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JDU से समर्थक जुटाकर नई पार्टी बनाएंगे उपेंद्र कुशवाहा 

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‘सीएम नीतीश को कुछ लोग गलत सलाह दे रहे हैं, नीतीश कुमार मुझे मेरा हिस्सा दें, नीतीश कुमार RJD वाली डील रद्द करें।’ ये कुछ ऐसी बातें हैं जो उपेंद्र कुशवाहा खुल कर कहने लगे हैं। इससे एक बात तो साफ हो गई है कि उपेंद्र कुशवाहा JDU का RJD में न तो विलय चाहते हैं और न ही तेजस्वी को यादव को सीएम बनते देखना। उनके दिल की हसरत कुछ और थी, जो महागठबंधन बनते ही चूर-चूर हो गईं। अब लाख टके का सवाल ये है कि उपेंद्र कुशवाहा JDU में रह कर कब तक मोर्चा खोले रहेंगे। आखिर कब तक वो इसी तरह से नीतीश कुमार पर हमला बोलते रहेंगे। इस सवाल का जवाब हमारे एक विश्वसनीय सूत्र ने दे दिया।

जेडीयू से समर्थक जुटाने के जुगाड़ में कुशवाहा- सूत्र

NBT को एक विश्वस्त सूत्र ने बड़ी जानकारी दी। इस सूत्र के मुताबिक उपेंद्र कुशवाहा जानबूझकर देर नहीं कर रहे, वो तो इंतजार कर रहे हैं। उपेंद्र कुशवाहा ने JDU में रह कर ही मोर्चा खोल दिया। उन्हें अच्छे से पता है कि ऐसे अभी कई नेता और कार्यकर्ता हैं जिन्हें JDU का RJD से मेल पसंद नहीं है। कुशवाहा बस ऐसे नेताओं-कार्यकर्ताओं के पत्ते खोलने के इंतजार में हैं। कुशवाहा को बखूबी मालूम है कि अगर अलग राह पकड़नी है तो संख्या बल भी जरूरी है। इसीलिए उपेंद्र कुशवाहा JDU से अपने समर्थकों को जुटाने के जुगाड़ में भिड़े हुए हैं।

कुशवाहा नया सिंबल लेंगे फिर होगा खेला- सूत्र

हमारे इस खास सूत्र के मुताबिक उपेंद्र कुशवाहा ने करीब-करीब ये मान लिया है कि अब वो जेडीयू में रह कर इस लड़ाई को लंबा नहीं खींच सकते हैं। ऐसे में उन्हें नई पार्टी बनानी होगी। हमारे सूत्र के मुताबिक उपेंद्र कुशवाहा इस बार पिछली गलती दोहराने के मूड में नहीं हैं। वो विलय कर खुद को किसी पार्टी का हिस्सा नहीं बनाएंगे बल्कि फिर से नई पार्टी और नया सिंबल लेंगे। यानि इस बार RLSP की जगह नाम कुछ और होगा, लेकिन कुशवाहा नई पार्टी बनाने के मूड में हैं। हमारे सूत्र का कहना है कि हो सकता है इसके बाद कुशवाहा बीजेपी की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाएं। ऐसे में उनका कद भी बना रहेगा और फिर से विलय के बाद किनारे किए जाने का खतरा भी नहीं होगा।
सूत्र के दावे और फिलहाल चल रही राजनीति हलचल को देखें तो बात में दम नजर आता है। उपेंद्र कुशवाहा ने 19 और 20 फरवरी को पटना की सिन्हा लाइब्रेरी में एक बैठक बुलाई है। कुशवाहा को ये उम्मीद है कि इस बैठक में उनके (RJD-JDU के मेल से नाराज) समर्थक जुटेंगे। इस दिन कुशवाहा को ये पता चल जाएगा कि संख्या बल के हिसाब से उनकी हैसियत क्या है। फिर वो आगे का फैसला ले लेंगे। लेकिन भीतर ही भीतर कुशवाहा ये मान चुके हैं कि अब JDU में रहकर नीतीश-ललन की जोड़ी से बैर लिए रहने का कोई फायदा नहीं है। अगर लड़ाई लड़नी है तो इसके लिए JDU के दायरे से बाहर आना होगा।

कामयाबी के कितने करीब कुशवाहा?

एक तरह से देखा जाए तो 19 और 20 फरवरी की बैठक को लेकर उपेंद्र कुशवाहा की धड़कनें भी बढ़ी हुई होंगी। इसकी वजह ये है कि ये दो दिन कुशवाहा का भविष्य तय करेंगे। ये एक तरह से उपेंद्र कुशवाहा की उम्मीदों का लिटमस टेस्ट होगा।

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