शशिकांत गुप्ते
संत शब्द का शाब्दिक अर्थ है
‘सन्त’ शब्द ‘सत्’ शब्द के कर्ताकारक का बहुवचन है। इसका अर्थ है – साधु, संन्यासी, विरक्त या त्यागी पुरुष या महात्मा। … ईश्वर के भक्त या धार्मिक पुरुष को भी संत कहते हैं।
संत का सात्विक अर्थ जानने के बाद एक व्यवहारिक प्रश्न जहन में उभरकर आता है।संतो के साथ छल क्यों हुआ?
संत ज्ञानेश्वर,जिन्होंने मात्र 22 वर्ष की आयु में समाधि ले ली।संत ज्ञानेश्वर में समस्त प्राणियों में ईश्वर है,क्या यह कहकर घोर अपराध किया?संत तुकाराम के सिर्फ छल ही नहीं किया बल्कि उनके द्वारा जनजगृति के लिए लिखे साहित्य को नदी में डुबो दिया,कबीरसाहब को प्रताड़ित किया गया।मीरबाई के साथ छल किया गया।छल और कपट से प्रताड़ित किए गए संतो की बहुत लंबी फेरहिस्त है।
अन्याय,अत्याचार,के विरुद्ध अहिंसक संघर्ष करने वाले और साम्प्रदायिक सौहाद्र के पक्षधर अहिंसा के पुजारी बापू को स्वतंत्रत भारत में गोली मार दी जाती है?मरणोपरांत भी बापू को शब्दिक रूप से प्रताड़ित किया ही जा रहा है।डॉ रामनोहर लोहियाजी को पागल तक कहा गया।डॉ लोहियाजी ने कहा था, लोग मेरी बात मानेंगे जरूर मानेंगे मेरे मरने के बाद
साधारण व्यक्ति के जहन में सामान्यज्ञान का प्रश्न उभर कर आता है,संतो ने विचारकों ने और चिंतकों ने ऐसी कौनसी सी गलत बात की होगी?जिससे उन्हें प्रताड़ित किया गया?
मूर्तिपूजा के विरोधी स्वामी दयानंद सरस्वती को विषपान करवाया गया?
क्या जन जागृति का अलख जगना घोर अपराध है?
संत रामदासजी के अनुयायियों को इस नियम का पालन करना पड़ता था कि, भिक्षा मांगकर अपना उदर निर्वाह करना।भिक्षा मांगने का भी नियम बहुत कठिन था। प्रतिदिन सिर्फ पाँच घरों में भी भिक्षा मांगना।वह भी सिर्फ तीन बार बोलकर भिक्षां देहि।
तीन बार बोलने पर भिक्षा नहीं मिली तो अगले द्वार पर जाना।यदि पांचों घर भिक्षा नहीं मिली तो उपवास करना।स्वयं रामदासजी रामदासजी तो, भिक्षा में प्राप्त अन्न को कपड़े की पोटली में बांध कर उसे बहती नदी में धो डालते थे।अर्थात स्वादहीन कर अपनी तृष्णा को ही समाप्त कर लेते थे।रामदासजी के अनुयायियों के लिए तात्कालिक समय में भंडारे के आयोजन नहीं होतें थे?
संत गोरा कुम्हार कुम्हार ही थे।संत दादूदयाल पिंजारे थे,संत रविदास मौची थे।संत नामदेव दर्जी थे।संत सवता माली माली समाज के थे।सूफी संतों की भी बहुत लंबी सूची है।रसखान जैसे बहुत से मुस्लिम संतों ने भगवान की भक्ति के भजन लिखे है गाएँ हैं।
प्रख्यात शायर स्व.अनवर जलालपुरी ने भगवत गीता का उर्दू भाषा में तर्जुमा किया,मतलब गीता का उर्दू अनुवाद किया है।
महाराष्ट्र की एक मुस्लिम युवती मराठी भाषा में लिखे भगवान के भक्ति गीत गाती है।
सौवी सदी में जो प्रगतिशील विचारक हुए उन्हें पागल घोषित करने की कुचेष्टा की गई।
अंधश्रद्धा के विरुद्ध अभियान छेड़ने वालों की हत्या की जाती है।
आश्चर्य होता है, यह सब इक्कसवीं सदी में हो रहा है।वह भी भारत जैसे विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में।असहमति तो लोकतंत्र की बुनियाद है।
किसी के विचारों से किसी का भी असहमत होना तो, मानव का स्वाभाविक गुण है।
उपर्युक्त विचारों पर बहुत गम्भीरता से विमर्श की आवश्यकता है।विमर्श भी व्यापक दृष्टिकोण रखते हुए होना चाहिए।
फ़िरंगियों द्वारा फैलाई गई कुटिलता के शिकार लोग ही साम्प्रदायिक सौहाद्र को बिगाड़ने के कुचेष्ठा करतें हैं।
अंग्रेजो ने स्वयं के अर्थात उंनके अपने संविधान में लिखा है।
उन्होंने भारत को स्वतंत्रता नहीं दी है,बल्कि Communal Award अर्थात साम्प्रदायिक पारितोषिक दिया है।
यथार्थ में भारत की पहचान है।अनेकता में एकता।
भारत की इस पहचान कोई भी मिटा नहीं सकता है।
शशिकांत गुप्ते इंदौर