सुसंस्कृति परिहार
पिछले दिनों हर दिल अज़ीज़ पत्रकार कमाल खान की अचानक मौत की चर्चाओं का आलम अभी ठंडा भी नहीं पड़ा था कि यकायक कत्थक के सितारे बिरजू महाराज ने भी रुखसत ले ली। लखनऊ की ज़मीं कैसे अपने इन दो लालों को विस्मृत कर पाएगी।
वो मनहूस दिन था 14जनवरी का जब सुबह का सूरज उदित नहीं हुआ था तभी पत्रकारिता का एक नफासत भरा स्वर और लखनवी अंदाजे बयां की मिठास भरी बोली वाला कमाल खान हम सबसे दूर बहुत दूर चला गया। आज 17जनवरी लखनऊ की कथक शैली के महान जादूगर बिरजू महाराज को भी छीन ले गई।वे तकरीबन एक माह से बीमार थे उन्हें सांस लेने में दिक्कत थी। उन्हें देश में ही नहीं बल्कि दूर दुनिया के लोग भी भली-भांति जानते थे। जहां कमाल खान ने पिछले दशकों में अपनी की रिपोर्ताजों में गहरे चिंतन और अध्ययन से बांधे रखा के लिए वहीं सचाई और और अपनी लाजवाब कहन से कस कर एक अनूठी पहल की।वे ही प्यारे इंसान भी थे ।ये उनके जाने के बाद उनके दोस्तों की यादों में देखने मिला ।वे अपनी शानदार पत्रकारिता के लिए जाने जायेंगे। उन्हें रामनाथ गोयनका अवार्ड, गणेशशंकर विद्यार्थी अवार्ड प्रर्यावरण पर बेस्ट रिपोर्टिंग के लिए अवार्ड,सार्थक कंट्री राइटर अवार्ड तथा न्यूज़ टेलीविजन अवार्ड से नवाजा जा चुका था।
![Birju Maharaj Biography - Childhood, Life Achievements & Timeline](https://www.thefamouspeople.com/profiles/images/birju-maharaj-3.jpg)
![Kamal Khan Death: NDTV Veteran Kamal Khan Dies; "Big Loss For Journalism," Say Leaders](https://c.ndtvimg.com/2022-01/acbqsdcg_kamal-khan_650x400_14_January_22.jpg)
उनके निधन पर रवीश कुमार ने भारी मन से कहा–‘फिर कोई दूसरा कमाल ख़ान नहीं होगा भारत की पत्रकारिता आज तहज़ीब से वीरान हो गई है। वो लखनऊ आज ख़ाली हो गया जिसकी आवाज़ कमाल ख़ान के शब्दों से खनकती थी। NDTV परिवार आज ग़मगीन है। कमाल के चाहने वाले करोड़ों दर्शकों का दुख ज्वार बन कर उमड़ रहा है। अलविदा कमाल सर ।’
वाराणसी में वरिष्ठ पत्रकार कमाल खान के असामयिक निधन से उठी शोक की लहर ने शुक्रवार को गंगा आरती को कमाल खान को समर्पित किया। वाराणसी के पत्रकारों ने विशेष पूजा कर श्रद्धांजलि दी। कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए दशाश्वमेध घाट पर अर्पित यह श्रद्धांजलि उनके प्रति अपार प्यार को तो बताती है लेकिन साथ ही भारतीय तहज़ीब की उस महानता को भी अभिव्यक्त करती है जिसके पैरोकार कमाल खान थे।
बिरजू महाराज का जाना भी उन झंकारों से जुदा हो जाना है जिनमें लखनवी अदा और भाव-भंगिमा के साथ हम भावविभोर हो सुनते चले जा रहे थे। उनका पूरा नाम पंडित बृज मोहन मिश्र था । वे भारतीय नृत्य की ‘कथक’ शैली के आचार्य और लखनऊ के ‘कालका-बिंदादीन’ घराने के एक मुख्य प्रतिनिधि हैं। ताल और घुँघुरूओं के तालमेल के साथ कथक नृत्य पेश करना एक आम बात है, लेकिन जब ताल की थापों और घुँघुरूओं की रूंझन को महारास के माधुर्य में तब्दील करने की बात हो तो बिरजू महाराज के अतिरिक्त और कोई नाम ध्यान में नहीं आता। बिरजू महाराज का सारा जीवन ही इस कला को क्लासिक की ऊँचाइयों तक ले जाने में ही व्यतीत हुआ है। उन्हें भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्म विभूषण’ (1986) और ‘कालीदास सम्मान’ समेत अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें ‘बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय’ और ‘खैरागढ़ विश्वविद्यालय’ से ‘डॉक्टरेट’ की मानद उपाधि भी मिल चुकी है।
मशहूर अदाकारा माधुरी दीक्षित ने उनके निधन पर कहा -‘वे एक लेजेंड थे लेकिन उनमें बच्चों जैसी मासूमियत भी थी। वह मेरे गुरु थे लेकिन दोस्त भी। उन्होंने मुझे डांस की बारीकियां और अभिनय समझाया लेकिन अपने मजेदार किस्सों से वह मुझे हंसाने से कभी नहीं चूके।’
यकीनन बिरजू महाराज उर्फ बृजमोहन का अकेले कथित गोपियों को छोड़कर चले जाना बहुत ही दुखद और कृष्ण युगीन मिथक की याद के साथ यह भी याद दिलाता है कि उनका जन्म लखनऊ की जिस अस्पताल में हुआ वहां उस दिन सब लड़कियां ही पैदा हुईं इसलिए वे अकेले बृजमोहन और फिर बिरजू कहलाए।आज तो पूरा देश अपने बिरजू के जाने के ग़म में है। किंतु उनकी ज़िंदादिली उनकी मासूमियत और भोली अदाएं,नाचते नैन और लरजता बदन हमारी अमानत है।जो हमें नहीं छोड़ेगा ,वे सदैव साथ बने रहेंगे।
लखनऊ के इन दो लाल को पाकर भारत भू गौरवान्वित हुई। दोनों महान और विलक्षण साथियों को अनगिनत सलाम ।