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सत्यकथा : ज़हरखुरानी गिरोह और पागल ज़ोंबियों समाज

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          ~प्रखर अरोड़ा      

बारिश के बाद सड़क पर पानी भरने के साथ ही हवा भी रुक चुकी है। कीचड़ पूरी सड़क पर उसी तरह छा गया है जैसे संघी गिरोह इस समय भारतीय समाज पर छा गया है। सूझते ना बनता है कि अगला क़दम कहाँ रखें। सड़क के एक तरफ़ ख़ाली जगह है, जो कई वर्षों से कूड़ेदान के रूप में प्रयोग हो रही है, उसमें एक छोटा-सा घर कभी रहा होगा, जहाँ उसके कूड़ेदान बनने से पहले लोग रहा करते होंगे।   

      आसमान में अँधेरा छा चुका है, डूबते सूरज की लालिमा अब काला रूप धारण कर चुकी है। दूसरी तरफ़ है किनारे की ओर से पेड़ों से ढँका एक मैदान। लम्बे समय से कटाई ना होने से घास बढ़ गयी है। पार्क के बीच में एक विशालकाय स्ट्रीट लाइट लगी है जो पूरे पार्क में रोशनी पहुँचा रही है। इस समय कुछ लोग पार्क में मौजूद है, कुछ अँधेरे कोने में अकेले बैठे सिगरेट फूँक रहे हैं। एक परिवार, पति-पत्नी और दो बेटे ट्रैक पर दौड़ रहे हैं।

        पार्क के छोटे से घुमावदार प्रवेश द्वार से चार लड़के अन्दर आये। सबकी उम्र क़रीब सत्रह से बीस के बीच होगी। वह चारों सीधा पार्क के बीच में पहुँचे, जहाँ पहले से ही उनका हमउम्र एक लड़का बैठा हुआ है। बिना किसी अभिवादन के पाँचों खड़े हुए, एक दूसरे की तरफ़ देखा मानो कि अब तैयार हैं और अपने हाथों को तय गति में उठाते हुए छाती की तरफ़ तिरछा करके रख लिया और एक साथ बोलने लगे :

    नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे

त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम्।

महामंगले पुण्यभूमे त्वदर्थे

पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते।

       पाँचो ठीक उसी तरह गा रहे थे जैसे स्कूल में बच्चों को कोई पाठ रटाया जाता है। फिर सब एक गोल घेरा बनाकर बैठ गये। एक लड़का जो पहले से ही वहाँ बैठा था, हाफ़ ख़ाकी पेंट और ऊपर नीली धारीदार रंग की टीशर्ट पहने हुए था, उसके पैर ज़रूरत से ज़्यादा फूले लग रहे थे, ऊपर पहनी हुई टी-शर्ट भी टाइट हो रही थी, बाल बेतरतीब कटे हुए बिल्कुल छोटे थे। उसे देखकर उस चिढ़ी हुई बिल्ली का ध्यान आ रहा था, जो सबको नोचने के लिए तैयार रहती है।

    वह बोला :

“तो अगली मीटिंग मंदिर में होगी यह तो पता चल गया होगा आप सबको।”

“जी केशव जी,” सबने एक स्वर में जवाब दिया।

उनमें से सबसे लम्बे और घुँघराले बालों वाले लड़के ने कहा :

“केशव जी! हमारी पिछली कार्रवाई का क्या असर रहा?” उन्हें बात करते देखकर लगता था कि औपचारिकता का अदब उनमें कूट-कूट के भरा गया है। यहाँ तक कि आल्थी-पाल्थी मारकर बैठने के बाद से किसी ने भी अपनी मुद्रा नहीं बदली थी। अपनी भौंहों को एक तरफ़ उठाते हुए केशव बोला :

“मोहन जी! अब हमारी बातों का असर होना शुरू हो चुका है। इस बार हमारा लक्ष्य प्राप्त होते-होते रह गया, लेकिन फिर भी हमारे इलाक़े में हिन्दू भाई इकट्ठा हो रहे हैं। आज नहीं तो कल हम कामयाब जरूर होंगे।”

एक गहरी साँस लेने के बाद उसने अपनी बात जारी रखी :

“अच्छा यह बताइए, कौन विद्यार्थियों के बीच काम करेगा और कौन बालकों के बीच?”

मोहन उनमें से सबसे पहले बोला- “केशव जी! मैं कॉलेज चला तो जाऊँ पर दाख़िला नहीं हो पा रहा है।”

“चलिए देखते हैं नगरसेवक से बात करके आपका दाख़िला करवाते हैं। अमित जी! आप बताइए?”

लम्बे बाल, चौड़े मुँह वाला लड़का जो बड़े गौर से उसकी बात सुन रहा था, चेहरे पर कोई भाव लाये बिना बोला :

“अभी हम शाखा प्रमुख के तौर पर ही काम करेंगे।”

सोनू सबसे छोटा था और अभी उसे चेहरे पर गम्भीरता लाना नहीं आया था, जिसमें बाक़ी लड़के पारंगत हो चुके थे। बड़ी कोशिशों के बावजूद उसके चेहरे पर नौजवानी का लाल रंग दिख ही जाता, उसकी आँखों में थोड़ा डर भी था जिसके कारण वह सबसे नज़र बचा रहा था। झिझकते हुए उसने कुछ बोलने का प्रयास किया :

“केशव जी! हम लोग ये सब क्यों कर रहे हैं?”

प्रश्न पूछने के बाद में उसकी आँखे मासूमियत से केशव को देख रहीं थी। केशव को अपने लक्ष्य पर सवाल पसन्द नहीं था, उसे यही सिखाया गया था कि लक्ष्य के प्रति श्रद्धा और समर्पण होना चाहिए, सवाल नहीं, इसीलिए ऐसे प्रश्न पूछने पर वह उत्तेजित हो जाता।

“सोनू जी! आपने अब तक शाखा में क्या सीखा, जो यह सवाल आप पूछ रहे हैं? आपसे मुझे यह उम्मीद नहीं थी।”

उत्तेजना के कारण उसकी दोनों भौंहें बोलते वक़्त ऊपर चढ़ गयीं जिससे वह और भी भोंडा जोकर जैसा लगने लगा।

     वह बोलता रहा :

“हम स्वयंसेवक है, हमने जीवनभर मातृभूमि की रक्षा करने की शपथ ली है। हमें अपने राष्ट्र को हिन्दू राष्ट्र बनाना है। हमारे पूर्वजों ने हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए क़ुर्बानियाँ दी हैं। लगता है आप भूल गये हैं वीर महाराणा प्रताप से लेकर वीर शिवाजी या वीर सावरकर को… ये वीर इसलिए थे क्योंकि ये सब हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते थे।”

उत्तेजना से उसकी आवाज़ और ऊँची हो गयी थी।

“अब वक़्त आ गया है इस लक्ष्य को पूरा करने का तो आप पूछ रहे हैं कि हम सब यह क्यों कर रहे हैं। सोनू जी! आप इतिहास जानते तो हैं कि किस तरह हमारा देश सदियों से ग़ुलाम रहा है। सबसे पहले मुगलों का, फिर अंग्रेज़ों का, आज़ादी के बाद भी कांग्रेस का ग़ुलाम रहा। अब जब हम इतनी ग़ुलामी के बाद हिन्दू राष्ट्र बनाने की तरफ़ बढ़ रहे हैं तो आप पूछ रहे हैं कि हम यह क्यों कर रहे हैं।”

बाक़ी के सारे लड़के इस बात को ध्यान से सुन रहे थे बिना हिले, जैसे कोई मशीन रखी दी गयी हो। सोनू यह सब सुनकर सहम गया और उसमें कुछ बोलने या पूछने का साहस नहीं रहा।

बारिश के बावजूद माहौल गर्म होता देख, योगेन्द्र जिसके चेहरे पर हल्की-हल्की मूँछ और दाढ़ी उगना शुरू हुई ही थी, अपने सिकुड़े होंठो को चौड़ा करते हुए बोला :

“शाखा में जो नवयुवक आ रहे हैं उनके सवाल बहुत होते हैं, हमें क्या करना चाहिए?”

केशव उत्सुकतावश पूछ बैठा : “कैसे सवाल?”

केशव को सवालों से नफ़रत थी, उसे आदेश मानना और आदेश देना ही सिखाया गया था। योगेन्द्र ने कहा :

“क्या बताऊँ, उनके सवाल बड़े अजीब होते हैं। एक युवक पूछ रहा था : मेरे पिताजी को फ़ैक्ट्री में कम तनख़्वाह मिलती है और उनके मालिक भी हिन्दू हैं तो उन्हें पैसा ज़्यादा क्यों नहीं देते? मेरा तो सर चकरा गया, मैंने बात को घुमा दिया क्योंकि जवाब मेरे पास भी नहीं था। एक युवक बोला : मेरे बग़ल में मुसलमान रहते हैं वह हमेशा मेरी मदद करते हैं, तो वह हमारे शत्रु कैसे हुए? अब आप ही बताइए केशव जी इन सब का क्या जवाब दें?”

केशव गम्भीरता से योगेन्द्र के सवाल सुन रहा था, थोड़ा रुका और बोला :

“योगेन्द्र जी, हमें उन को यह बताना चाहिए कि यह सब अभी हो रहा है, जब हिन्दू राष्ट्र बन जायेगा तो उसमें सब हिन्दू होंगे चाहे वो मलेच्छ हो या कोई और। मालिक का होना तो आवश्यक है, अगर वह नहीं होंगे तो नौकरी कैसे मिलेगी? इसलिए अपने मालिक का सम्मान करना सीखिए। उन्हें समझाइए कि हिन्दू राष्ट्र में आस्था ही इकलौता रास्ता है, बाक़ी सब भ्रम है और वैसे भी जब नये युवक शाखा में आते हैं तो उन्हें खेल खिलाइए, अपने वीरों की गाथा सुनाइए और बताइए कैसे मुगलों ने मन्दिरों को तोड़ा, बाक़ी सब वो अपने आप भूल जायेंगे।”

सोनू केशव की बातें बड़े ग़ौर से सुन रहा था, पर बात ख़़त्म होते ही अचानक उसके चेहरे पर प्रश्न चिह्न आ गया, जो उसके ना चाहते हुए भी ज़ाहिर हो गया। केशव जो उनमें अनुभवी था और मण्डल प्रमुख भी, तुरन्त प्रश्न वाले इस भाव को पहचान गया और बोला –

“कहिए सोनू जी! लगता है आप ठीक से समझे नहीं, कुछ पूछना है तो बोलिए।”

सोनू हिचकिचाते हुए बोला : “जब शाखा में नया-नया जुड़ा था, तो आप लोग कितनी अच्छी बातें करते थे, पर अब लगता है कि वह ख़ाली आवरण था, आप लोगों का असल मक़सद कुछ और है, जो अब मैं धीरे-धीरे समझ रहा हूँ।”

मोहन, अमित, योगेन्द्र सब सोनू की तरफ़ ऐसे देख रहे थे मानो उसने कुछ ग़लत बोल दिया, पर केशव ने अपना संयम बरता और कठोर आवाज़ में बोला :

“सोनू जी, आप बड़े उद्दण्ड हो गये हैं, ये अनुशासन के ख़िलाफ़ है, आपको यह नहीं बोलना चाहिए और अगर आगे से आपने ऐसा कुछ बोला तो आपको शाखा से निलम्बित कर दिया जायेगा।”

बाक़ी तीनों ने भी सहमति में सर हिलाया।

“चलिए बैठक को आगे बढ़ाते हैं और मन्दिर में जो मीटिंग होगी उस पर बात करते हैं। कोशिश कीजिए ज़्यादा से ज़्यादा हिन्दू भाई मीटिंग में आयें। सबके घर जाकर उन्हें बुलाइए, जान लीजिए कि यह हमारे लिए महत्वपूर्ण है, अगर इस बार हम सफल हो गये तो नगरसेवक भी हमारा लोहा मानेंगे। कुछ दिन बाद रामनवमी है हमें अधिक से अधिक हिन्दू भाइयों को इस रैली में ले जाना है। रैली हम लोग उन मुल्लों के इलाक़े से लेकर जायेंगे। मीटिंग के बाद सब हिन्दू भाइयों के घरों में तलवार और त्रिशूल पहुँचाने की ज़िम्मेदारी अमित और योगेन्द्र की होगी, मोहन सबके यहाँ भगवा ध्वज पहुँचायेंगे और सोनू जी आप कृपया करके बस मीटिंग में पहुँच जाइएगा, मीटिंग में हमारे नगरसेवक भी रहेंगे जो आपके सवालों का जवाब ढंग से देंगे।”

हल्की-हल्की बूँदे फिर से पड़नी शुरू हो गयी थीं। पार्क में इन पाँचों के अलावा कोई नहीं बचा था। स्ट्रीट लाइट की रोशनी में घास के ऊपर बारिश की बूँदें चमक रही थीं। दूर बादलों में बिजली कड़कने की आवाज सुनाई दे रही थी।

मोहन बोला :

“अब हमें चलना चाहिए, कई तैयारियाँ करनी है और बारिश भी शुरू हो रही है।” पाँचों खड़े हुए और “जय शिवाजी”, “भारत माता की जय” का नारा लगाते हुए घुमावदार प्रवेश द्वार से निकल गये।

सोनू अपने सवालों में खोया आगे चल रहा था, केशव जो थोड़ा पीछे था अन्य तीनों के बग़ल में जाकर बोला :

“इस सोनू पर नज़र रखो, यह सवाल करने लगा है। किनके साथ रहता है, क्या पढ़ता है? सब ज्ञात करो। अगर यह सवाल करने लग गया तो हमारे लक्ष्य में बाधा आयेगी।”

बारिश तेज़ हो गयी थी। सब भागकर उसी अँधेर नगरी में लौट गये, जहाँ उन्हें अपने ज़हरखुरानी गिरोह का प्रचार करना था और नयी भर्तियाँ करनी थीं।

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