अग्नि आलोक
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*राजेंद्र शर्मा के तीन व्यंग्य*

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*1. हिंदू खतरे में हैं !*

अब सेकुलर वाले क्या कहेंगे? क्या हिंदू अब भी खतरे में नहीं है? क्या हिंदुओं के खतरे में होने बात सिर्फ अफवाह है, जो हिंदुओं के खतरे में होने की दुकान चलाने वालों ने फैलायी है? अगर हिंदुओं के खतरे में होने की बात कोरी गप्प है, तो वह क्या है जो हाथरस में भोले बाबा के चक्कर में हुआ है। दो-चार नहीं, दस-बीस नहीं, पूरे सवा सौ से ज्यादा लोग भीड़ में कुचलकर मारे गए हैं या नहीं। बेशुमार लोग घायल हुए हैं, सो ऊपर से। सब के सब, जी हां, सब के सब, हिंदू थे या नहीं? 

हिंदू खतरे में नहीं होते, तो क्या इतनी आसानी से, इतनी तादाद में मारे जाते? हिंदू खतरे में नहीं होते, तो क्या इतने खस्ता हाल इंतजामों के बाद भी, इतनी बड़ी तादाद में जुटते? बेशक, जुटने वाले खासतौर पर गरीब थे। नहीं, बाबा गरीब नहीं है, पर बाबा के भक्त जरूर गरीब थे। अमीर बाबा के गरीब भक्त! सही है, गरीब भी खतरे में हैं, पर हिंदू तो कुछ ज्यादा ही खतरे में हैं। गरीब भी ज्यादा हिंदू ही हैं, इसलिए यह कहना मुश्किल है कि हिंदू ही गरीब होने से खतरे में हैं या गरीब ही हिंदू होने से ज्यादा खतरे में हैं। पर खतरे में दोनों हैं।

खतरे में हैं, तभी तो उनके लिए इतने खराब इंतजाम थे। खतरे में नहीं होते, तो उनके लिए भी तो वही राजा अंबानी के बेटे की शादी के लिए मुंबई में जैसे इंतजाम कराए जा रहे हैं, उनके जैसे नहीं भी सही, उनकी उतरन के जैसे इंतजाम तो करा ही सकता था। तब न भीड़ बेकाबू होती, न भगदड़ मचती, न लोग अपने जैसों के पांवों तले कुचले जाते।

पर इंतजाम न होने से कुचले गए, इसीलिए तो कहा कि हिंदू खतरे मैं हैं। लोग भगदड़ में कुचले गए, फिर भी अगर इंतजाम होता, तो इतने नहीं मारे जाते। मगर इतने मारे गए, क्योंकि जो कुचले गए, उन्हें फौरन अस्पताल पहुंचाने के लिए एंबुलेंस नहीं थी। जो अस्पताल पहुंचा भी दिए गए, उनके इलाज के लिए साधन नहीं थे। डाक्टर थे भी, तो बिजली नहीं थी। हिंदू खतरे में नहीं होता, तो क्या अस्पतालों में ऐसी हालत होती। 

हिंदू खतरे में नहीं होता तो क्या हादसे के शिकार परिवारों को मदद देने में इतनी कंजूसी होती? हिंदू खतरे में नहीं होता तो क्या सब कुछ होने के बाद भी कार्रवाई में इतनी ढील होती? सूरज पाल उर्फ भोले बाबा उर्फ साक्षात हरि में और एफआईआर में इतनी दूरी होती? हिंदू खतरे में नहीं होता, तो हाथरस में पीड़ित परिवारों को धीरज बंधाने के लिए, सिर्फ विपक्ष के नेता राहुल गांधी की आमद होती!

मगर इससे कोई यह नहीं समझे कि हिंदू सिर्फ हाथरस और उसके आस-पास के इलाके में ही खतरे में हैं। और तो और, बारिश से भी सारे देश में सबसे ज्यादा हिंदू ही खतरे में हैं। बाढ़ और उससे हुई तबाही में मरने वालों और जैसे-तैसे कर के बचने वालों में, सबसे ज्यादा क्या हिंदू ही नहीं हैं? असम हो, उत्तराखंड हो, हिमाचल हो, यूपी हो, मध्य प्रदेश हो, और तो और, राजस्थान तक में बाढ़ में सबसे ज्यादा शामत किस की आयी है। बिहार में जो पंद्रह दिन में एक दर्जन पुल ढहे हैं, उनकी ज्यादा मार किस के हिस्से में आयी है? हिंदू ही असली खतरे में हैं!

जाहिर है कि खतरा सिर्फ जान या माल का ही नहीं होता है। खतरा चोरी का भी कम नहीं होता है ; मेहनत की चोरी का भी और सपनों की चोरी का भी। नीट में क्या हुआ? फिर नेट में भी। फिर नीट पीजी वगैरह में भी। जिन लाखों बच्चों की मेहनत से लेकर सपनों तक की चोरी हो गयी, बल्कि डाका पड़ गया, वो कौन थे? जाहिर है कि उनमें भी ज्यादा हिंदू ही थे। हिंदू खतरे में हैं, तभी तो सरकार यह कह रही है कि जो चोरी हुई भी है, इतनी बड़ी चोरी भी नहीं है कि ज्यादा कुछ करना जरूरी हो। 

पानी के भरे ताल में से यहां-वहां, किसी ने बाल्टी, किसी ने केन, किसी ने बोतल से कुछ पानी निकाल भी लिया तो क्या? ताल का पानी खराब हो गया थोड़े ही मान लेंगे। करेंगे, आइंदा चोरी रोकने के भी इंतजाम करेंगे। पानी की सुरक्षा बढ़ाएंगे। और पुलिस वगैरह लगाएंगे। सब करेंगे, बस ताल को खाली कर के दोबारा भरने को हमसे कोई न कहे। वर्ना सब गड़बड़ हो जाएगा। हर बार चोरी होगी और हर बार, दोबारा भरना lशुरू करना पड़ जाएगा। हम बार-बार कब तक इम्तहान कराएंगे? साफ है कि सबसे ज्यादा हिंदू बच्चों की मेहनत, हिंदू बच्चों के सपने खतरे में हैं, तभी तो सरकार कह रही है कि जो हुआ सो हुआ, हम अब इम्तहान दोबारा नहीं कराएंगे!

और नीट-नेट में मामूली खाते-पीते घर के बच्चों के सपने खतरे में हैं, तो अग्निवीर में उनसे भी गरीब ग्रामीण परिवारों के बच्चों के सपने। सपने, इस बेरोजगारी के जमाने में भी, टिकाऊ तरीके से अपने घर-परिवार की मदद करने के और देश के रक्षक बनकर, इज्जत की रोटी कमाने के सपने। ज्यादा तो हिंदू ही हैं, जिनके सपने अग्निवीर के नाम पर दु:स्वप्न में बदले जा रहे हैं। हिंदू खतरे में हैं ; शहादत में इज्जत तक नहीं पाने के खतरे में।

जाहिर है कि भूख में, महंगाई में, बेरोजगारी, हारी-बीमारी में, गरीबी से भी, सबसे ज्यादा हिंदू ही खतरे में हैं। बेचारे मोदी जी भी क्या करें। हिंदू हैं ही इतने ज्यादा कि खतरा कोई भी हो, कैसा भी हो, सबसे पहले, सबसे ज्यादा हिंदू ही खतरे में आ जाते हैं। और तो और, इसी चक्कर में बेचारे मोदी जी का चार सौ पार का सपना तक खतरे में आ गया, बल्कि टूट ही गया। बेकारी, महंगाई वगैरह के  और संविधान, जनतंत्र वगैरह पर खतरे से हिंदू ऐसे डरे, ऐसे डरे कि फिर मोदी जी मटन, मुगल, मंगलसूत्र, मुजरा वगैरह का खतरा दिखाते ही रह गए, पर हिंदू उनके मन-मुताबिक नहीं डरे, तो नहीं ही डरे। उल्टे मोदी जी को ही डरा दिया, बनारस में भी और बाकी देश भर में भी। वह तो नीतीश-नायडू की बैसाखियां काम आ गयीं, वर्ना गंगा मैया का दत्तक पुत्र –जाहिर है कि हिंदू– इस बार तो खतरे में पड़ ही गया था। 

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*2. अबकी बार चार सौ उस पार!*

देखा, मोदी जी ने गलत नहीं कहा था। अब की बार‚ चार सौ पार! देख लीजिए‚ हो रहा है न इंग्लैंड में चार सौ पार। हिन्दुस्तान में न सही‚ इंग्लैंड में ही सही‚ मोदी जी का कहा सच तो साबित हो रहा है ; हिन्दुस्तानी कनेक्शन वाले ऋषि सुनक का न सही‚ लेबर पार्टी वालों का ही सही, चार सौ पार तो हो रहा है। राम जी झूठ न बुलाएं‚ मोदी जी ने तो कभी नहीं कहा था कि सागर के इस पार चार सौ पार। सिर्फ चार सौ पार कहा था‚ सो‚ सात समंदर पार सही‚ पर चार सौ पार करवा तो दिया। नॉन-बायोलॉजीकल गलत नहीं हुआ करते!

पर बालक बुद्धि राहुलों को यह कोई कैसे समझाएॽ एक ही रट लगा रखी है – चार सौ पार तो क्या, तीन सौ भी पार नहीं हुए ; मोदी के रथ के पहिए‚ दो सौ चालीस की गिनती पर ही धंस गए। होगा‚ हिन्दुस्तान में दो सौ चालीस भी पार नहीं हुआ होगा‚ पर उससे क्याॽ रथ के पहिए दो सौ चालीस की गिनती पर धंस गए होंगे‚ पर उन्हें दलदल से निकालने का मोदी जी ने पहले ही इंतजाम जो कर रखा था‚ उस चाणक्यत्व का क्याॽ रथ के पहिए फंसते ही नायडू और नीतीश ने जैक लगा दिया और रथ के पहियों को दलदल से ऊपर उठा दिया कि नहींॽ मोदी जी को तीसरी बार‚ पीएम की गद्दी पर बैठा दिया कि नहीं। पिछले महीने ही इटली का चक्कर मार आने के बाद‚ मोदी जी अब रूस और ऑस्ट्रिया का चक्कर मारने जा रहे हैं कि नहीं। फिर मोदी जी को निशाना बनाकर तीन सौ भी पार नहीं होने की तानाकशी क्योंॽ मोदी जी की बात तो सच हुई है ; दिल्ली में न सही‚ लंदन में सही, अब की बार चार सौ पार हो तो रहा है। 

रही बात दिल्ली की तो – आया तो मोदी ही‚ यही तो कहा भी था। और हां! राहुलों वाली बालक बुद्धि का संबंध किस्से–कहानियों वाले बालक से कोई नहीं जोड़े‚ जिसने अहंकारी राजा से डरने से इंकार कर दिया था ; अदृश्य पोशाक में इतराते राजा को‚ भरे बाजार में नंगा कर दिया था! किस्से का बालक अगर बालक बुद्धि हुआ तो‚ राजा की बुद्धि को क्या कहेंगे! खैर! यह भी कोई न भूले कि राजा नंगा साबित हो गया‚ फिर भी राजा रहा तो राजा ही।

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*3. टप-टप, टपा-टप!*

भारत जानना चाहता है कि आखिर देश में ये हो क्या रहा है? अव्वल तो नाशुक्री पब्लिक ने चुनाव में ही भांजी मार दी। न पांच किलो मुफ्त राशन का ख्याल किया, न उज्ज्वला वाले सिलेंडर का। न पांच सौ रुपए महीने वाली किसान सम्मान निधि का ख्याल किया, न किसी पेंशन-वेंशन का। और बाकी करोड़ों को घर-शौचालय वगैरह दिलाने को तो छोड़ दो, रामलला को पक्का घर दिलाए जाने तक का ख्याल नहीं किया। मोदी जी के खुद अपने मुंह से यह याद दिलाने का भी ख्याल नहीं किया कि मेरा अन्न खाकर, वोट का आशीर्वाद नहीं दिया, तो पब्लिक के ही खाते में पुण्य नहीं चढ़ेगा! खुद राम जी की नगरी तक में हरा दिया। सरकार के नाम पर बैसाखियां पकड़ा दीं, सो ऊपर से। फिर भी बेचारे मोदी जी ने जैसे-तैसे नीतीश-नायडू को पटाकर एनडीए की ही सही, सरकार बनायी है। बैसाखी लगाकर भी दोनों पांवों पर खड़ी सरकार वाली धज बनायी है। यहां तक कि लोकसभा के स्पीकर की कुर्सी तक पिछली बार वाले ओम बिड़ला को ही थमाई है। और ओम बिड़ला ने भी विपक्षी नेताओं के माइक बंद करने से लेकर, विपक्ष की मांग पर कोई चर्चा न होने देने तक की अपनी महारत दुहराई है। और हाय इमर्जेंसी, हाय इमर्जेंसी की पुकार लगायी, सो ऊपर से। उधर भगवा सरकारों ने भी दोबारा बुलडोजरबाजी से लेकर मुसलमानों की लिंचिंग-विंचिग शुरू करायी है। मोदी जी ने भी बीच में टैम निकालकर इटली में जाकर, गोरे विश्व नेताओं से झप्पी-वप्पी पाई है। नीट के घोटाले पर मोदी जी ने चुप्पी भी लगाई है। अरुन्धती राय पर यूएपीए का मामला चलाने की दिल्ली के लैफ्टीनेंट गवर्नर से इजाजत दिलायी है।

और सबसे खास बात कि केजरीवाल की जमानत, ताबड़तोड़ काम कर के सरकार ने रुकवाई और अगला कहीं जमानत पाकर निकल न जाए, अब जेल में ही सीबीआइ ने अगले की नये सिरे से गिरफ्तारी करायी। यानी सब नॉर्मल सा लगने लगा था मोदी 3.0 वाला। लेकिन, तब तक रांची की हाई कोर्ट ने हेमंत सोरेन को जमानत देकर रिहा कर दिया। ऊपर से ये और कह दिया कि पहली नजर में सोरेन के खिलाफ कोई मामला ही नहीं बनता है! बेचारी ईडी अगर जमानत रुकवाने जाती भी, तो किस अदालत में और सीबीआइ नये सिरे से गिरफ्तारी करती भी तो कैसे? यानी इतनी मुश्किल से मोदी जी ने जो सब सामान्य-सा कराया था, उस पर अदालत ने खामखां में पानी फेर दिया। अब क्या झारखंड मोदी जी के लिए सामान्य रह पाएगा, जबकि आगे झारखंड में भी चुनाव होने हैं।

फिर भी अगर सोरेन की जमानत का ही मामला होता, मोदी जी फिर भी बात संभाल लेते। आखिर, सोरेन न सही, केजरीवाल सही, एक मुख्यमंत्री तो मोदी जी की जेल में है। कम से कम मोदी जी की जेल अब भी मुख्यमंत्री-विहीन नहीं हुई है। ये काम तो इमर्जेंसी में इंदिरा गांधी भी नहीं कर पायी थीं, जो मोदी ने हंसी-हंसी में कर दिया है! पर अयोध्या में जो पहली ही बारिश में हजारों करोड़ के राम पथ में कार समाऊ गड्ढे बन गए हैं, उनका मोदी जी क्या करें? इंद्रदेव की दुष्टता देखिए, पट्ठे ने बारिश कर के नयी-नवेली अयोध्या की दिव्यता और भव्यता की सबके सामने पोल ही खोल दी। और राम पथ के गड्ढे  तो फिर भी सडक़ पर हुए, पर भव्य राम मंदिर में जो दिव्य टपके लगे हुए हैं, उनका क्या? रामलला का अयोध्या से चुनाव हराकर पेट नहीं भरा था, जो गुजराती भव्य निर्माण के बखिया उधेड़े जा रहे हैं? हाथ पकडक़र लाने वाले से ऐसी भी क्या नाराजगी! मोदी 3.0 में कहीं यही तो सामान्य नहीं होगा यानी बैसाखियों की खटखट और हर काम में राम मंदिर वाली टप-टप, टपा-टप।              

*(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*

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