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भरोसा, भय और पीड़ा 

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       डॉ. विकास मानव 

   भरोसा (विश्वास), भय (डर) और पीड़ा (दुःख) पर हर व्यक्ति के जीवन का हिस्सा बनता है. जीवन के सारे दुखों का एक ही कारण है विश्वास.

    विश्वास चाहे अपने पर हो या किसी रिश्ते पर हो या भगवान पर हो या किसी इंसान पर हो या फिर आपकी आर्थिक या सामाजिक या ज्ञान की  स्थिति पर हो। 

  यह सृष्टि चलायमान है और हर वस्तु परिवर्तन शील है. विश्वास भी परिवर्तनशील है इसलिए  इस विश्वास का कभी ना कभी टूटना निश्चित है।

     जब भी हमारा विश्वास टूटता है तो भय और नफ़रत का जन्म होता है और यह भय और नफ़रत का विष हमारे थाइरॉड ग्लैंड या विशुद्धि चक्र को ब्लॉक कर देता है। इससे हमारे निचले चक्र या ग्लैंड प्रभावित होते हैं जैसे मूलाधार या टेस्टिस, ओवरी, स्वाधिस्थान या अड्रीनल ग्लैंड, मणिपुर चक्र या पैनक्रेयास , अनाहत चक्र या थाइमस ग्लैंड।

    थाइरॉड ग्लैंड या विशुद्धि चक्र ही हमारे शरीर के सही निर्माण, मरम्मत के लिए ज़िम्मेवार होता है और जब हमारा विशुद्धि चक्र या थाइरॉड ग्लैंड ब्लॉक होता है तो चेहरे पर निर्मल मुस्कान समाप्त हो जाती है और कान से लेकर गले तक की साइड वाली मांसपेशियों में एक अलग सा तनाव रहने लगता है। आप चाहे जितना मर्ज़ी आध्यात्मिक बन जाओ लेकिन आप इस तनाव से कभी भी मुक्त नही हो पाते।

      विश्वास कई प्रकार के होते है और क्या हम किसी भी वस्तु पर विश्वास किए बिना जी सकते हैं? या ऐसी क्या वस्तु है जो समय के साथ परिवर्तित नही होती और हमें उस वस्तु को अपने विश्वास का केंद्र बनाना चाहिये ताकि हम हमेशा मानसिक रूप से ख़ुश रह सकें।

      आप स्वतंत्र नही हो. आप का अस्तित्व और सुख किसी पर आपके विश्वास के कारण है. आप खुद तो स्थिर हो ही नही। 

     मान लो आप अपनी पत्नी या प्रेमिका या अपने बच्चों पर या अपने गुरु या अपने नेता पर बहुत विश्वास करते हो और अपने को सौभाग्यशाली समझ रहे हो और ख़ुश हो। लेकिन आप उनके कारण ख़ुश नही हो आप उनके द्वारा आपकी सोच के आधार पर किए कार्यों से ख़ुश होते हो।

     जिस दिन उन्होंने आपकी सोच के विरुद्ध कार्य करने शुरू कर दिये उसी दिन से आपका उन पर विश्वास टूट जाएगा और आपके दिल में उनके प्रति नफ़रत या भय का जन्म हो जाएगा और आपका जीवन दुखी हो जाएगा।

      मान लो आपकी पत्नी या प्रेमिका या पति या प्रेमी अंदर खाते कहीं और अपना टाँका फ़िट कर रहे हों और आपको कोई जानकारी नही। लेकिन आपका विश्वास ही आपको उन रिश्तों में ख़ुश रख रहा है जबकि वास्तविकता अलग है।

      जिस दिन आपको इन बातों की जानकारी मिल जाएगी आपका यही सुख आपके दुःख में बदल जाएगा और यही प्रेम नफ़रत में बदल जाएगा। इसलिये इस मायावी और बदलती सृष्टि में आपका विश्वास ही आपका असली दुश्मन है।

      मान लो आप शारीरिक रूप से बहुत पहलवान हो और बहुत विश्वास है अपने शरीर पर लेकिन यदि आप बीमार पड़ जाए या दुर्घटना के कारण अपंग हो जाए तो आपका अपने शरीर का विश्वास टूट जाएगा। और जब भी विश्वास टूटता है आप भी टूट जाते हो।और जीवन दुखों से भर जाता है। 

  धर्म और भगवान या गुरु पर किया विश्वास भी स्थिर नही होता क्योंकि हम धर्म, गुरु या भगवान पर भी विश्वास तभी तक करते हैं जब तक हमारी प्रार्थना स्वीकार होती रहे और हमारी मन्नत पूरी होती रहे। यदि ऐसा ना होता तो धर्म परिवर्तन का मुद्दा ही नही होता।

    मुझे बाहर कहां ढूंढता है मैं तेरे भीतर हूं। जो मैं हूं वही तू भी है। मैं भी ब्रह्म तू भी ब्रह्म। हमारे वेदों और पुराणों और उपनिषदों में यही लिखा है।

    तू ही ब्रह्म है और अपने भीतर उस ब्रम्ह को पहचान। मूर्ति पूजा या किसी पैगम्बर या किसी दूसरे व्यक्ति के पीछे भागने की आवश्यकता नही होती।

     हमारे उपनिषदों में अपने भीतर के ब्रम्ह को महसूस करने के कई ऐसे सूत्र बताए गए हैं जिनको शायद ही कभी किसी डपोरशंख लुटेरे ने आपको बताया हो।

    रोज एक आधा घंटा शांत बैठ कर मन में कुछ विचार उत्पन करने हैं और यह विचार महसूस भी करने हैं जैसे की मैं ही ब्रम्ह हूं। मैं सर्व शक्तिमान हूं , मैं ही सबसे बड़ा हूं, मैं ही इस सृष्टि का निर्माणकर्ता हूं, मैं ही शिव हूं, मैं ही सबका पालनहार हूं, सब कुछ मैं ही हूं। मैं नहीं हूंगा तो यह संसार भी नही होगा। सबके सुख शांति दुख का कारण हूं। पूरा संसार मेरी ही कृपा से चल रहा है। मुझे किसी से कुछ नही चाहिए न प्रेम न त्याग ना धन न संपति क्योंकि मैं ही यह सब कुछ देने वाला हूं। मैं ही इन सभी मानसिक और शारीरिक और भावनात्मक और सांसारिक वस्तुओं का दाता हूं। सारे जीव मेरी कृपा से उत्पन होते है और मृत्यु को प्राप्त होते हैं।

      अगर आप पूरे मन से इन विचारों के साथ जीने लग जाओगे तो आप संसार के सारे सुख दुख से उपर उठ जाओगे। आपको महसूस होने लग जायेगा की सच मैं ही ब्रम्ह आप के भीतर ही मौजूद है। फिर आपको सुखी रहने के लिए किसी की जरूरत नही रहेगी न रिश्तों की न समाज की न गुरु की न भगवान की। क्योंकि ब्रह्म तो आप खुद होंगे।

        यह सोच और बातें पूरी तरह से वैज्ञानिक हैं क्योंकि आप सोचिए कि अगर आप नही होते तो यह सृष्टि होती या ना होती आपको क्या फर्क पड़ता क्योंकि आप तो महसूस करने के लिए होते ही न।  सृष्टि इसलिए है क्योंकि आप हो। आपका अपना अस्तित्व होना ही सृष्टि का कारण है। यथा देह यथा ब्रह्मांड यजुर्वेद में यही लिखा है की आपका देह या आपका अस्तित्व ही ब्रह्मांड है। आप हैं तभी आपके लिए यह सब कुछ है। इस सब कुछ होने का कारण आप खुद ही हो कोई दूसरा नहीं। ना कोई भगवान न इंसान सिर्फ मैं।

      ऐसा करने से आप के भीतर एक ऐसी ऊर्जा उत्पन होगी जो शायद ही कभी आपने महसूस की होगी। अगर अधिकतर लोग इस प्रकार से अपने को ऊर्जावान बना लें और देश समाज की तरह तरह की जिम्मेवारियों को पूरा करे तभी मानव जीवन दुखों से मुक्त हो सकता है।

   लेकिन तथाकथित बाबा जनों ने लोगों और समाज के लोगों को ठगने वाले लोगों ने सनातन संस्कृति वेदों पुराणों उपनिषदों को गलत रूप में पेश करके समाज को यह समझाया की कोई पैगम्बर या गुरु या मूर्ति प्रकट हो कर कोई चमत्कार कर देगी और आप दुख तकलीफों से मुक्त हो जाएंगे।

 गीता में भी कहती है कि समाज कि तरक्की मनुष्यों का कल्याण सिर्फ कर्मों के द्वारा किया जा सकता है। हमारे वेद, पुराण , उपनिषद सिर्फ पूजा का विषय नहीं बल्कि मानव जीवन को उन्नत बनाने का ज्ञान देता है।

  लेकिन अधिकतर लोग मूर्खता वश ज्ञान को चमत्कार समझने की भूल करते है और समझते है की भगवान कोई ऐसी वस्तु है जिसकी पूजा करने से वह एक दिन प्रकट हो कर आपके सारे दुख तकलीफ दूर कर देगा। 

   जब किसी को कोई समस्या होती है तो वह भगवान से मांगने या गुरु या पैगम्बर से मांगने लग जाता है अगर नहीं मिला तो उन्हें दोष देता है।फिर किसी और नए भगवान या गुरु या पैगम्बर को पूजने बैठ जाता है। वेद, पुराणों उपनिषदों में कहीं भी किसी चमत्कार की बातें नहीं लिखी है सिर्फ प्रकृति के नियमों की व्याख्या शक्तियों और देवो के नाम देकर लिखी हैं।    

      आपको उन नियमों को समझ कर अपने जीवन में उतारना होता है। इसी से आपका और समाज का कल्याण हो सकता है।

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