शशिकांत गुप्ते इंदौर
सनातन को सत्य कहा है। जो सत्य है वही सनातन है।
अहम सवाल है कि, जहां सत्य हैं,वहां विवाद कैसा?
सत्य है,वहां ईमान होता है।
सत्य है वहां भ्रष्ट्राचार होता ही नहीं हैं।
सत्य है वहां,भेदभाव हो ही नहीं सकता है
सत्य है,तो कथनी करनी में अंतर हो ही नहीं सकता है।
सत्य है वहां, कहा जाता है कि,प्राण जाए पर वचन न जाई।
सत्य है तो वचन निभाया जाएगा,वचन देकर उसे जुमला कदापि नहीं कहा जाएगा।
सत्य है वहां धर्मिक स्थलो पर भगवान के दर्शनार्थ निर्धारित फीस वसूल कर अलग कतार नहीं होना चाहिए।
सत्य है वहां मानवीयता होगी।आम जन के लिए संवेदनाएं जागृत होना चाहिए। शोषण तो होना ही नहीं चाहिए।
सत्य है वहां वैमनस्य हो ही नहीं सकता है।
सत्य है वहां हिंसा तो हो ही नहीं सकती है। कारण सत्य,अहिंसा का पर्यायवाची शब्द है।
सत्य हैं वहां निष्ठा होती है। जहां निष्ठा होती है,वहां वाणी संयमित होती है। कटुता पैदा करने वाली भाषा हो ही नहीं सकती है।
सत्य को स्वीकारना बहुत कठिन है। सत्य अनुभूति है।
अनुभूति के लिए इस लोकोक्ति को समझना जरूरी है जाके पैर न फटी बिवाई वो क्या जाने पीर पराई
इसीलिए सच्चे संतो ने जब स्वयं अपने आचरण में शुद्धता लाई,तब वे उपदेश देने के लिए अधिकारी बने।
महाराष्ट्र में जन्मे संत तुकारामजी ने कहा आधी केले मग संगीतले
अर्थात पहले मैंने स्वयं आचरण किया फिर मैंने लोगों को उपदेश दिया।
सत्य है वहां पूंजी, सत्ता, व्यक्ति केन्द्रित व्यवस्था हो ही नहीं सकती है।
दुर्भाग्य से इक्कीसवीं सदी में भी बहुत सी जगह मृत्यु पश्चात अंतिम संस्कार के स्थान भिन्न है।
आज भी उच्च वर्ग के निवास के सामने से निम्न वर्ग के लोग अपने जूते,चप्पल सर पर रखतें हैं।
अमुक वर्ग को आज भी मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश नहीं दिया जाता है।
एक और चंद लोगों की पूंजी चमत्कारी ढंग से दिन-दूनी- रात चौगुनी गति से बढ़ रही है।
दूसरी ओर तादाद में दो जून की रोटी भी नसीब नहीं होती है।
फिर भी हम मानते हैं कि,सत्य ही सनातन है। सनातन ही सत्य है।
इस संदर्भ में प्रसिद्ध कवि,गीतकार नीरज रचित निम्न पंक्तियों को बार बार स्मरण होता है।
अब तो मज़हब कोई ऐसा चलाया जाएं
जिस में इंसान को इंसान बनाया जाए
इंसान की नीयत में कभी खोट पैदा होती ही नहीं है।