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ठुमक चलत रामचंद्र ,बाजत पैजनिया….

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राकेश अचल

आज जन-गण-मन को गाने का नहीं रघुपति रघुनंदन के गीत गाने का दिन है। अयोध्या में कहीं छुप गए रामलला की वापसी का दिन है। रामलला के लिए नया मंदिर बनाया गया है। ये मंदिर राम जी को समर्पित कर उनके नवीन विग्रह में प्राण -प्रतिष्ठित करने का दिन है। हमारी समझ छोटी है इसलिए आज के दिन हमने उसे ताले में बंद कर दिया है ,अन्यथा भगवा ब्रिगेड हमें विघ्नकारी मानकर परेशान हो जाएगी । इसलिए हम भी बहुमत के साथ रघुपति ,राघव ,राजा राम गा रहे हैं।


भारत के हालिया इतिहास में आज की 22 फरवरी 2024 की तारीख राम जी की वापसी की तारीख के रूप में दर्ज की जाएगी । राम जी को वापस लाने वाले के रूप में किसका नाम दर्ज किया जाना चाहिए ,ये आप खुद तय कर लें ,क्योंकि राम जी के लिए सुना है कि लोग पांच सौ साल से लड़ रहे हैं। पांच सौ साल में हमारी कम से कम दस पीढ़ियां तो मर-खप गयीं होंगी। इन सभी को प्रभु रामजी ने रामाकार कर लिया होगा ऐसी हमारी धारणा है। राम जी भी एक धारणा हैं क्योंकिउनकी केनन कैमरे से खींची कोई छवि किसी के पास नहीं है । राम जी सबके हृदय में विराजते हैं। रामलला के रूप में उनकी छवि ठुमक चलत रामचंद्र ,बाजत पैजनिया वाली है।


भारतीय यानि सनातन यानि हिन्दू धर्म के सभी नायक मन मोहक हैं। वे साकार स्वरूप में हमारे बीच हमेशा उपस्थित रहते हैं। कोई बांसुरी बजाता है तो कोई धनुष-बाण से लैस रहता है। सबके सब धर्म की स्थापना के लिए अवतरित माने जाते है। जब-जब होई धर्म के हानि ,बाढ़ही असुर और अभिमानी तब-तब उनका अवतार होता है। इस समय भी ऐसे अवतारों की जरूरत है क्योंकि दुनिया में असुर और अभिमानी व्यक्तियों की बाढ़ आ गयी है। हमारे यहां तो एक ढूंढो तो हजार मिल जायेंगे। कहीं मंदिर में ,कहीं समुद्र तट पर ,कहीं यात्राओं में ,कहीं संसद में । जैसे हरि सर्वत्र समाना था वैसे ही अब अभिमानी व्यापक सर्वत्र समाना हो गया है।


बात राम जी की हो रही थी ,राम जी को मै बचपन से जानता हूँ । हमारे यहां राम जी हो घनश्याम जी इन सबसे बच्चों का परिचय बचपन में ही करा दिया जाता है ,ताकि वे भूलें-भटकें नहीं। मैंने कक्षा 5 में ही राम जी के चरित्र यानि रामचरित मानस पर एक अखिल भारतीय प्रतिस्पर्धा में द्वितीय स्थान हासिल कर लिया था। तब से रामजी मेरे आगे और मै राम जी के पीछे हूँ,लेकिन कोई ऐसा मानता नहीं है। सब मुझे रष्ट्रद्रोही और रामद्रोही मानते हैं,,क्योंकि मै रामजी के भक्त होने का ढिंढोरा नहीं पीटता । ताली-थाली नहीं बजाता। उनके नाम की पत्रकारिता नहीं करता । ऐसा करने से मुहे राम जी ने ही रोका। वे कहते हैं कि हर कार्य की मर्यादा है ।

राजनीति की भी। राम जी अपने आपको राजनीति में घसीटे जाने के खिलाफ हैं ,किन्यु दुर्भाग्य ये की वे अब सरयू में समाधि लेकर दोबारा अवतार नहीं लेना कहते । वे लोगों के हृदय में ही रहकर सब तमाशा देखते रहते हैं।
बहरहाल आज की तारीख की बात हो रही थी । आज की तारीख शुभ है या अशुभ ये तारीख निकालने और निकलवाने वाले जाने। हमें तो राम के स्मरण का हर क्षण शुभ ही लगता है। हम जब थके-मांदे या अवसाद में दीर्घ स्वांस लेते हैं तो मुंह से राम-राम या राधे-राधे ही निकलता है। भले ही हमारी राजनीतिक विचारधारा में ये दोनों कम ही बहते हैं। राम जी के नए भवन के लिए कितने करोड़ ,कहाँ से आये इसके बारे में देश की कोई ईडी,सीबीआई किसी न्यास या न्यासी से नहीं बूझ सकती । बूझना भी नहीं चाहिये । ये धर्म की अवमानना होगी । हम देश के सुप्रीम धर्मात्माओं की यहां तक की सुप्रीम कोर्ट की अवमानना कर सकते है। करते हुए देख सकते हैं, किन्तु धर्म की न अवमानना ना करते हैं और न करते हुए देख सकते हैं।


हमने 22 फरवरी की पूर्व संध्या पर अपने मुहल्ले के मंदिर में आयोजित सामूहिक भोज में सपत्नीक हिस्सा लिया। रामप्रसाद पाया और हम अपने आपको तरा हुआ अनुभव कर रहे हैं। हमारे यहां कोई भी शुभ कार्य हो हम सामूहिक रूप से जब तक खा-पी नहीं लेते हमारा मन तृप्त नहीं होता। हमारी कोशिश होती है कि हम दुनिया को सामाजिक रूप से दुर्बल न दिखाई दें । किसी को ये पता नहीं चलना चाहिए कि राम-कृष्ण की इस भूमि पर आज भी 80 करोड़ लोगों के पास काम नहीं है । काम नहीं है तो खाना कहाँ से खाएं बेचारे । रामनामी सरकार को ये व्यवस्था करना पड़ती है। मान लीजिये देश में रामनामी सरकार नहीं होती ,कोई और सरकार होती तो उसे भी ये इंतजाम तो करना ही पड़ता। क्योंकि तमाम सरकारें एक जैसी ही होतीं है। कोई धर्म के नाम पर चलती है तो कोई धर्मनिरपेक्षता के नाम पर। धर्म शब्द दोनों में बाबस्ता रहता है।


आज चूंकि देश की बहु संख्यक आबादी खुश है इसलिए हम भी खुश हैं। शेष जो आबादी खुश नहीं है,या भयभीत है या आशंकित है ,हम उसके साथ कैसे खड़े हो सकते है। खड़े होना भी चाहेंगे तो कम खड़े हो जायेंगे। आज का दिन तो रामजी के नाम है। हमें क्या पूरे देश को लग रहा है कि देश में रामराज आ गया है। रामजी जब राजा थे तब उन्हें एक सुविधा थी कि राज चलने के लिए उनके सामने कोई संविधान नहीं थी । कोई अदालत नहीं थी । कोई अधिकरण ,ईडी,सीबीआई नहीं था । हर काम अपने पुरषार्थ से करना पड़ता था। धुनष भंजन किया तो अपनी दम पर। वनवास काटा तो अपने बूते ।

असुरों और बाली जैसे अधमों को मारा तो खुद मारा। कोई कोर्ट कचहरी नहीं। समुद्र पर पुल बनाया तो खुद बनवाया। लंका जीती तो खुद जीती। बिभीषन को राजतिलक किया तो खुद किया । भरत से पादुका राज चलवाया तो खुद किया। इसमें किसी और की कोई भूमिका नहीं रही।


आज के राम राज में अदालतें हैं,संविधान है ,लोकतंत्र है ,विपक्षी दल हैं। अंतर्राष्ट्रीय संबंध हैं ,दबाब हैं ,दैहिक दैविक ताप हैं जो बुरी तरह से घर-घर में नेताओं की तरह व्यापे हुए हैं। आज के राम राज में लोकलाज से ज्यादा लोकतंत्र की चिंता करना पड़ती है ,हालाँकि हमारे यहां रामराज वाली सरकारों ने बुलडोजर संस्कृति विकसित करने का प्रयास किया है ,लेकिन उसे ज्यादा कामयाबी नहीं मिल रही। खैर छोड़िये इस बारे में फिर कभी बातें कर लेंगी । आज आप सभी को बधाई। पांच सौ साल के कथित संघर्ष की बधाई। बोलिये राजा राम चंद्र की जय !

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