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सुप्रीम कोर्ट की अब तक कई भूमिका भी संदेह के घेरे में

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विजय दलाल

वो सरकार या चुनाव आयोग जो भी झूठी बातें कोर्ट के समक्ष रखता है उसे ही सही मानता है बाकी इस सिस्टम के दुरूपयोग के बारे में जनता, मीडिया में प्रकाशित या विपक्षी दलों द्वारा रखी गई बातों और तर्कों को मानने को तैयार नहीं है साथ ही साथ वीवीपेट मशीन के इंट्रोड्यूस करते वक्त जिन सैद्धांतिक आधारों को स्वयं सुप्रीम कोर्ट ने माना था वहीं अब मानने को तैयार नहीं है।

*अब तो कितने ही परिक्षणों से यह साबित भी हो गया है कि चुनाव आयोग चुनाव कई दौर में क्यों करवाता है।*

*2019 के लोकसभा चुनाव में 373 सीटों पर वोट हजारों की संख्या में कम या ज्यादा पाया जाना यह साबित करता है इतने लंबे समय मशीनों को रखने की जरूरत ईवीएम में वोटों की हेराफेरी के लिए पड़ती है।*

*और मीडिया द्वारा इसे बहुत चतुराई से मोदीजी की सभाएं, रैलियों और घोषणाओं की सफलता और विपक्ष की असफलताओं के रूप में प्रचारित करता है।*

*वो चुनाव आयोग चुनाव संचालित करने के नाम पर चुनाव महिनों में कई दौर में करता है और वीवीपेट पर्ची की समानांतर गणना और मिलान के लिए सरासर झूठ बोलता है कि परिणाम घोषित होने में 4 – 5 दिन लग जाएंगे इसलिए नहीं की जाएगी और सुप्रीम कोर्ट मान भी लेता है जबकि साधारण बैंक का नोट गिनने और सार्ट करने वाला कैशियर बता सकता है कि गणना में इतना समय नहीं लगेगा।*

*और यदि इस गणना से चुनावी प्रक्रिया विश्वसनियता बढ़ती है तो क्यों नहीं अभी तक व

नोट काउंटिंग मशीन की तरह की वोट काउंटिंग मशीन बनवाली…

… और यदि चुनाव इतने लंबे समय में करवाया जा सकता है तो नतीजे दो चार दिन में भी घोषित हो तो क्या फर्क पड़ता है।

*यक्ष प्रश्न यह है कि न्यायालय से भी लोग अब क्या न्याय की आशा छोड़ दें?*

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