनुवंशिकी और पादप प्रजनन की पढ़ाई करने के लिए दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) आ गए। उन्होंने 1949 में साइटोजेनेटिक्स में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने अपना शोध आलू पर किया था।

पुलिस की नौकरी छोड़कर कृषि क्षेत्र को चुना
एमएस स्वामीनाथन पर परिवारवालों की तरफ से सिविल सेवा की परीक्षा की तैयारी करने का भी दवाब बनाया गया था। स्वामीनाथन सिविल सेवा की परीक्षा में भी शामिल हुए और भारतीय पुलिस सेवा में उनका चयन भी हुआ। उसी दौरान नीदरलैंड में आनुवंशिकी में यूनेस्को फेलोशिप के रूप में कृषि क्षेत्र में एक मौका मिला। स्वामीनाथन ने पुलिस सेवा को छोड़कर नीदरलैंड जाना सही समझा। 1954 में वह भारत आ गए और यहीं कृषि के लिए काम करना शुरू कर दिया। 

एमएस स्वामीनाथन को भारत में हरित क्रांति का अगुआ माना जाता है। वह पहले ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने सबसे पहले गेहूं की एक बेहतरीन किस्म की पहचान की। इसके कारण भारत में गेहूं उत्पादन में भारी वृद्धि हुई। 

11 साल की उम्र में हो गई थी पिता की मौत
प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथ का जन्म मद्रास प्रेसिडेंसी में साल 1925 में हुआ था। स्वामीनाथन 11 साल के ही थे जब उनके पिता की मौत हो गई। उनके बड़े भाई ने उन्हें पढ़ा-लिखाकर बड़ा किया। उनके परिजन उन्हें मेडिकल की पढ़ाई कराना चाहते थे लेकिन उन्होंने अपनी पढ़ाई की शुरुआत प्राणि विज्ञान से की।

देश को अकाल से उबारने और किसानों को मजबूत बनाने वाली नीति बनाने में उन्होंने अहम योगदान निभाया था। उनकी अध्यक्षता में आयोग भी बनाया गया था जिसने किसानों की जिंदगी को सुधारने के लिए कई अहम सिफारिशें की थीं। 

स्वामीनाथन को उनके काम के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है, जिसमें पद्मश्री (1967), पद्मभूषण (1972), पद्मविभूषण (1989), मैग्सेसे पुरस्कार (1971) और विश्व खाद्य पुरस्कार (1987) महत्वपूर्ण हैं। बता दें कि पिछले साल 28 सितंबर को एमएस स्वामीनाथन का चेन्नई में निधन हो गया था। 

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