मुनेश त्यागी
आज पूरी दुनिया और देश में फादर्स डे यानी पितृ दिवस मनाया जा रहा है। पूरा पूरा फेसबुक और व्हाट्सएप पर आधुनिक श्रवन कुमार छाए हुए हैं। आज इस शुभ मौके पर हम भी अपने श्रद्धेय पितृगण को याद करना चाहते हैं और उन सारी स्मृतियों को आपके साथ शेयर करना चाहते हैं। हमारे यानी मेरे दो ताऊजी और पिताजी अनपढ़ थे, मगर उनकी समझ बहुत ही कमाल की थी। उन्होंने हमें बचपन से ही खेती-बाड़ी निराई गुड़ाई करना सिखाया, हल चलाना और पशु चराना सिखाया, ईंख खोदनी और जोतनी सिखाई और पूरे खेती कर्म को पूरी मेहनत और ईमानदारी से करना सिखाया। वे पहले उस काम को खुद करते थे और फिर हमें उस काम करने की सीख और सलाह देते थे। हमें उनका दिया गया सबसे खूबसूरत उपहार यह है कि उन्होंने हमें सुबह पांच बजे उठना सिखाया। इसी वजह से हम अपने काम को दिन गर्म होने से पहले कर लेते थे। अन्य बहुत सारे बच्चों के उठने से पहले हम अपने बहुत सारे काम बहुत जल्द और समय से निपटा लेते थे। सुबह उठकर अपनी पढ़ाई पूरी कर लेते थे और अपना होमवर्क भी सुबह सुबह उठकर पूरा कर लेते थे। इस “अमूल्य उपहार” की वजह से हमने कभी भी जिंदगी में पीछे मुड़कर नहीं देखा। हमारे परिवार में हमारे दादा जी महाशय सागर सिंह और हमारे दो ताऊजी महाशय ओमप्रकाश त्यागी उर्फ़ कानूनी और प्रणाम सिंह त्यागी स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्होंने भारत की आजादी के संघर्ष में जेल की सजाएं काटी थीं।1942 के “करो या मरो” और “अंग्रेजों भारत छोड़ो” आजादी के देशव्यापी आंदोलन में हमारे दादाजी और दोनों ताऊजी मेरठ जेल में बंद थे। हमारे गांव रासना, मेरठ में 17 स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनमें से अधिकांश रोजाना सुबह 5:00 बजे हमारे हमारी बैठक में आ जाते थे और वहीं पर हुक्का गुड़गुड़ाते हुए, स्वतंत्रता संग्राम पर चर्चा करते थे, देश दुनिया और परिवार की बातें करते थे। हमारे पितृतुल्य ताऊजियों और पिताजी ने ही हमें सबसे पहले मेहनत, मशक्कत और इमानदारी का पाठ पढ़ाया और देश, समाज और परिवार के प्रति हमदर्दी पैदा की। उन्होंने हमें आपसी समझदारी, सांप्रदायिक सौहार्द, मिलजुलकर रहने, इमानदारी, मेहनत, अनुशासन और सब का भला करने की सीख दी थी। उन्होंने ही हमें वर्णवादी और जातिवादी नफरत के ज़हर से बचाया था। अन्याय और बुराई का विरोध करना सिखाए और अच्छाई के लिए लड़ने की प्रेरणा दी। अपने जीवन में उन्होंने शिक्षा को सर्वोच्च स्थान दिया था। हमें सही तरीके से पढने का कोई भी मौका उन्होंने कभी भी हाथ से न जाने दिया और अपने बहुत ही सीमित साधनों से उन्होंने हमें देश के सर्वोत्तम कालिज और विश्वविद्यालय में यानि मेरठ कालिज और दिल्ली विश्वविद्यालय में एलएलबी करने भेजा।हम सदैव ही उनके कर्जदार रहेंगे। सच में मैं जो आज हूँ, उन्हीं की दी हुई शिक्षा का बनाया हुआ हूँ। वे मुझे हमेशा याद आते रहते हैं, जैसे आज भी उंगली पकड़ कर मुझे सही रास्ता दिखा रहे हों, और हर समस्या के समाधान के लिए मेरे साथ हों। मुझे याद है कि कैसे मेरे महीने की पढ़ाई के खर्च के लिए वे बडी मुश्किल से कैसे महीने भर पैसे का इंतजाम किया करते थे और इसके लिए चिंतित रहते थे। Really they were great people, I bow my head to them, and I respect them in a big way, एक घटना आप से शेयर करता हूँ, 1980 की बात है, मैंने अपनी मेहनत और लगन से बिना किसी कोचिंग में पढ़े, IAS का प्रिलिमिनरी इम्तिहान पास कर लिया था। मैं अपने होस्टल में सबका darling बन गया था। होस्टल वार्डन ने मेरठ कालिज के RD होस्टल में सबसे बढ़िया कमरा मुझे allot कर दिया था ताकि मैं सही तरीके से परीक्षा की तैयारी कर सकूं। खैर कुछ दिनों बाद मेरे घर वालों ने मुझे घर बुलाया। माँ ने मेरी आरती उतारी। घर वालों ने गांव वालों की चाय का इंतजाम किया गया था। मैं जान नही पाया कि माजरा क्या था? खासकर मिठाई बनवाई गई। मैंने माँ से पूछा कि माँ क्या मामला है?तो माँ ने बताया कि तू कलक्टर जो बन गया है, उसी की खुशी में तेरे ताऊजियों और पिताजी द्वारा गांव वालों की टी पार्टी की जा रही है। मैने माँ को बताया कि अभी तो एक और इम्तिहान पास करना है, पर कोई मेरी बात सुनने को तैयार नही था। वे सब मुझे कलक्टर ही मान बैठे थे। फिर मैंने गांव की इस भरी सभा में उन सबको बताया कि अभी एक और मुख्य परीक्षा होनी है और उसे पास करने के बाद इन्टरव्यू होगा और उसे पास करने पर ही कुछ पता चलेगा। पर पूरे गांव वाले मेरी बात सुनने को तैयार नही थे। उनका कहना था कि हमने तो तुझे कलक्टर मान ही लिया है, अब तू कुछ भी कहे, हम तेरी कोई बात मानने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा हमारे गांव में पहले किसी ने नही किया है, तू पहला बच्चा है जो यहां तक पहुंचा है। मैंने कहा कि अभी मैं कहीं नही पहुंचा हूँ, मगर वे कहां सुनने और मानने को तैयार थे और कमाल की बात यह है कि वे मुझे अभी भी उसी नजर से देखते हैं। वही सम्मान और आदर का भाव। सच में वे सब कितने सीधे सच्चे थे, वे सब मुझे अभी भी याद आते हैं। अपनी पढ़ाई के दौरान हम क्रांतिकारी विचारों के संपर्क में आए। मार्क्स, एंगेल्स, लेनिन, भगत सिंह और सव्यसाची को पढा। क्रांतिकारी यशपाल की कई पुस्तकें पढ़ीं, सव्यसांची का सारा लिटरेचर पढ़ लिया और इसके बाद भारत की राजनीति और भारत की दुर्दशा के बारे में जानकारी हुई, तो हम सब कुछ छोड़ कर क्रांति और समाजवाद की राह के राही हो गए। समाजवादी शिक्षा ने हमें सिखाया कि कैसे समाजवादी व्यवस्था में सबको काम, सबको शिक्षा, सबको रोटी, सबको घर, सबको रोजगार, सबको इलाज मिलेगा और कैसे किसानों और मजदूरों की सरकार पूरे देश की जनता की खुशहाली और कल्याण के लिए काम करेगी और कैसे देश के सारे प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल पूरे देश की जनता के विकास और कल्याण के लिए किया जाएगा। आज जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं कि यदि हमारे हमारे पितृ तुल्य ताऊजी और पिताजी हमें मेहनत, इमानदारी और सदकर्मों की शिक्षा न देते, हमें आजादी का पाठ न पढ़ाते, आजादी की कहानियां और क्रांतिकारियों के किस्से और कहानियां न सुनाते और हमें देश, समाज और परिवार के बारे में सोचना और सदकर्म करना न सिखाते, तो हम आज जहां हैं वहां न होते। अपने पिताजी और पितृतुल्य ताऊजियों की वजह से आज हम जिस मुकाम पर हैं, उससे हमें कोई अफसोस नहीं है। हम आज जो कुछ कर रहे हैं, अपनी खुशी से, सब कुछ जानबूझकर, अपने देश, दुनिया, परिवार, समाज और जनता की खुशी के लिए कर रहे हैं। हम मरते दम तक अपने पिताजी और अपने पितृतुल्य ताऊजियों के एहसान को कभी भी नहीं भूल सकते हैं। हमने अपने ताऊजियों और पिताजी से सीखा कि कैसे एकजुट होकर पूरे परिवार को आगे बढ़ाया जा सकता है और कैसे अपने बच्चों को सही शिक्षा देकर उन्हें एक अच्छा नागरिक बनाया जा सकता है। यहीं पर हमने सीखा की सफलता की सबसे पहली सीढ़ी एक समझदार, सुशिक्षित और संगठित परिवार ही है, जहां बच्चों को एक अच्छा नागरिक बनने की शिक्षा दी जाती है। आज हम अपने समाज में बहुत सारी विपरीत परिस्थितियों देख रहे हैं जिनमें बहुत से लोग अच्छे पिता नहीं बन पाए हैं। जब इसका कारण ढूंढते हैं तो हम पाते हैं कि जब तक समाज के सब लोगों को, सब पिताओं को शिक्षित नहीं किया जाएगा,उनकी बुनियादी जरूरतों,,,, रोटी कपड़ा मकान स्वास्थ्य रोजगार आदि को पूरा नहीं किया जायेगा, उन्हें समुचित रोजगार नहीं दिया जाएगा, उनके रहन-सहन और खान-पीन का माहौल सही नहीं किया जायेगा, उनकी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और पारिवारिक परिस्थितियों को मानवीय नहीं बनाया जाएगा, तब तक हमारे समाज में अच्छे पिता नहीं बन सकते और इस प्रकार बहुत सारे लोग, बुरे पिताओं के रूप में हमारे सामने आते रहेंगे। आज हम अपने समय में पारिवारिक गिरावट के जो दृश्य देख रहे हैं, उनके मुख्य कारण एक समझदार सुशिक्षित, संगठित और सबका भला चाहने वाला परिवार की कामना नहीं है। आज हम देख रहे हैं कि माहौल बदल गया है। बहुत सारे बच्चे अभी अपने निजी स्वार्थों के कारण अपने माता-पिता की सही देखभाल नहीं करते, उनका ख्याल नहीं रखते हैं। इसी के साथ-साथ हम यह भी देख रहे हैं कि आज बहुत सारे पिता अपने बच्चों में भेदभाव करते हैं और तो कई सारे पिता अपने बच्चों को गलत काम करने से नहीं रोकते, उनका सही मार्गदर्शन नहीं करते, परिवार में अनुशासन को बनाकर नहीं रखते जिस कारण इन परिवारों में नारकीय परिस्थितियों पैदा हो जाती है। अतः आज परिवारों में सुख शांति बनाए रखने के लिए सभी पिताओं को और ज्यादा समझदार और अनुशासित होने की ज़रूरत है। हमारा सौभाग्य था कि हमारे पिता तुल्य ताऊजी और पिताजी ऐसे ही समझदार और अनुशासित प्रवृत्तियों के शानदार इंसान थे। ऐसे ही थे हमारे पितृतुल्य ताऊजी, पिताजी और तमाम गांव वाले जिन्होंने हमें जिंदगी के सच्चे मूल्य और सबक सिखाएं, सच्ची शिक्षा दी और मेहनत, मशक्कत और अनुशासन से काम करना सिखाया। सच में मैं अपने आप को बहुत बहुत भाग्यशाली समझता हूँ। हम “फादर्स डे” के इस शुभ अवसर पर कामना करते हैं कि दुनिया के सभी बच्चों को ऐसे मेहनती, समझदार, अनुशासित और सदकर्म करने वाले माता-पिता और परिवार मिलें। ऐसे माता-पिताओं और परिवारों से ही हमारी बहुत सारी पारिवारिक समस्याएं दूर हो सकती हैं।आज फादर्स डे पर देश और दुनिया के समस्त पिताओं को शत शत नमन, वंदन और अभिनंदन।