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हरियाणा में कांग्रेस की सच्ची तस्वीर:लड़ाई अपने ही क्षत्रपों से

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बृजेन्द्र दुबे

हरियाणा में कांग्रेस से जुड़ने के लिए भाजपा के बागियों में होड़ लगी है. रेसलर विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया ने तो कांग्रेस का दामन थाम भी लिया है. लेकिन अगर दिल से पूछिए कि वहां कांग्रेस ने कुछ अच्छा किया है… जवाब होगा नहीं. वहां भाजपा की सरकार ने बहुत बुरा किया है. यही वजह है कि हरियाणा में कांग्रेस की स्थिति बहुत अच्छी मानी जा रही है. लेकिन सामने जीत देख कर हरियाणा के कांग्रेस नेता बावले होते जा रहे हैं. सबको सीएम पद दिख रहा है और सीएम बनने के लिए अपने से ज्यादा बाकियों को लड़ाने में जुटे हैं. कांग्रेस हाईकमान यह मैसेज देने में  लगातार नाकाम रहा है कि हरियाणा में नेता नहीं, पार्टी चुनाव लड़ रही है. सच्चाई यह है कि भाजपा के कुशासन के खिलाफ राहुल गांधी ने जो अभियान चलाया, उसी की वजह से हरियाणा में कांग्रेस की हालत बेहतर दिख रही है. हरियाणा में क्षत्रपों की वजह से जनता वोट नहीं देगी. वोट मिलेंगे कांग्रेस नेता राहुल गांधी की किसान समर्थक नीतियों, अग्रिवीर के खिलाफ आवाज, महंगाई-बेरोजगारी, छोटे व्यापारियों के उद्योग धंधे ठप होने, राज्य की गौरव पहलवान बेटियों के साथ नाइंसाफी के खिलाफ आवाज उठाने के लिए.

कांग्रेस जब तक यह मैसेज देने में कामयाब नहीं होगी, तब तक क्षत्रप अपने आप तीस मार खां बन कर आपस में ही लड़ते रहेंगे. ये लड़ाई भूपिंदर सिंह हुड्डा, कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला जारी रखे हुए हैं. कांग्रेस नेतृत्व शायद राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का उदाहरण याद नहीं कर रहा है. तीनों राज्यों में कांग्रेस आपसी गुटबाजी के चलते ही चुनाव हार गई थी. यह संयोग ही है कि राजस्थान में इंचार्ज होने के नाते गुटबाजी झेल चुके अजय माकन अब हरियाणा की स्क्रीनिंग कमेटी अध्यक्ष हैं. हालांकि यही गुटबाजी हरियाणा में खुद माकन को दो साल पहले राज्यसभा चुनाव हरवा चुकी है. राहुल गांधी के उम्मीदवार के तौर पर माकन की पहचान थी. मगर इसकी परवाह न करते हुए किरण चौधरी ने माकन के खिलाफ वोट दिया था. उस समय कांग्रेस का ही एक गुट किरण चौधरी को बचाने में लग गया था. कांग्रेस अनुशासन समिति ने उन्हें कारण बताओ नोटिस दिया. उसे दबा दिया गया. यहां तक कि माकन की आवाज को भी दबा दिया गया. राहुल गांधी की यही कमजोरी उन्हें सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती है. उन्हें तब बोलना चाहिए था, लेकिन वे चुप रह गए. पार्टी को नुकसान पहुंचाने वालों पर अगर सख्त मैसेज एक बार चला जाए तो वह नजीर बन जाता है. किरण चौधरी को भी अगर उसी समय कांग्रेस ने पार्टी से निकाल दिया होता तो आज भाजपा भी उन्हें न लेती. मगर अब भाजपा ने किरण चौधरी को राज्यसभा सदस्य बना दिया है. बेटी को विस चुनाव लड़वा रही है.

यह हरियाणा में कांग्रेस की सच्ची तस्वीर है. वहां गुटबाजी किस स्तर तक है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कुमारी शैलजा स्क्रीनिंग कमेटी को ओवर रूल करके अपने 90 नाम सीधे सीईसी को भेज दिए. हरियाणा में 90 सीटें हैं और इसके लिए 2500 से अधिक लोग कतार में हैं. कुछ सीटों पर तो 40-40 लोगों ने टिकट मांगा है. आप को याद होगा कि 2019 में भी हरियाणा में कांग्रेस की स्थिति बहुत अच्छी थी, लेकिन गुटबाजी की वजह से पार्टी 31 सीटों पर ही रुक गई. स्पष्ट बहुमत तो भाजपा को भी नहीं मिला, वह भी 40 पर रुक गई. मगर जोड़ तोड़ करके उसने सरकार बना ली. उस समय कांग्रेस के क्षत्रप आपस में नहीं लड़ते तो कांग्रेस जीत सकती थी. ऐसा ही अभी लोकसभा चुनाव में हुआ. उसने पांच सीटें तो जीतीं, लेकिन अगर सब मिल कर लड़ते, तो कांग्रेस आठ सीटें जीत सकती थी. कांग्रेस में जनता जितना भी चाहे, इसके नेता ही अड़ जाते हैं-अच्छा तुम हमसे भी ताकतवर हो गए हो, एक क्षत्रप दूसरे को जीतने नहीं देता. कांग्रेसी हमेशा इसी ठसक में रहते हैं कि हम ही सबकुछ हैं. इस ठसक को कांग्रेस हाईकमान ही तोड़ सकता है, लेकिन वह भी समय पर सही फैसला लेने से चूक जाता है.

हरियाणा में अब मौका है कि आलाकमान सख्त मैसेज दे कि गुटबाजी करने वाला कोई नेता बख्शा नहीं जाएगा, चाहे वह कितना ही बड़ा क्यों न हो. यह चुनाव कांग्रेस पार्टी लड़ रही है. कोई गुट नहीं चाहिए. हरियाणा को अलग राज्य भी कांग्रेस ने ही बनाया था. 1966 में. और यह देश में एक विकसित राज्य का मॉडल बना. भाजपा 10 साल से वहां सत्ता में है. राज्य में भी, केंद्र में भी. कोई बहाना नहीं है. इबल इंजन की सरकार कहते हैं. मगर हरियाणा में क्या किया. भाजपा जनता के सवालों का जवाब नहीं दे पा रही है. नतीजा चुनाव डेट बढ़ा दो, मॉब लिंचिंग के समर्थन में आ जाओ, हिंदू-मुसलमान शुरू करो और सबसे बढ़ कर कांग्रेस की गुटबाजी से उम्मीद करो. इसके अलावा भाजपा के पास हरियाणा में कुछ बताने को नहीं है. इसमें खास बात यह है कि सभी सवालों का जवाब खुद हरियाणा की जनता दे रही है. वह हिंदू-मुसलमान एजेंडे से बहुत दूर आ चुकी है. मगर एक चीज का जवाब खुद कांग्रेस को देना होगा, गुटबाजी का. अभी बहुत समय है. राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे का एक सख्त बयान सारे गुटबाजों के तेवर ढीले कर देगा.

अभी तीसरी बार पीएम बने नरेंद्र मोदी को तीन महीने नहीं हुए और एक के बाद एक कई फैसले उन्हें वापस लेने पड़े. यही नहीं महाराष्ट्र में मोदी को छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा गिरने के लिए सार्वजनिक माफी भी मांगनी पड़ी. यह सब राहुल गांधी का इंपैक्ट है. मगर राहुल गांधी का यही असर कांग्रेस पार्टी पर भी होना चाहिए. सत्ता पक्ष में खलबली मचना तभी सार्थक होगा, जब खुद राहुल गांधी की पार्टी एकजुट होगी. हरियाणा टेस्ट केस है. अगर वहां पर गुटबाजी पर काबू कर लिया गया तो इसका मैसेज जम्मू-कश्मीर, झारखंड और महाराष्ट्र समेत हर राज्य में जाएगा. और कांग्रेस आलाकमान हरियाणा में ढीला रहा तो वहां भी राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसा रिजल्ट आ सकता है.

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