अग्नि आलोक
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आज बेशक मुल्क में हैं आवाजें दो……..

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सुसंस्कृति परिहार
बहुत पहले मशहूर गीतकार जावेद अख़्तर साहिब ने एक बहुत प्यारा गीत लिखा है’ एक हमारी और एक उनकी /मुल्क में हैं आवाजें दो।’आज साफ़ तौर पर यह आवाजें सुनी जा रही हैं। धड़ल्ले से उनका सोशल मीडिया पर प्रचार प्रसार जारी है। खेदजनक तो यह है कि राष्ट्र पिता महात्मा गांधी पर गोडसे वादियों की जो बदजुबान सुनने को मिल रही है वह भारत सरकार और तमाम देशवासियों के लिए कलंक की बात है।याद आता है अंग्रेज शासक का वह बयान जिसमें उन्होंने गांधी की हत्या के तुरंत बाद कहा था कि हम इस कलंक से बच गए दुनिया को क्या जवाब देते?अब यही कलंकी गोडसे वादी महात्मा गांधी को मार के भी संतुष्ट नहीं और क्या क्या कह रहे हैं। तमाम दुनिया भारत के इन गद्दारों का तमाशा देख रही है।साथ ही साथ प्रगतिशील भारत की बिगड़ी हालत पर अफ़सोस जाहिर कर रही है पर भारत सरकार को शर्म नहीं ।
महात्मा गांधी ही नहीं भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और तमाम अल्पसंख्यक भी उनके निशाने पर है ।वे 1947के विभाजन के बाद से ही मुस्लिम कौम को यहां से हटाने बेताब हैं। संविधान की जगह मनुस्मृति को पुनर्स्थापित करना चाहते हैं वे इसलिए समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता जैसे शब्द पर ऐतराज़ करते है।उनकी मंशा बिल्कुल स्पष्ट हो चुकी है वे 2024 में भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के तलबगार हैं इसीलिए वे कांग्रेस मुक्त भारत के नारे के साथ सत्ता में आए हैं क्योंकि कांग्रेस ने भारत को आजादी दिलाई और विगत साठ सालों में भारत को दुनिया की बराबरी से खड़ने का काम किया। सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश आज कराह रहा है छद्म तौर पर लोकतांत्रिक रास्ते से जिस तरह गोडसे वादी लोगों ने सत्ता पर कब्जा किया है।इन सात सालों में आम जनता अब इन्हें भली-भांति पहचान गई।अब ये हिंदू और हिंदुत्व के बीच की लड़ाई हैं ।काशी के पंडित जिस तरह मोदीजी के हिंदुत्व को चुनौती दे रहे हैं उसे समझने की जरूरत है। दूसरी तरफ मथुरा के जनमानस ने जिस तरह इन हिंदुत्व वादियों को दरकिनार कर कौमी एकता का संदेश दिया है वह श्लाघनीय है। केदारनाथ धाम से लेकर काशी विश्वनाथ मंदिर तक जो व्यापार की नीति अपने कारपोरेट मित्रों के लिए अपनाई गई है उससे भी मंदिर ट्रस्ट ख़फ़ा है। दर्शनार्थियों को जो टिकिट की व्यवस्था हुई है उससे भ भी नाराज़गी का आलम है ।उनका ये दांव उल्टा पड़ा है इसलिए भाजपा तंबू उखड़ने वाला है। हिंदू मुस्लिम भी जारी है लेकिन यह असरकारक नहीं है क्योंकि ये साथ सदियों पुराना है। आज तो जोर शोर से हिंदू के विरुद्ध हिंदुत्व का बखेड़ा खड़ा किया जा रहा । निश्चित तौर पर हिंदुत्ववादी उंगलियों पर गिने जाने वाले लोग लेकिन उन्हें ऊपरी संरक्षण प्राप्त है इसलिए अब पहली बार
यहीं हिंदुत्ववादी ताकतें इस बार ईसामसीह की मूर्तियों को तोड़े हैं तथा शांताक्लाज को अपमानित किए हैं।हार का डर इन ताकतों को इस कदर सताए हुए है कि उनके मनोभाव इन कृत्यों में दिखाई दे रहे हैं।वे देश में विवाद खड़ा करने उतारु है लेकिन हमारा संविधान और सालों की मोहब्बत उन्हें फसाद से दूर रखे हुए है।ये अच्छी बात है जो दिलासा देती है कि आने वाला साल इस मोहब्बत को बनाए रखेगा और भारत को बदसूरती के रास्ते पर ले जाने वाले लोग पस्त होंगे ।आज वे सत्ता में हैं इसलिए अपनी अंतिम कोशिश में लगे हुए हैं। भारत के लोग आज दुनिया में बड़ी तादाद में हैं दुनिया के काफी लोग यहां भी है इसलिए इस सोच का विस्तार विदेशी दबाव से भी प्रभावित होगा।जाते जाते एक बात और याद रखना चाहिए देशवासियों को कि जब दुनिया का एकमात्र हिंदू राष्ट्र नेपाल नहीं बचा तो भारत जैसे समन्वयवादी ,सहिष्णु और उदार देश में हिंदू राष्ट्र की अवधारणा की कल्पना नहीं की जा सकती। इसीलिए जावेद अख्तर हमें सावधान करते हैं-

हम कहते हैं जात धर्म से/इन्सा की पहचान गलत/वो कहते है सारे इंसा/एक है यह एलान गलत/हम कहते है नफरत का/जो हुक्म दे वो फरमान गलत/वो कहते है ये मानो तो/सारा हिन्दुस्तान गलत/हम कहते है भूल के नफरत/
प्यार की कोई बात करो…/वो कहते है खून खराबा/
होता है तो होने दो/एक हमारी और एक उनकी/मुल्क में हैं आवाजें दो/अब तुम पर है कौन सी तुम/आवाज सुनो तुम क्या मानो ?

यकीनन भारतवासी मुल्क में नफरत और ख़ून खराबा नहीं चाहते यह उसकी अंतरात्मा की आवाज़ है।

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