अग्नि आलोक
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बुद्धिलाल पाल की तीन कविताएं

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1. चिर-निद्रा

फासिस्ट के सिर पर
कोई सींग नही होते
दिखता है आदमी जैसा

चलना फिरना बात करना
आदमी जैसे ही
लंबे दांत नाखून भी नहीं होते हैं

धर्म साहित्य के गुटखों से
विषैले सांप्रदायिक प्रवचनों
सामंतवाद पूंजीवाद के
अमानवीयकरण जहरों से भरा

अर्ध निद्रा तंद्रा में मूर्छा में
अर्ध निर्लिप्त जांबी होता हैं
बढ़ते रहता दांत गड़ाने
तलाशते रहता मानुष गर्दने

एक दूसरे को दांतो से काटते
चिरनिद्रा में निर्लिप्त होते जाते
इस तरह पूरा देश जांबियों का
चिरनिद्रा वाला देश हो जाता है

2. भ्रमपूर्ण रीढ़

ईमानदार भी हों
डरपोंक भी हों
यह दोनो बात एक साथ

यह लेखक खुद के
प्रकटीकरण में
दुनिया के प्रस्तुतिकरण में
बहुत सिलेक्टिव होते हैं

डरे हुए खतरों से बचते हुए
लिजलिजे बहुत कुछ अंदर में
अपनी समझ की हत्या करते हुए

अपनी प्रगतिशीलता में
ऊपर ऊपर में
चिकने चुपड़े चमकीले
अंदर से खोखले होते हैं

अपनी रीढ़ में
वास्तविक रीढ़ की जगह
आभासी रीढ़ वाले होते हैं

बहुत सच निरा सच से
यह बहुत डरे हुए होते हैं
भ्रमपूर्ण रीढ़ वाले कछुआ

3. बुल्डोजर

बुल्डोजर अपनी गड़गाहट में
सांप्रदायिक है फासिस्ट है

गरीब से गरीब अमीर से अमीर
हर पढ़ा लिखा गैर पढ़ा लिखा
आंख वाले भी अंधे भी सब जानते हैं
बुल्डोजर अल्पसंख्यकों के खिलाफ
एक साजिश है युद्धक टैंक गोला बारूद है

यह उसी तरह है जिस तरह
मणिपुर में मूक रहकर चुप रहकर
आदिवासियों, ईसाइयों, कुकी, नगाओं की
सिलसिलेवार हत्या होते रहने देकर
उसमें शामिल रहना सरकार की तरह
मेवात में आग लगाने की तरह है

आदिवासी के चेहरे पर पेशाब
दलितों को घोड़ी न चढ़ने देने की तरह है
मुस्लिम ईसाई आदिवासी दलितों के लिए
न्याय नही एकतरफा उनके विरुद्ध है
बुल्डोजर वर्णवादी हिंदूवादी सांप्रदायिक है
मोदी योगी खट्टर के लेबल में फासिस्ट है

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