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एक जुलाई से प्रदेश में फिर शुरू होगा तबादला उद्योग …?

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भोपाल।)। यह सभी जानते हैं कि प्रदेश के शासकीय कर्मचारियों के स्थानान्तरण आदेश की सूची आये दिन समाचार पत्रों में आती रहती है, कहने को भले ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश के अधिकारियों का स्थानान्तरण करने की एक जुलाई से लेकर ३० जुलाई तक की घोषणा की है, हालांकि प्रशासनिक अधिकारियों के स्थानान्तरण तो सालभर होते रहते हैं, शिवराज के शासन की कार्यशैली के चलते बड़वानी कलेक्टर शिवराज सिंह वर्मा द्वारा कोरोना महामारी के दौरान ऑक्सीजन कंसंट्रेटर की खरीदी में धांधली को उजागर करने वाले आईएएस लोकेश कुमार जांगिड़ का जो मामला इन दिनों सुर्खियों में है उनके बारे में शासन के मंत्री द्वारा यह दावा किया गया कि उनके कार्यकाल के दौरान कई ट्रांसफर होते रहे हैं जहां तक बात एक जुलाई से ३१ जुलाई तक प्रदेश में प्रशासनिक अधिकारियों के तबादला किये जाने की बात कही जा रही है लेकिन हकीकत में यह एक तरह का तबादला उद्योग है जो इस प्रदेश में वर्षों से कायम है और जब-जब यह तबादला उद्योग चलता है, तब-तब करोड़ों के वारे-न्यारे सत्ताधीशों, सत्ता के दलालों के माध्यम से होता आया है,

पूर्व कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के १५ महीनों में भी जमकर तबादला उद्योग चला फर्क केवल इतना था कि उस दौरान कांग्रेस के नेताओं ने बड़े-बड़े काउंटर खोल रखे थे और उन काउंटरों पर जाकर दक्षिणा जमा करने के बाद जो प्रसादी अधिकारियों को तबादला के रूप में प्राप्त होती थी उससे कमलनाथ सरकार पर भाजपा के नेताओं ने तबादला उद्योग की संज्ञा देकर अनेक गंभीर आरोप लगाए, हालांकि अधिकारियों और खासकर आईएएस अधिकारियों जो जिले की कलेक्टरी पाने के लिए आतुर रहते हैं उनके स्थानान्तरण को लेकर प्रदेश के समाचार पत्रों में उनके तबादलों की रेट लिस्ट कई बार सुर्खियों में रही है, अनेकों बार जिले का कलेक्टर बनने के लिए एक-एक करोड़ रुपये की बोली लगने की खबरें सुर्खियों में रही हैं, शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में यह सुविधा जरूर है कि वह तबादला उद्योग का संकेत पहले से दे देते हैं, पहले इस तबदला उद्योग के शुरुआत की सूचना उन्होंने एक मई से ३१ मई २०२१ तक की दी थी अब उन्होंने एडवांस में एक जुलाई आने से पहले प्रदेश के नौकरशाहों को यह संकेत दे दिया था कि एक जुलाई से ३१ जुलाई तक मध्यप्रदेश में तबादला उद्योग का पर्व मनाया जायेगा। मुख्यमंत्री द्वारा दिये गये इस संकेत को पाते ही जहां राजनेता, सत्ता के दलाल और तबदला उद्योग में माहिर दलाल व प्रशासनिक अधिकारी मलाईदार विभाग में पदस्थापना के लिये संपर्क साधने लगे, हालांकि इस प्रदेश में तबादला उद्योग का एक लम्बा इतिहास है और जब-जब तबादला उद्योग चला तब-तब प्रशासनिक अधिकारयिों के तबादले की लम्बी-लम्बी सूचियां जारी होती रही हैं और इन्हीं सूचियों के समाचार पत्र में प्रकाशित होने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के शासनकाल में भाजपा के विधायक मध्यप्रदेश विधानसभा सदन में इन सूचियों को पतंगों की तरह उड़ाने में कोई अवसर नहीं छोड़ते थे।

अब चूंकि भाजपा का शासनकाल है और यह सभी जानते हैं कि कांग्रेस अपनी परम्परा के अनुसार विभिन्न गुटों में तो बंटी हुई है तो वहीं कांग्र्रेस के नेता एक-दूसरे को पछाडऩे में लगे हुए हैं इसके चलते अब विधानसभा में भाजपा के विधायकों की तरह स्थानान्तरण की सूचियों की समाचार पत्रों की कतरनें लहराते हुए सदन में दिखाई नहीं पड़ती, बात यदि प्रशासनिक अधिकारियों के तबादले की है तो इसका अधिकार सरकार को है कि वह अपने मनचाहे अधिकारी को जहां चाहे वहां पदस्थ कर सकता है, लेकिन इन तबादलों के चलते राजनेताओं और सत्ता से जुड़े दलालों और तबादला उद्योग के कारोबार करने में माहिर लोगों का जो लेनदेन होता है वह प्रशासनिक अधिकारियों के इस तबादले को काफी विवादग्रस्त बना देता है। यह सभी जानते हैं कि एक लम्बे अर्से से प्रदेश में अधिकारियों के तबादले और उनकी पदस्थापना को लेकर सत्ता से जुड़े राजनेताओं, सत्ता के दलालों द्वारा जो पदों की बोली लगाने का काम किया जाता है उसमें इस प्रशासनिक तबादले को विवादग्रस्त कर दिया, हालांकि शिवराज सरकार में हमेशा ही तबादला उद्योग खूब फला-फूला ही नहीं बल्कि इस तबादला उद्योग के नाम पर करोड़ों रुपये के वारे-न्यारे की भी खबरें सुर्खियों में रहीं,

इस सरकार में शिवराज सिंह और उनके मंत्रिमण्डल के सदस्यों के आसपास जो सत्ता के दलाल गणेश परिक्रमा लगाने काम करते हैं वह इसी तबदाला उद्योग की आस लगाये रहते हैं, यही नहीं इस प्रदेश में अनेकों बार तो शिवराज सिंह के इर्द-गिर्द रहने वाले अनेक लोगों के तबादला उद्योग में सक्रिय रहने और लेनदेन करने की खबरें भी सुर्खियों में रही हैं और एक जुलाई से एक माह चलने वाले इस तबादला उद्योग में भी अब यही होने की संभावना है, हालांकि मनचाही पदस्थापना पाने के लिय आतुर अधिकारी तबादला उद्योग से जुड़े दलालों, राजनेताओं और सत्ता के दलालों से अभी से सम्पर्क साधने में लग गए और इन लोगों में अब सौदेबाजी का भी खेल चलने की चर्चायें हैं। तो वहीं शिवराज सिंह के कार्यकाल में सीएम हाउस से जुड़े लोगों के लेनदेन की भी खबरें सुर्खियों में रही लेकिन आज तक यह खुलासा नहीं हो पाया कि आखिर यह लेनदेन करता कौन है, हालांकि इस विषय को लेकर राजधानी से लेकर प्रदेशभर में लोग चटकारे लेकर यह कहते नजर आते हैं कि सीएम हाउस के फलां व्यक्ति से संपर्क साधकर हमने अपनी पदस्थापना यहां कराने में कामयाबी हासिल की, तो लोग इस बात को लेकर भी चर्चा करते नजर आते हैं कि सीएम हाउस से जुड़े फलां व्यक्ति के द्वारा विदिशा में एक कांग्रेसी नेता की पार्टनरी में वेयरहाउसों का निर्माण किया जा रहा है, ऐसी एक नहीं अनेकों खबरें सीएम हाउस से जुड़े विकास को लेकर हमेशा सुर्खियों में रही जबकि इस प्रदेश के राजनीति और मीडिया से जुड़े लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि वर्ष २००७ में जब भारतीय जनशक्ति के तत्कालीन राष्ट्रीय महामंत्री प्रहलाद पटेल जो आज वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मंत्रिमण्डल में केंद्रीय पर्यटन मंत्री हैं उन्होंने शिवराज सिंह की धर्मपत्नी श्रीमती साधना सिंह के द्वारा अपनी पहचान छुपाकर डम्पर खरीदने की घटना के खुलासे के बाद राजधानी के रोशनपुरा चौराहे पर इस घटना के विरोध में जो धरना दिया था और इस दौरान जो पत्र उन्होंने शिवराज सिंह को पत्र लिखे थे उसमें एक बार नहीं अनेकों बार इस बात का उल्लेख किया कि ”आप स्वयं भ्रष्टाचार के जनक हैंÓÓ साथ ही उन्होंने इसी पत्र में यह भी लिखा था कि ”आपकी कमजोरी, आपकी निर्णय न ले पाने की प्रवृत्ति और झूठ बोलना, आर्थिक अपराधियों को खुला संरक्षण दे रहा हैÓÓ इसी पत्र में उन्होंने आगे यह भी लिखा था कि ”आपका विकास का ढोल भूखों की भूख तो समाप्त भले ही नहीं कर पा रहा हो, भ्रष्टाचारियों का संरक्षण जरूर कर रहा है।ÓÓ शिवराज सिंह के बारे में प्रहलाद पटेल द्वारा लिखे शब्दों को भले ही बरसों हो गये हों लेकिन आज तक शिवराज सिंह के शासन की कार्यशैली में कोई परिवर्तन दिखाई नहीं दे रहा है कहने को चौथी बार सत्ता पर काबिज होने के बाद उनके मुखाग्रबिन्द से एक बार नहीं अनेकों बार यह चेतावनी लोगों को सुनने को मिली कि उनके शासनकाल में भ्रष्ट राजनेताओं, अधिकारियों और सत्ता के दलालों को कोई जगह नहीं है लेकिन यह शब्द सुनने में अच्छे लगते हैं क्योंकि इन शब्दों की कथनी और करनी का फर्क इस प्रदेश की जनता भलीभांति समझ रही है और इसी के चलते बड़वानी कलेक्टर शिवराज सिंह वर्मा के द्वारा जो ऑक्सीजन कंसंट्रेटर की खरीदी के मामले का खुलासा आईएएस लोकेश कुमार जांगिड़ के द्वारा शिवराज सिंह के शासन की कार्यशैली को अंगीकृत न करते हुए इस खरीदी में हुए घोटाले का जो खुलासा किया उससे बड़वानी कलेक्टर ही नहीं बल्कि सत्ताधीशों की नींद तक उड़ गई, वैसे बड़वानी के कलेक्टर शिवराज सिंह वर्मा ने जो कुछ किया वह तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कार्यशैली के अनुरूप है क्योंकि उनके शासनकाल में तो यही होता आया है कि सरकारी योजनाओं की फर्जी आंकड़ों की रंगोली सजाकर उन्हें खुश करने का काम होता आया है और वही बरसों तक आबकारी जैसे विभाग में रहे शिवराज सिंह वर्मा प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कार्यशैली से परिचित हैं और उन्होंने भी उसी के अनुरूप ऑक्सीजन कंसंट्रेटर की खरीदी को अंजाम दिया लेकिन पांचों उंगलियां बराबर नहीं होती की कहावत को चरितार्थ करते हुए लोकेश कुमार जांगिड़ यदि शिवराज सिंह की शासन की कार्यशैली में समाहित नहीं हो सके तो उन्हें यह बुरा लगा और उन्होंने इस घोटाले का खुलासा कर दिया, हालांकि इस तरह के घोटालों का खुलासा हमेशा होता रहा, अब बात यदि बड़वानी कलेक्टर शिवराज सिंह वर्मा की बात करें तो जैसा कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की कार्यशैली के बारे में लोग चटकारे लेकर चर्चा करते नजर आते हैं, उसके अनुसार तो यही माना जाए कि जो व्यक्ति कलेक्टरी पाने के लिये मुंहमांगी रकम देकर कलेक्टर बनेगा तो वह अपनी पत्नी के जेवर बेचकर कलेक्टरी पाने के लिये पैसा नहीं देगा वह कमायेगा तो उसी जिले से जिस जिले में उसकी पदस्थापना हुई है शायद वही सब बड़वानी कलेक्टर वर्मा ने किया जो लोकेश कुमार जांगिड़ को बुरा लगा, ऐसे एक नहीं अनेकों अधिकारी हैं तो वल्लभ भवन से लेकर मैदानी स्तर तक पदस्थ हैं लेकिन इस शासन की कार्यशैली के अनुरूप भजकलदारम् की लत नहीं लग पाई तो वह लोकेश जांगिड़ जैसी घटना को जन्म देकर बदनाम होकर वल्लभ भवन में नरेंद्र मोदी के अनुसार आईएएस बाबूगिरी करते नजर आते हैं और जो तबादला उद्योग का लाभ उठाकर अपनी मनचाही पदस्थापना पा लेते हैं वह इस सरकार की कार्यशैली के चलते आलीशान भवनों और लग्जरी कारों में ही नहीं बल्कि उन पर कुबेर इस तरह से मेहरबान हो जाता है कि वह अपनी ही नहीं अपने कई पीढिय़ों को आबाद कर जाते हैं, ऐसे भी अधिकारियों के कारनामे की चर्चाएं भी इस प्रदेश में लोग चटकारे लेकर करते नजर आते हैं दरअसल मैं मुख्यमंत्री द्वारा बार-बार तबादला उद्योग की तिथियों की घोषणा भी शायद उनके ही शासन की कार्यशैली के अनुरूप है अब देखना यह है कि एक जुलाई से ३१ जुलाई तक चलने वाले इस तबादला महापर्व के बाद कैसी-कैसी खबरें सुर्खियों में रहती हैं यह भविष्य के गर्भ में है फिलहाल तो मुख्यमंत्री की तबादला उद्योग पर्व की तिथियों की घोषणा के साथ ही मनचाही पदस्थापना पाने के लिये प्रदेश के अधिकारी, राजनेताओं सत्ता के दलालों और तबादला उद्योग से जुड़े लोगों से सम्पर्क साधकर सक्रिय हो गये है। 

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