अग्नि आलोक
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सुकून नहीं, कलेश अहम 

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          नगमा कुमारी अंसारी 

दुनिया के साथ तो जो भी, जैसे भी कलेस होना था हो लिया होगा, परिस्थितियों के अनुसार दुनिया का अनुभव भी ले लिया होगा, तो अब खुद का नंबर लगाओ, अब थोड़ा क्लेश खुद के साथ भी करके देखो। 

शरीर तो नारियल की जटाएं है, यह तो बाहरी खोल है, आवरण है, जिसे सुंदरता कहते हैं वह तो नारियल की जटाओं की तरह उड़ ही जाएगी.

    इसलिए याद रखो खोल में कुछ नहीं रखा है, गिरी भीतर ही धरी है, नतीजा भीतर से ही निकलेगा, दुनिया से क्लेश करने में कुछ नहीं रखा है।

थोड़ा खुद के साथ भी खेलो, पता करो की इस जगत में तुम्हारा अपना ओरिजिन क्या है, आने का मार्ग क्या था क्या प्रक्रिया थी, और प्रथमदृष्टया कैसे नजर आते थे, कितने रूपवान थे ? 

     आप बस, वह एक ऊर्जा ही तो हो, जिसे medical science स्पर्म का नाम नाम देता है, याद रहे नाम देता है, बस वही ऊर्जा जो उसे स्पर्म नमक शरीर को चल रही थी, आपको भी आज वही चल रही है।

   यह जगत स्वीकार की शर्तें पूरी होने के पश्चात ही, जीव को नाम रूप और संबंधों के रूप में स्वीकार करता है।

जगत तो जीव के साथ सदियों से ऐसा ही सलूक करता आया है, यहां के सब कलेस कामना पूर्ति और मोह से जुड़े हैं यह जैसे चल रहे हैं वैसे ही चलते रहेंगे.

     इसलिए है कभी-कभी खुद के भले के लिए खुद को खुद से सुलझाने के लिए कुछ क्लेश खुद से भी कर ही लेने चाहिए.

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