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कनाडा-भारत की फाइट:घरेलू राजनीति की खातिर ट्रूडो अदावत और बढ़ा रहे हैं

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मृत्युंजय कुमार राय

जस्टिन ट्रूडो मुश्किल में हैं। कनाडा में आम चुनाव में साल भर से भी कम वक्त बचा है और फिलहाल लग रहा है कि उनकी पार्टी हारने वाली है। ट्रूडो इसके साथ ही कई मोर्चों पर मुश्किलों का सामना कर रहे हैं।

भारत से रिश्ते । भारत के साथ कनाडा के संबंध और बुरी स्थिति में पहुंचते दिख रहे हैं। पिछले साल कनाडा में अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या हो गई थी। इसे लेकर भारत के साथ उसकी तकरार इधर काफी तेज हो गई है। दोनों देशों ने एक दूसरे के यहां से राजनयिकों को वापस बुला लिया है। ट्रूडो ने साल भर पहले भी आरोप लगाया था कि निज्जर की हत्या भारत ने कराई है, लेकिन अभी तक उन्होंने इसके सबूत सार्वजनिक नहीं किए हैं। रिश्ते कनाडा के चीन से भी खराब हैं। अब अगर यह सदी एशिया की है तो दुनिया की शीर्ष 5 इकॉनमी में शामिल इन दोनों देशों से बैर बढ़ाने से इतना तो तय है कि कनाडा का कोई भला नहीं होने वाला।

अंतरराष्ट्रीय मंचवैश्विक मंच पर भी कनाडा की हालत खराब है। 2020 में उसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में शामिल होने की कोशिश की, तब उसे नॉर्वे और आयरलैंड से भी कम समर्थन मिला। पश्चिमी देशों के सैन्य अलायंस नैटो में भी कनाडा का हाल कोई अच्छा नहीं है। वह रक्षा पर GDP का सिर्फ 1.3% खर्च करता है, जो कि 2% की जरूरी सीमा से काफी कम है। इसे बढ़ाने का ट्रूडो ने वादा तो किया है, लेकिन 2032 तक। यह भी सिर्फ वादा है, देखना होगा कि यह पूरा हो भी पाता है या नहीं।

घरेलू राजनीति :ट्रूडो सरकार की हालत घरेलू मोर्चे पर भी अच्छी नहीं। हालिया सर्वे के मुताबिक, अगले साल होने वाले आम चुनाव में उनकी पार्टी को 25% वोट भी नहीं मिलने वाले। यूं तो इसमें अभी करीब साल भर का वक्त बचा है और राजनीति में हफ्ते भर का समय भी काफी होता है। लेकिन ट्रूडो सरकार का जो हाल है, उसे देखकर नहीं लगता कि चुनाव तक उसकी रेटिंग में कोई बड़ा सुधार होने वाला है।

इकॉनमी बेहाल:कनाडा की आर्थिक हालत अच्छी नहीं है। महामारी के बाद से उसकी इकॉनमी अच्छी तरह रिकवर नहीं कर पाई है। जहां 2024 के आखिर तक पड़ोसी देश अमेरिका की इकॉनमी का साइज महामारी के पहले वाले दौर से 11% बड़ा होगा, वहीं कनाडा का सिर्फ 6%। महामारी के दौर में अमेरिका में ऑनलाइन चीजों की मांग बढ़ने से कनैडियन मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को फायदा हुआ था, लेकिन वह दौर खत्म हो चुका है। हालांकि कनाडा के लिए ऑयल-गैस सेक्टर काफी बड़ा है, लेकिन काफी समय से इंडस्ट्री में निवेश नहीं बढ़ा था। इसलिए जब यूक्रेन युद्ध की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल-गैस की कीमतें बढ़ीं तो कनाडा उसका बहुत फायदा नहीं उठा पाया।

होम लोन दरें:डिमांड कम होने की वजह है होम लोन की ऊंची ब्याज दरें। कनाडा में होम लोन पहले 5 साल के लिए फिक्स्ड रेट पर दिए जाते हैं और फिर फ्लेक्सिबल रेट्स लागू होते हैं। ऐसे में पिछले कुछ वर्षों में ब्याज दरें बढ़ीं तो होम लोन ले चुके काफी लोगों पर उसकी तगड़ी मार पड़ी। ये लोग कर्ज चुकाने पर पहले की तुलना में अधिक पैसे खर्च कर रहे हैं, जिससे दूसरी चीजों के कंजम्पशन में उन्हें कटौती करनी पड़ रही है। ऐसी सूरत में लोगों को सरकार से मदद की आस होती है, लेकिन वह ट्रूडो ने पूरी नहीं की। हालांकि, उनकी सरकार ऐसा कर सकती है क्योंकि कनाडा का बजट घाटा 2023 में GDP का 1.1% ही था, जो G7 देशों में सबसे कम है।

घरों की लागत:होम लोन की दरें अधिक होने के साथ कनाडा में घरों की लागत भी काफी ज्यादा है और इससे भी जनता की परेशानी बढ़ी है। पिछले 10 वर्षों में दूसरे अमीर देशों के मुकाबले कनाडा में घर खरीदने की लागत में सबसे अधिक बढ़ोतरी हुई है। उसकी वजह यह है कि यहां घरों की सप्लाई बहुत कम है। एक अनुमान के मुताबिक, इस चुनौती से निपटने के लिए अगले 10 वर्षों में वहां 58 लाख घर बनाने होंगे, लेकिन ऐसी पहल अभी होती नहीं दिख रही।

इमिग्रेशन का असर:दूसरी ओर, इमिग्रेशन बढ़ने से घरों की मांग में तेजी से इजाफा हुआ है। 2018 में यहां आने वाले अस्थायी विदेशी वर्कर्स की संख्या 1 लाख के करीब थी, जो 2023 में ढाई लाख से कुछ कम रही । इनके साथ अगर छात्रों और शरण मांगने वालों को शामिल कर लिया जाए तो यह संख्या 2021 के 13 लाख के मुकाबले इस साल जुलाई में 30 लाख पहुंच गई थी। यह कनाडा की 4.1 करोड़ की कुल आबादी का 7.3% है।

कुल मिलाकर, ट्रूडो आज कई मोर्चों पर मुश्किलों से घिरे हैं और उनकी तरफ से इनसे बाहर निकलने के आइडिया भी नहीं आए हैं। दूसरी ओर, भारत और चीन जैसे देशों के साथ रिश्ते सुधारने के बजाय घरेलू राजनीति की खातिर वह अदावत और बढ़ा रहे हैं, जबकि उनका राजनीतिक करियर अस्त होने की ओर है।

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