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परामनोविज्ञान अध्ययन के तीन स्वरूप

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दिव्यांशी मिश्रा 

      परामनोविज्ञान के अध्ययन के तीन प्रकार हैं–

1- दूर से किसी की विचारधारा का अनुभव या विचार का ज्ञान.

 2- भविष्य दर्शन.

 3- पूर्व ज्ञान या पूर्वाभास।

      तीनों प्रकार इन्द्रियातीत अनुभव हैं। इन्द्रियातीत अनुभव तभी होता है जब अचेतन की शक्ति कुछ विशेष मात्रा में चेतन को उपलब्ध होती है।

      परामनोविज्ञान के तीन मुख्य भाग हैं–

1- इन्द्रियातीत अनुभव.

 2- मानसिक शक्ति का बाह्य प्रकाश.

3- देहहीन व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व.

      *इन्द्रियातीत अनुभव*

इन्द्रियातीत अनुभव के सम्बन्ध में यह कहना आवश्यक है कि इस पर योग का, कुछ नशीली औषधियों एवं सम्मोहन का प्रभाव पड़ता है। इसी आधार पर इसका अनुसंधान किया जा रहा है।

      *भविष्य दर्शन*

इसके द्वारा जीवित और मृत–दोनों प्रकार के व्यक्तियों के सुख-दुःख की घटना का दर्शन किया जा सकता है।

      *पूर्वाभास*

इसके द्वारा व्यक्ति को स्वप्न या किसी अन्य माध्यम से आने वाली घटना का पूर्वाभास मिलता है।

 *मानसिक शक्ति का बाह्य प्रकाश*

 इसमें वस्तु पर मन का आधिपत्य आता है यानी मन की इच्छाशक्ति से असम्भव और अघटित को सम्भव और घटित बना देना है।

 *देहातीत यानी देहहीन व्यक्ति का प्रतिनिधित्व*

इसमें आत्मा का रहस्य सम्मिलित है। पिछले जन्म का वर्णन करना इसी के अन्तर्गत आता है।

 *दूरबोध : एक प्रत्यक्ष अनुभव*

   डॉ. विकास मानवश्री के शब्दों में : एक दिन सायंकाल के समय बेलूर मठ में बैठा हुआ था गंगातट पर मौन साधे चुपचाप। उसी समय मेरे एक सन्यासी मित्र वहां आ गये। नाम था–युक्तेश्वर चैतन्य– योग के उच्चतम अवस्था प्राप्त। बहुत बड़े अनुभवी साधक थे युक्तेश्वर चैतन्य।

      अवस्था 40 से अधिक नहीं थी। उनका व्यक्तित्व अत्यन्त आकर्षक और प्रभावशाली था। सुदूर बैठे किसी भी व्यक्ति के विचारों अथवा भावनाओं को तत्काल जान-समझ जाते थे महाशय। उनका कहना था कि इस क्रिया में योग का विशेष महत्व है।

     यहां योग से मेरा तात्पर्य है–मन और प्राण का योग। शरीर में मन अपने क्षेत्र में और प्राण अपने क्षेत्र में क्रियाशील है। अपने-अपने स्थान पर दोनों स्वयंभू शक्ति हैं लेकिन विशेष यौगिक क्रिया द्वारा मन और प्राण का योग होता है। उसके परिणामस्वरूप एक विशेष प्रकार की विद्युत चुम्बकीय तरंगों का आविर्भाव होता है जिसे वैज्ञानिक भाषा में  ‘ऐल्फा तरंग’ कहते हैं।

      ऐल्फा तरंगों की गति एक सेकेंड में एक लाख  50 हज़ार मील से भी अधिक होती है। लेकिन एक योगी के मन और प्राण की संयुक्त शक्ति के प्रभाव से ऐल्फा तरंगों की गति सूक्ष्म और अधिक तीव्र हो जाती है जिसके परिणामस्वरूप इच्छित व्यक्ति के मस्तिष्क से निकलने वाली साधारण विद्युत चुम्बकीय तरंगों से वह टकराती है और उसके माध्यम से उस व्यक्ति के भूत, भविष्य और वर्तमान–इन तीनों कालों के विचारों और भावों को ग्रहण कर तत्काल साधक के मस्तिष्क में पहुंचा देती हैं।

      साधक तत्काल यह जान-समझ लेता है कि उस व्यक्ति ने अतीत में क्या-क्या सोचा था, क्या-क्या विचार किया था और कौन-कौन-से भाव उत्पन्न हुए थे मन में। भविष्य में क्या-क्या और कैसे विचार और भाव आएंगे मन में और वर्तमान में  कौन-सा कैसा विचार चल रहा है, कौन-सा भाव उत्पन्न हो रहा है.

      {चेतना विकास मिशन)

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