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… पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के अनसुने किस्से….!  राजीव गांधी गद्दी से हटाने की चली चाल

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देश को जल्द ही अपना 15वां राष्ट्रपति मिलेगा। इसकी घोषणा काफी दिनों पहले ही चुनाव आयोग ने कर दी थी। भारत में महामहिम का पद सबसे बड़ा होता है। भारत में ताकतें प्रधानमंत्री के हाथों पर निहित होती है। भारत के राजनीतिक इतिहास को खंगाले तो यहां पर कई बार ऐसा हुआ जब राष्ट्रपति और मौजूदा सरकार के नेता यानी प्रधानमंत्री के बीच खटपट होती थी। राष्ट्रपति के पास ताकत होती है कि वो किसी भी कानून को रोक सकता है। भारत में राष्ट्रपति तीनों सेनाओं का चीफ होता है। देश के सातवें राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह का कार्यकाल भी कुछ ऐसा ही है।

बेहद खास थे इंदिरा गांधी के
साल 1982-87 तक भारत के राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह थे। यूं तो कहा जाता है कि ज्ञानी जैल सिंह और कांग्रेस के बीच काफी मधुर संबंध थे। उनके ऊपर आरोप ये भी लगता है कि उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर बिना किसी से विचार विमर्श किए ही जैल सिंह ने इमरजेंसी की घोषणा कर दी थी। लेकिन गांधी परिवार से इनकी तल्खियां भी मशहूर हैं। ज्ञानी जैल सिंह इंदिरा गांधी और राजीव गांधी दोनों के कार्यकाल के दौरान राष्ट्रपति थे। ज्ञानी जैल सिंह का कार्यकाल भारतीय इतिहास में कई बड़ी ऐतिहासिक घटनाओं का भी साक्षी रहा है।

भिंडरावाले को फ्रंट पर लेकर आए थे ज्ञानी जैल सिंह
ज्ञानी जैल सिंह देश के सातवें राष्ट्रपति बने थे। लेकिन इससे पहले वो विधायक, मंत्री, सांसद, मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री भी रहे। ज्ञानी जैल सिंह का सियासी सफर बेहद दिलचस्प है। विधायक से राष्ट्रपति बनने का सफल कहानियों से भरा हुआ था। लेकिन हम यहां पर उनकी उन कहानियों का जिक्र करेंगे जो उनके राष्ट्रपति बनने के दौरान हुए। पूरे देश में इमरजेंसी की घोषणा, ऑपरेशन ब्लू स्टार, इंदिरा गांधी हत्या और फिर राजीव गांधी का पीएम बनना। इस पूरे घटनाक्रम का गवाह रहा है ज्ञानी जैल सिंह का कार्यकाल। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि जिस भिंडरा वाले को मरवाने के लिए इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार किया दरअसल ज्ञानी जैल सिंह ने ही उसको इंदिरा से मुलाकात कराई थी। जिस वक्त पंजाब में खालिस्तान की मांग उठी तो जैल सिंह ने उसकी काट करने के लिए भिंडरावाले को आगे किया। उस वक्त भिंडरावाले धर्म से लबरेज एक युवा जोश वाला शख्स था। मगर क्या पता था वही उनकी गले की फांस बन जाएगा।

लोकप्रियता बढ़ती चली गई भिंडरावाले की
कहा जाता है कि भिंडरावाले को जैल सिंह अपने राजनीतिक आका संजय गांधी से मिलने लाए थे। लेकिन कुछ समय बाद भिंडरावाले की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि अब कांग्रेस भी परेशान होने लगी। भिंडरावाले की सभाओं में काफी भीड़ होने लगी। अब भिंडरावाले कांग्रेस को चुनौती देने लगा। इंदिरा गांधी की खुलेआम खिल्ली उड़ाने लगा और पंजाब के गैर सिखों में आतंक फैलाने लगा। जिस वक्त ये सब हो रहा था उस वक्त इंदिरा कैबिनेट में गृहमंत्री ज्ञानी जैल सिंह ही थे। मगर वो राष्ट्रपति नहीं थे। ज्ञानी जैल सिंह ने इंदिरा सरकार को ये सलाह दी कि उसे (भिंडरावाले) को गिरफ्तार न किया जाए। वर्ना हालात और भड़क जाएंगे। पंजाब में हालात बेकाबू होते जा रहे थे। ऐसे में एक राजनीतिक संदेश देने के लिए इंदिरा गांधी ने 1982 में अपने कैबिनेट मंत्री ज्ञानी जैल सिंह को राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस का उम्मीदवार बना दिया और फिर कुछ ही दिनों में ज्ञानी जी निर्विरोध देश के राष्ट्रपति चुन लिए गए। जब सर्वसम्मति से ये फैसला हो गया था कि ज्ञानी जैल सिंह ही देश के राष्ट्रपति बनेंगे तो उसी दौरान जैल सिंह का एक बयान काफी सुर्खियों में आया था। ज्ञानी जैल सिंह ने इंदिरा गांधी के प्रति अपनी वफादारी जताते हुए बयान दिया कि मैं अपनी नेता का हर आदेश मानता हूं। अगर इंदिरा जी कहेंगी कि मैं झाडू़ उठाकर सफाई करूं तो मैं जमादार भी बन जाऊंगा।


अलग खालिस्तान की मांग हुई तेज
जून 1984 में मतलब ज्ञानी जैल सिंह के राष्ट्रपति बनने के दो साल बाद ही जून का महीना इतिहास की तारीखों में अमिट है। अलग खालिस्तान की मांग अब तेजी से फैल चुकी थी। भिंडरावाले ने अपनी खुद की एक फौज बना ली थी। भिंडरावाले को अब रोकना सरकार के लिए नामुमकिन जैसा हो गया। सरकार के माथे पर चिंता की लकीरें थीं, हालात दिन पर दिन बिगड़ते जा रहे थे। इंदिरा गांधी के सामने समस्याएं थी कि कैसे वो भारत का टुकड़ा होने से बचाए। इंदिरा गांधी सख्त फैसले लेने वाली नेताओं में शुमार थीं। फिर योजना बनाई गई ऑपरेशन ब्लू स्टार की। खास बात ये है कि राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को इसकी भनक तक नहीं लगने दी गई। उस वक्त ये कहा जाता था कि राष्ट्रपति कट्टरपंथी आतंकियों के लिए सॉफ्ट हार्ट रखते हैं। इसी का कारण था कि इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार की उनको भनक तक नहीं लगने दी।

स्वर्ण मंदिर में भिंडरावाले ने डाला डेरा
ऑपरेशन ब्लू स्टार में सेना ने योजना बनाई। उस वक्त सिखों के सबसे बड़े आस्था के केंद्र अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में भिंडारावाले डेरा डाले हुआ था। अब सरकार और सेना के सामने चुनौती थी कि वो स्वर्ण मंदिर पर कैसे गोलीबारी करे। क्योंकि इससे देश का माहौल और ज्यादा बिगड़ने की आशंका थी मगर इंदिरा गांधी के पास और कोई उपाय भी नहीं था। भिंडारावाले की गतविधियां हर रोज बढ़ती जा रहीं थीं। सेना ने चारों से घेरकर गोलीबारी की। सेना स्वर्ण मंदिर में घुसी और फिर भिंडरावाले सहित उसके कमांडर को मार गिराया गया।

ऑपरेशन ब्लू स्टार की नहीं लगी भनक
इस ऑपरेशन में आम लोगों की जान भी गई थी और अकाल तख्त का नुकसान भी हुआ था। इसकी भनक जब जैल सिंह को हुई तो वो गुस्से से तमतमा गए। उन्होंने सरकार से पूछा कि उनको इस बारे में क्यों नहीं बताया गया। कांग्रेसी खेमे में ज्ञानी जैल सिंह का विरोध इतना बढ़ गया था कि उनको सफेद पगड़ी वाला अकाली बुलाया जाना लगा था। मगर इंदिरा गांधी आखिरकार अपने निर्णय पर कायम रही और उसका नतीजा हुआ कि खालिस्तान की मांग शांत पड़ गई और इसकी कीमत इंदिरा गांधी ने जान देकर चुकाई।

अर्जुन सिंह की किताब में खुलासा
पूर्व केन्‍द्रीय मंत्री अर्जुन सिंह ने आत्मकथा लिखी। इस किताब का नाम है ‘अ ग्रेन ऑफ सैंड इन द आवरग्लास ऑफ टाइम।’ इस किताब में ऐसी बातों का जिक्र किया गया है जिससे तमाम बहस भी होने लगी। कई लोगों ने इस किताब के तथ्यों को सही बताया तो किसी ने मनगढ़ंत कहानी करार दिया। लेकिन राजनीतिक इतिहास को वक्त का पहिया पलटकर आप नहीं देख सकते। उसी दौर पर लिखी गईं किताबें ही हकीकत बयां करती हैं। अर्जुन सिंह ने लिखा है कि राजीव गांधी के कार्यकाल में उन्हें हटाने के लिए ज्ञानी जैल सिंह और कुछ कांग्रेसियों ने पूरी प्लानिंग कर रखी थी।

गांधी परिवार के करीबी माने जाते थे अर्जुन सिंह
अर्जुन सिंह को गांधी परिवार का करीबी माना जाता था। इसके अलावा पार्टी की अंदरुनी राजनीति में वो सक्रिय भूमिका निभाते थे। अर्जुन सिंह नेहरुवादी विचारधारा के समर्थक और गांधी परिवार के वफादार रहे। अर्जुन सिंह ने अपनी आत्मकथा में एक और किस्से का जिक्र किया है। ये बात है 1987 के मध्य की। किताब में उन्होंने लिखा था कि विदेश मंत्रालय से रिटायर्ड हो चुके के.सी. सिंह ने मुझसे मुलाकात का वक्त मांगा। मैंने समय दे दिया, वे मेरे पास एक ऊटपटांग सूचना लेकर आए कि तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह प्रधानमंत्री राजीव गांधी को उनके पद से हटाने वाले हैं. वे जानना चाहते थे कि क्या मैं राजीव की जगह लेने को तैयार हूं।

राजीव गांधी का तख्तापलट चाहते थे ज्ञानी जैल सिंह
किताब में लिखा है कि अर्जुन सिंह ने ये बात राजीव गांधी को बता दी और राजीव गांधी ने उनसे कहा, ‘आपने सही किया, अगर ये शख्स दोबारा आपसे मिलने के लिए वक्त मांगे तो पहले मुझे बता दीजिएगा। अर्जुन सिंह ने लिखा है इंटेलिजेंस एजेंसियों ने उन्हें केसी सिंह से मिलने की सलाह दी। दूसरी मुलाकात में भी के.सी. सिंह ने यही सवाल पूछा। अर्जुन सिंह लिखते हैं, के.सी. सिंह ने बताया कि कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने राष्ट्रपति की इस बात पर हामी भर दी है कि सही वक्त पर सामूहिक कार्रवाई होगी। हमारी बातचीत टेप हो रही थीं। मैनें कांग्रेस नेताओं के नाम पूछे। अर्जुन सिंह ने ये भी लिखा है कि वो उन नेताओं के नाम नहीं बताएंगे। इस तरह तत्कालीन पीएम राजीव गांधी से भी उनके रिश्ते खराब हो चुके थे। यानी कि एक वक्त था जब वो इंदिरा गांधी के फेवरेट वन होते थे। पंजाब में अलग खालिस्तान की मांग को शांत करने के लिए उन्हें राष्ट्रपति बना दिया गया। मगर ये रिश्ता बहुत ज्यादा नहीं चला। आखिर में जब उन्होंने राजीव गांधी को ही सत्ता से बेदखल करने का प्लान बनाया तो अर्जुन सिंह ने उनके प्लान का सत्यानाश कर दिया।

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