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ट्रंप की टैरिफ धमकियों से दुनिया के बाजारों में उठापटक, छोटे निवेशकों के 2.34 लाख करोड़ डूबे

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ट्रंप की शुल्क धमकियों ने दुनिया के बाजारों में उठापटक मचा दी है.भारत भी इससे अछूता नहीं है, लेकिन बाजार में गिरावट सिर्फ अमेरिकी राष्ट्रपति की वजह से नहीं है, बल्कि लाखों छोटे निवेशक अन्य वजहों से भी परेशान हैं.फोमो यानी फियर ऑफ मिसिंग आउट ने कनिष्क (बदला हुआ नाम) को शेयर बाजार में निवेश शुरू करने के लिए प्रेरित किया.फोमो का मतलब होता है कुछ छूट जाने का डर यानी ऐसा महसूस करना जैसे बाकी लोग किसी चीज को हासिल कर रहे हैं और उससे वह चीज छूट रही है.

कनिष्क ने डीडब्ल्यू को बताया कि जब भारत 2021 में कोरोना महामारी की दूसरी लहर से जूझ रहा था, तो उन्होंने इंस्टाग्राम पर सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसरों के पैसे कमाने के टिप्स देने वाले विज्ञापन देखे.भारत के शेयर बाजार में हर चार नए निवेशक में एक महिलाकनिष्क ने कहा, “जिस तरह से लोग पैसे कमा रहे थे, मैं भी इस मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहता था.मैं कहूंगा कि यही पहली चीज थी जिसने मुझे बाजार में निवेश करने के लिए प्रेरित किया”

कनिष्क ने बताया कि पहले उन्होंने म्यूचुअल फंड में निवेश किया.इसके बाद वे धीरे-धीरे शेयर बाजार में ट्रेडिंग करने लगे.उन्होंने कहा कि शौकिया तौर पर निवेश करने वाले अन्य लोगों की तरह उन्हें भी निवेश से जुड़ी मूल बातों के बारे में कोई खास जानकारी नहीं थी, लेकिन वे बाजार के रुझानों के साथ बने रहे, खास तौर से रेडिट पर, जो अमेरिकी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म है

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में रहने वाली मीडिया प्रोफेशनल पूज और अहमदाबाद में कला एवं संगीत सिखाने वाले सांस्कृतिक केंद्र के संचालक शाह ने भी महामारी लॉकडाउन के दौरान शेयर बाजार में ट्रेडिंग शुरू की.शाह ने कहा, “बाजार काफी अच्छा प्रदर्शन कर रहा था.ऐसा लग रहा था कि जो कोई भी पैसा कमा रहा है, वह बाजार से ही पैसा कमा रहा है” उन्होंने कभी-कभी दूसरों की सिफारिशों के आधार पर रैंडम स्टॉक खरीदे.वह कहते हैं, “अजीब बात है कि मैंने जो भी किया, मैं पैसे कमाता रहा”भारत की आर्थिक हकीकतः कुछ ही लोगों का बाजार हैपूज ने थोड़ी सतर्कता बरती.

उन्होंने कहा, “मुझे पता था कि बाजार उत्साह के दौर में था, मैं बुलबुले के बारे में बहुत जागरूक थी”फिर सितंबर 2024 आया और बुलबुला फूटने से तीनों को भारी नुकसान हुआ.कई महीनों की तेजी के बाद, बाजार में अंततः करेक्शन हुआ और जिसके बाद कई महीनों तक मंदी रही”युवा खुदरा निवेशक बाजार से जुड़ेशेयर बाजार में जिन भारतीयों ने ट्रेडिंग शुरू की उनमें से ज्यादातर के लिए महामारी के बाद की तेजी एक शानदार समय था.यह 275 अरब डॉलर के आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज के असर को दिखाता है जिसे भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने 2020 में पेश किया था.

लॉकडाउन में, बहुत से लोगों के पास अधिक समय और खर्च करने के लिए पैसा था.कई लोग जल्दी और आसानी से पैसा बनाने के विचार से प्रभावित हुए.इंडियन कैपिटल मार्केट में डेरिवेटिव ट्रेडर और महिलाओं के लिए वित्तीय साक्षरता अधिवक्ता सगुन अग्रवाल ने कहा, “कोविड के दौरान, लोगों के पास अतिरिक्त नकदी थी.बड़ी संख्या में युवा निवेशक खुदरा निवेशकों के रूप में पूंजी बाजार में आए.यह बाजार के लिए सकारात्मक था, क्योंकि इससे तरलता बढ़ी और पूंजी निर्माण के लिए निवेश योग्य धन बना”कम ब्रोकरेज फीस और क्रेडिट यानी कर्ज की सुविधा देने वाली नई कंपनियों के कारण ऑनलाइन ट्रेडिंग काफी लोकप्रिय हो गई.ऐसा ही एक विकल्प मार्जिन ट्रेडिंग फैसिलिटी (एमटीएफ) है, जिससे ट्रेडर सिर्फ लागत का कुछ हिस्सा देकर शेयर खरीद सकते हैं.बाकी पैसा ब्रोकरेज कंपनी ब्याज के साथ उधार देती है.

बाजार में गिरावट क्यों आई?नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) के आंकड़ों से पता चला है कि मार्च 2020 और मार्च 2024 के बीच भारत में पंजीकृत निवेशकों की संख्या लगभग तीन गुना बढ़कर 9.2 करोड़ हो गई है.भारत का निफ्टी 50 शेयर बाजार इंडेक्स मार्च 2020 में लगभग 8,000 अंक था, जो सितंबर 2024 में 26,000 अंक से अधिक के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया.खुदरा निवेशक इस कदर उत्साह में डूबे हुए थे कि उन्हें लग रहा था कि अब कुछ गलत नहीं हो सकता.बाजार में गिरावट होने तक उनका यह भ्रम बना रहा.पिछले साल सितंबर से लेकर अब तक, भारतीय शेयर बाजारों में 1.2 लाख करोड़ डॉलर से ज्यादा की कमी आई है यानी भारतीय इक्विटी का मूल्य 1.2 लाख करोड़ डॉलर से ज्यादा घट चुका है.फरवरी में, निफ्टी 50 बेंचमार्क इंडेक्स अपने सबसे ऊंचे स्तर से 16 फीसदी नीचे गिर गया और 1996 के बाद से सबसे लंबे समय तक गिरावट का दौर चला.यह दुनिया के बाजारों में सबसे खराब प्रदर्शन वाला बाजार था।

इस गिरावट का सबसे ज्यादा असर छोटे खुदरा निवेशकों पर पड़ा.अग्रवाल ने बताया, “इनमें से कई खुदरा निवेशकों के पास पर्याप्त जानकारी नहीं थी.वे ऐसे शेयरों के पीछे भागे जिनका प्रचार किया गया था और इस वजह से बाजार में कृत्रिम उछाल आया.पिछले छह महीनों में जब बाजार में करेक्शन हुआ, तो इन निवेशकों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा”बैंगलोर के जर्मिनेट इन्वेस्टर सर्विसेज के सीनियर पार्टनर बिजॉय पीटर ने कहा कि बाजार में गिरावट का एक कारण कॉरपोरेट इंडिया के बढ़ते मूल्यांकन और उनकी घटती आय के बीच असमानता थी.उन्होंने कहा कि जुलाई-सितंबर 2024 तिमाही में भारत की जीडीपी वृद्धि भी धीमी होकर 5.4 फीसदी हो गई थी.उन्होंने उस समय बुनियादी ढांचे और अन्य क्षेत्रों में सरकारी खर्च की कमी के साथ-साथ अन्य वैश्विक कारकों की ओर भी इशारा किया.

उन्होंने कहा कि विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने भारत से अपना पैसा निकालना शुरू कर दिया.चीन ने अपने बाजार में महत्वपूर्ण प्रोत्साहन उपायों को लागू करना शुरू किया, जिससे वहां पैसा जाने में मदद मिली.भारत से बाहर पैसे की इस आवाजाही का बहुत ज्यादा असर पड़ा.पीटर ने कहा, “जब इतनी बड़ी रकम बाहर जाती है, तो इसका काफी ज्यादा असर पड़ता है क्योंकि निवेशकों को अपनी होल्डिंग बेचनी पड़ती है.इतनी बड़ी मात्रा में बेचने से शेयर की कीमतों पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है.नतीजा यह हुआ कि बाजार में गिरावट शुरू हो गई”पीटर ने यह भी कहा कि सरकार द्वारा शुरू किए गए कई अच्छे कार्यों को बाजार ने नजरअंदाज कर दिया.जैसे, टैक्स की सीमा बढ़ाना, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा बैंकिंग सिस्टम में पैसा डालने के लिए उठाए गए कदम, और बुनियादी ढांचे पर ज्यादा खर्च करने की घोषणा.अग्रवाल ने यह भी बताया कि पिछले सितंबर में, असली विक्रेता इंडियन हाई-नेट-वर्थ इंडिविजुअल (एचएनआई) और हाई-वैल्यू निवेशक थे.उन्होंने महसूस किया कि बाजार की कीमत बहुत ज्यादा बढ़ गई है यानी ओवर-वैल्यूड हो गई है और आगे बढ़ने की गुंजाइश कम है.नाम नहीं बताने की शर्त पर एक ट्रेडर ने डीडब्ल्यू से कहा, “बड़े निवेशकों ने बाजार से अपना पैसा निकाल लिया, जिससे गिरावट आई.

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