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मध्यप्रदेश :कम मतदान वाले क्षेत्र के मंत्रियों की मुसीबत बढ़ेगी  

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सुसंस्कृति परिहार 

पिछले दिनों तीसरे चरण के चुनाव का प्रचार करने आए गृहमंत्री अमित शाह ने कार्यकर्ताओं की बैठक में अब तक हुये दो चरणों में कम मतदान पर ना केवल चिंता जाहिर की है बल्कि उन्होंने भविष्य के होने वाले  चुनाव में उनके मंत्री कोताही ना बरतें इसके लिए यह कहा गया है कि पहले और दूसरे चरण के मतदान में जो भारी कमी आई है, उसके लिए क्षेत्र के जिम्मेदार मंत्रियों पर कार्रवाई की जाएगी।कम मतदान से ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही है कि इसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ेगा। इसलिए अमित शाह परेशान हैं।

जानकारों के मुताबिक भाजपा के चाणक्य को यह नागवार गुजरा है और उनके निशाने पर मध्यप्रदेश मंत्रीमंडल के कई वरिष्ठ और पहली बार बने मंत्री हैं। संभावना व्यक्त की जा रही है कि चुनाव के बाद उन्हें मंत्री पद से हटाया जा सकता है।

ये आलम अमूनन त्रिपुरा, मणिपुर, बंगाल को छोड़कर  सभी जगह है।क्या वे त्रिपुरा जैसी फर्जी वोटिंग चाहते हैं जहां सूत्रों के बताए अनुसार 102% मतदान हुआ हे।इसका मतलब ये भी हो सकता है कि निर्वाचन अधिकारी ने इस तरह के मतदान पर सख्ती बरती या ईवीएम की मनमानी नहीं हुई। मंत्रियों पर कार्रवाई आखिरकार क्यों?

इस बाबत गृहमंत्री को यह सोचना चाहिए कि मतदाताओं का उत्साह कम क्यों हुआ है जबकि जिला प्रशासन ने प्रायः इस बार पिछले वर्षों से ज्यादा ताकत मतदान करने हेतु विविध कार्यक्रमों के ज़रिए लगाई।पहली बार कई जिलों में कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक मतदाता पर्ची बांटते देखें गए।हां,इस बार ये भी नज़र आया कि वोटर को उम्मीदवार ने सीधे कोई राशि मंदिरों में या घर नहीं बांटी। पिछले वर्ष यह रेट एक वोटर 500 से 1000₹ था। प्रचार करने में भी कंजूसी की गई। रैलियों में हालांकि भोजन और लिफाफे बंटने की खबरें आई किंतु उनमें क्षेत्र के वोटर कम बाहर से आए भक्त ही थे। जिनसे कुछ फर्क नहीं पड़ा। एक निरुत्साहित मतदाता का कहना था बिना नोट कैसे वोट मिल सकता है।कई वोटर चुनाव में काम की तलाश में थे पर इस बार वह चंद लोगों को ही मिल पाया। इसलिए चुनाव सूना सूना तो रहा ही बहुत से मतदाताओं को निराश भी कर गया।

कांग्रेस के पास तो खाते सीज़ होने के कारण अर्थाभाव था किंतु भाजपा उम्मीदवारों ने यह सोचकर , चार सौ पार की उम्मीद में ना तो पार्टी द्वारा प्रदत्त राशि खर्च की ना ही ज्यादा प्रचार पर ज़ोर दिया गया।उसने कांग्रेस की तरह ही काम धीमा किया। वास्तव में सच ये है जिन मतदाताओं की वोट पैसा देकर ली जाती थी।वे इस बार वोट डालने नहीं गए।

कुल मिलाकर जो लोग आंधी ,पानी,तेज गर्मी के बावजूद मतदान करने गए उनका इस्तकबाल होना चाहिए क्योंकि वे अपनी अपनी विचारधाराओं के प्रति प्रतिबद्ध थे। इस कम मतदान ने यह भी जाहिर कर दिया कि वोटर  पिछले चुनावों में किस तरह खरीदे जाते रहे।आशा है भविष्य में यह परम्परा शायद खत्म हो जाए लेकिन जिस तरह धमकी देकर मतदान करवाने की अपेक्षा मंत्रियों से की गई वह अनुचित है।इस बारे में गृहमंत्री जी और चुनाव आयोग को विचार करने की ज़रूरत है।

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