यूनियन कार्बाइड का ज़हरीला कचरा आख़िर इंदौर के समीप पीथमपुर पहुँचा ही दिया गया। सरकार के सूत्र बताते हैं कि डॉक्टरों, विशेषज्ञों, सामाजिक संगठनों से लेकर स्थानीय नागरिकों और पक्ष-विपक्ष के जनप्रतिनिधियों के विरोध के बावजूद यह कचरा पीथमपुर में ही जलाया जायेगा। ऐसा इसलिये नहीं कि यही सही फ़ैसला है, बल्कि इसलिये कि ये पूरा खेल हज़ारों करोड़ की डीलिंग का भी है। इस पूरे खेल के असली किरदार कौन हैं, यह तो वक्त के साथ पता चलेगा परन्तु अभी पूरे खेल में मुख्यमंत्री मोहन यादव ने भोपाल में और मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने इंदौर व पीथमपुर में मोर्चा सँभाला हुआ है।
*आईये ! ये गन्दा खेल समझते हैं-*
2 व 3 दिसंबर, 1984 की रात को यूनियन कार्बाइड कीटनाशक फैक्ट्री से अत्यधिक जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस लीक हुई थी, जिससे कम से कम 5,479 लोगों की मौत हो गई थी और हज़ारों लोगों को गंभीर और दीर्घकालिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो गई थीं।
भोपाल गैस त्रासदी के बाद यूनियन कार्बाइड की कीटनाशक फ़ैक्ट्री हमेशा के लिये बंद हो गई और फ़ैक्ट्री को बैंकों से मिला क़र्ज़ NPA होकर डूबने की श्रेणी में आ गया।
लोन देते वक्त बैंक ने यूनियन कार्बाइड की ज़मीन और अन्य संयंत्रों को मॉडगेज कर लिया था, इसलिये बैंकों के पास अपना क़र्ज़ वसूलने का एक मात्र विकल्प था यूनियन कार्बाइड की ज़मीन की बिकवाली कर कर्ज वसूलना।
बैंक यूनियन कार्बाइड की भूमि नीलाम करने की योजना बनाते भी तो कैसे, क्योंकि नीलामी में सबसे बड़ी बाधा इस ज़मीन पर रखा 347 मैट्रिक टन ज़हरीला कचरा था, जिसके निस्तारण के बिना भूमि को बेच पाना लगभग नामुमकिन था।
यहीं से घोटाले का सारा खेल शुरू हुआ और बीजेपी के मध्यप्रदेश से लेकर केन्द्र तक के कुछ नेताओं की नज़र में पूरा मामला आ गया। अब इस ज़मीन से कचरा हटाना और जमीन हथियाना बीजेपी नेताओं की पहली प्राथमिकता बन गई।
बीजेपी के धुरंधर नेताओं ने देश-विदेश एक करते हुए बैंकों से संपर्क किया और ज़मीन से ज़हरीला कचरा हटाने के एवज़ में यह शर्त रखी कि नीलामी में यह ज़मीन उन्हें/उनके साथियों को ही दी जायेगी।
अपना करोड़ों रूपये का कर्ज वसूलने के लिए बैंक ने भी बीजेपी नेताओं को ही ज़मीन बेचने की शर्त मान ली और पूरा काम बीजेपी नेताओं को ठेके पर दे दिया।
बीजेपी नेताओं ने खुद को सुरक्षित रखने के लिए कुछ स्थानीय लोगों और भूमाफ़ियों से कोर्ट में केस लगवा दिया और फिर अदालत के कंधे पर रखकर बंदूक़ चलाते रहे।
अभी भी जो कचरा भोपाल से पीथमपुर भेजा गया है, उसके पीछे अदालती आदेश का ही हवाला दिया जा रहा है, जबकि अदालती आदेश केवल जनता की आँखों में धूल झोंकने की कोशिश है।
बीजेपी सरकार के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय कह रहे हैं कि कोर्ट ने एक महीने में कचरा पीथमपुर भेजकर निस्तारण का आदेश दिया है, जबकि हक़ीक़त यह है कि 29 मई 2024 को ही मोहन यादव सरकार ने कचरा पीथमपुर भेजने के लिये 126 करोड़ की स्वीकृति दे दी थी।
मोहन यादव सरकार ने पीथमपुर की कचरा जलाने वाली संस्था मेसर्स पीथमपुर इंडस्ट्रियल वेस्ट मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड को दिनांक 29 मई 2024 को ही 20% की राशि 21.37 करोड़ का भुगतान भी कर दिया था।
जब पीथमपुर के लोगों ने विरोध शुरू किया तब कैलाश विजयवर्गीय ने इस पूरी प्रक्रिया के पीछे अदालत के आदेश का हवाला दिया, जबकि हक़ीक़त में मोहन यादव सरकार ने अदालत के आदेश के पहले ही पूरी प्रक्रिया कर भुगतान तक कर दिया था।
मोहन यादव सरकार ने अपना दामन सुरक्षित रखने के लिये अदालत से भी एक आदेश निकलवा दिया ताकि जनता का संदेह बीजेपी के भ्रष्ट नेताओं पर नहीं जाय। देश बीजेपी के भ्रष्टाचार पर मौन रहने वाली समझौता वादी अदालत का साक्षी खुद है।
*इन सवालों के जवाब कौन देगा ?*
वो कौन लोग थे जो बार बार अदालत जाकर भोपाल से कचरा कहीं और भेजना चाहते थे ?
अदालत के फ़ैसले के बाद मोहन यादव सरकार ने अपील में जाने या अन्य रास्ता खोजने की बजाय रातों रात कचरा पीथमपुर भेजने का विकल्प क्यों चुना ?
इंदौर के प्रभारी मंत्री मोहन यादव और इंदौर के स्थानीय मंत्री कैलाश विजयवर्गीय जनता के साथ क्यों खड़े नहीं नज़र आये ?
जो कचरा 40 वर्षों से एक जगह पर पड़ा था, ऐसी क्या वजह रही कि मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के एक वर्ष में ही वो पीथमपुर भेज दिया गया।
मोहन यादव और कैलाश विजयवर्गीय डॉक्टरों और विशेषज्ञों की बात क्यों नहीं सुन रहे हैं ? कौन सा प्रेशर है जो पूरे मालवा की जान ख़तरे में डाल दी गई है ?
बीजेपी के वो कौन से नेता हैं जो इस पूरे मामले के लाभार्थी हैं ?
भोपाल की यूनियन कार्बाइड की ज़मीन ख़ाली होने के बाद बीजेपी के कौन लोग इस ज़मीन का इस्तेमाल करने वाले हैं ?
*कुल मिलाकर यह पूरा खेल ज़मीन माफिया, बीजेपी और भ्रष्ट अधिकारियों/मंत्रियों की कारगुज़ारी का है। लाखों लोगों की जान संकट में डालकर ये अपनी तिजोरी भरना चाहते हैं। इन बेईमानों को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि मालवा की आने वाली पीढ़ियाँ विकलांग पैदा होंगी या हर घर में कैंसर से मौत होगी। बीजेपी अब भ्रष्टाचार का भस्मासुर बन चुकी है। सब कुछ निगलने को तैयार भस्मासुर।*
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