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*उज्जैन नाट्यस्थली है भर्तृहरि का कृतित्व हमेशा रहेगा- महेश कटारे* 

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उज्जैन में काव्य पाठ, लोकार्पण एवं कविता पोस्टर तथा प्रदर्शनी का एक यादगार कार्यक्रम

उज्जैन,प्रगतिशील लेखक संघ, उज्जैन के तत्वावधान में क्लब फ़नकार आर्ट गैलरी में काव्य पाठ, लोकार्पण एवं कविता पोस्टर तथा प्रदर्शनी का एक यादगार कार्यक्रम हुआ।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे जाने-माने कथाकार, उपन्यासकार एवं नाटककार महेश कटारे (ग्वालियर)। प्रसिद्ध फिल्मकार, पत्रकार एवं लेखक प्रकाश रघुवंशी (उज्जैन) ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। कार्यक्रम में वक्ता एवं विशिष्ट उपस्थिति थे, सुप्रसिद्ध कथाकार-उपन्यासकार प्रकाश कांत (देवास) एवं मशहूर रंग-निर्देशक शरद शर्मा (उज्जैन)।

कार्यक्रम का आरंभ सुपरिचित चित्रकार पंकज दीक्षित (अशोक नगर) की कविता पोस्टर एवं चित्र प्रदर्शनी के उद्घाटन से हुआ। अशोक नगर के युवा कलाकारों, कबीर (चित्रकार) एवं सत्यभामा (नाट्य लेखिका) ने तीन जन गीत- “ले मसालें चल पड़े हैं…” (बल्ली सिंह चीमा), “चल चला चल…” (हरिओम राजोरिया), “जो उलझकर रह गयी है…” (अदम गोंडवी ) प्रस्तुत किए। सीमा राजोरिया के संगीत संयोजन एवं साथ-साथ गायन में आपका साथ दिया कवि एवं गीतकार हरिओम राजोरिया ने।

गूँज छोड़ने वाली जनगीतों की प्रभावी प्रस्तुति के बाद मंचस्थ साहित्यकारों-कलाकारों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चित्रकार एवं नाटककार मुकेश बिजौले की पहली नाट्य कृति ‘राजा भर्तृहरि’  का लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर  मुकेश बिजौले ने नाट्य लेखन, प्रकाशन, डिजाइनिंग में सहयोग देने के लिए मशहूर चित्रकार अक्षय आमेरिया, कवि-कथाकार शशिभूषण, जन्मभूमि अशोक नगर के साथियों और अन्य लेखक-कलाकार सहयोगियों का आभार माना, साथ ही पुस्तकाकार नाट्य लेखन की प्रेरणा महेश कटारे के उपन्यास ‘कामिनी काय कांतारे’ को बताया।

‘राजा भर्तृहरि’ (नाटक) के लोकार्पण के पश्चात अशोक नगर से आए प्रसिद्ध कवि एवं रंगकर्मी हरिओम राजोरिया ने काव्य पाठ किया। उन्होंने मार्मिक एवं विचारोत्तेजक हस्तक्षेप करने वाली अनेक कविताओं का पाठ किया जिसे श्रोताओं ने बहुत सराहा। हरिओम की कविताओं में सामाजिक उद्वेलन, वैज्ञानिक चेतना, सामाजिक न्याय एवं वर्तमान यथार्थ से जूझनेवाली राजनीतिक परिवर्तन की आकांक्षा कूट-कूटकर भरे थे। उन्होंने वर्तमान हालात में अवश्य उठाए जाने वाले कितने ही बेहद ज़रूरी समसामयिक सवालों को सीधे-सादे ढंग से कविताओं के रूप में प्रस्तुत किया। संबोधित करते-से पाठ और कविताओं के सादे शिल्प ने श्रोताओं में असर पैदा किए।

काव्य पाठ के बाद वक्तव्य श्रृंखला में कथाकार प्रकाश कांत ने ‘राजा भर्तृहरि’ (नाटक) की सार्थक-विस्तृत समीक्षा करते हुए उसके कथानक, भाषा, शिल्प, संवाद से लेकर ऐतिहासिक, लोकप्रचलित श्रुतियों, लोकनाट्य एवं अन्य रंगमंचीय पहलुओं पर विस्तार से विवेचना की। उन्होंने नाटककार के प्रथम प्रयास को अत्यंत सफल बताया। उन्होने कहा, मुकेश बिजौले ने एक विशाल कथा फलक को नाट्य रचना में संभव किया। यह एक उपलब्धि है। यहाँ आज इतने लोगों की उपस्थिति संस्कृति-साहित्य-कला की आकाशगंगा ही है।

लगभग चार दशकों से उज्जैन में यादगार राष्ट्रीय नाट्य समारोहों, संगीत, साहित्य के श्रेष्ठतम आयोजनों की पहचान बन चुके अभिनव रंगमंडल के प्रमुख रंग-निर्देशक तथा अभिनेता शरद शर्मा ने “वर्तमान रंग परिदृश्य, नाट्य लेखन की मुश्किलें और मेरे रंग अनुभव” विषय पर विचार व्यक्त करते हुए कहा, रंगमंच के लिए यह बेहद मुश्किल दौर है। आजकल ग्रांट के लिए नाटक हो रहे हैं। महत्वाकांक्षी व्यक्तियों के हाथ में जानेवाली ग्रांट ने नाटक को ‘लाइट एवं साउंड शो’ में बदल दिया है। उत्कृष्ता से समझौते के प्रलोभन बड़े हैं एवं डरावने भी हैं। उन्होने आगे कहा, एक बार मुझे एक ऐसा प्रस्ताव मिला जिसे इस दौर का भयानक सच कहा जा सकता है। एक सज्जन ने मुझसे कहा, आप नाटकों में उर्दू शब्दों का प्रयोग बहुत करते हैं। यह न करें। क्या बिना उर्दू शब्दों के हिंदी की कल्पना की जा सकती है? युवाओं में भाषा की लापरवाही, वक्त की पाबंदी न होना, रिहर्सल में मेहनत की कमी, फिल्मों का अत्यधिक आकर्षण एवं रंगमंच के प्रति समर्पण में कमी कुछ बड़ी मुश्किलें हैं। उज्जैन में श्रेष्ठ नाटकों के प्रति उदासीनता का वातावरण खेदजनक है। लेकिन इन्हीं परिस्थितियों में अच्छा काम करना है, क्योंकि अच्छा काम ही रहता है।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि महेश कटारे ने “लोकनायक, कवि-कालजयी एवं कथानायक भर्तृहरि” विषय पर अत्यंत सारगर्भित  वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा, भर्तृहरि के जीवन में सर्जना के सभी आयाम मिलते हैं। उन्होंने सब कुछ अर्जित किया। वो राजपुरुष थे। प्रेमी, कवि, वैयाकरण और संत हुए। आम जन से लेकर गणिका तक सबसे उन्होंने संस्कृत-अर्जन में अपने जीवन को समर्पित किया। बिना लोक स्वीकृति के काव्य सफल नहीं होता। भर्तृहरि लोक में भी उतने ही पैठे हैं जितने काव्य एवं शास्त्र में। भर्तृहरि से हम सीख सकते हैं कि मूर्खता से पार पाना जीवन का प्रमुख लक्ष्य है। मूर्ख का संग विकट नरक के समान है। अति विद्वान भी मूर्ख के समान ही होता है। भर्तृहरि का नायकत्व हमेशा रहेगा। उज्जैन नाट्यस्थली है। बिना उज्जैन के भारतीय रंगमंच की कल्पना नहीं की जा सकती है। भारत के बड़े से बडे नाट्य संस्थानों में भारतीय नाटकों की उपेक्षा हुई है। इसे भूलना नहीं चाहिए।

अध्यक्षीय संबोधन में प्रकाश रघुवंशी ने कहा, आज इस बेहद सफल आयोजन ने मुझे गहरे प्रभावित किया है। हरिओम राजोरिया की कविताएँ इस दौर की क्रांतिकारी कविताएँ हैं। ऐसे वक्त में जब कुछ भी बोलना ख़तरनाक ठहराया जा सकता है, एक कवि सामना करके बोल रहा है। हरिओम हों या मुकेश बिजौले इनकी उपस्थिति क्रांतिकारी उपस्थिति हैं। मुकेश बिजौले ने आज ही नाटक नहीं लिखा। वो कबसे लिखते आ रहे हैं। कला और रंगकर्म उनका स्वभाव है। फिल्म एवं प्रसारण क्षेत्र में वर्षों तक काम करते हुए मैने समझा-पाया है कि भारत की भाषा हिंदुस्तानी है। हम जहाँ, जिस क्षेत्र में है, वहाँ से ही प्रतिरोध के स्वर दर्ज़ करना एवं मिली-जुली संस्कृति के लिए काम करना आज के समय की सबसे बड़ी ज़रूरत है।

खचाखच भरी गैलरी में संपन्न हुए कार्यक्रम में उज्जैन, देवास, इंदौर, ग्वालियर और अशोक नगर से अनेक जानी-मानी शख्सियत,  बुद्धिजीवी, साहित्यकार, कलाकार एवं प्रबुद्ध श्रोता उपस्थित रहे। क्लब फ़नकार आर्ट गैलरी की संस्थापिका वसु गुप्ता ने कार्यक्रम की सफलता पर प्रसन्नता ज़ाहिर की और आगे भी जल्द आवृत्ति के साथ कार्यक्रम आयोजित किये जाने की अपील की।

कार्यक्रम के दौरान ही उज्जैन के पत्रकार-कवि देवेंद्र जोशी के अकस्मात निधन की दुखद सूचना आई। कवि-पत्रकार को श्रद्धांजली के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। प्रगतिशील लेखक संघ उज्जैन के  वरिष्ठ सदस्य कवि राजेश सक्सेना ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम का संयोजन एवं संचालन शशिभूषण ने किया।

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