अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

मोदी राज में अमेरिकी राजदूत के मणिपुर में जारी हिंसा पर “मानवीय चिंता”के मायने 

Share

रविन्द्र पटवाल 

नई दिल्ली। अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी भारत दौरे पर हैं। इन दिनों वह कोलकाता में हैं। गुरुवार को उन्होंने पत्रकारों के साथ अपनी बातचीत में मणिपुर में जारी हिंसा पर अपने देश (अमेरिका) की “मानवीय चिंताओं” के बारे में बात रखी, और मदद करने की पेशकश की। अमेरिकी राजदूत यहीं पर नहीं रुके, बल्कि उन्होंने भारत में लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए “सभी लोगों के बीच में अपनापन की भावना पैदा करने” की आवश्यकता पर बल दिया।

पश्चिम बंगाल से निकलने वाले अंग्रेजी दैनिक द टेलीग्राफ के पत्रकार द्वारा भारत में अल्पसंख्यकों के अधिकारों और लोकतंत्र के वृहत्तर मुद्दे पर सवाल किया तो गार्सेटी का कहना था, “जब आप मणिपुर के बारे में अमेरिकी चिंताओं के बारे में जानना चाहते हैं तो मेरे हिसाब से यह रणनीतिक चिंताओं के दायरे में नहीं आता है, यह मानवीय चिंताओं से संबद्ध है… जब इस प्रकार की हिंसा में बच्चे और लोग मारे जा रहे हो तो आपका भारतीय होना आवश्यक नहीं है।”

उन्होंने आगे कहा, “यदि हमसे किसी भी प्रकार की मदद मांगी गई तो हम उसके लिए तैयार हैं। हमें पता है कि यह भारतीय मसला है और हम शांति के लिए प्रार्थना करते हैं और यह जल्द सुनी जाए। यदि शांति स्थापित हो जाती है तो हम और ज्यादा समझौते, परियोजनाएं और निवेश लाने में सफल हो सकते हैं।”

यहां पर ध्यान देना चाहिए कि किसी भी देश में राजदूत अपने देश का प्रतिनधित्व करता है। अमेरिकी राजदूत यहां पर संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। वे कोई सामान्य अमेरिकी नागरिक या अमेरिकी जनता का पक्ष नहीं रख रहे हैं। यह सीधे-सीधे संकेत है कि अमेरिका भारत के एक राज्य में सांप्रदायिक हिंसा से खुश नहीं है, और भारतीय सरकार को परोक्ष रूप से निर्देशित कर रहा है। भारत के भीतर मणिपुर समेत तमाम राज्यों में केंद्र सरकार की दखलंदाजी, लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई राज्य सरकारों को धन-बल, ईडी-सीबीआई का डर दिखाकर बदला जा चुका है।

कश्मीर में सरकार गिराकर धारा 370 को निरस्त किये 4 साल बीत चुके हैं, लेकिन अभी तक लोकतंत्र को स्थापित नहीं किया गया है। तमिलनाडु में राज्यपाल संवैधानिक परम्पराओं को ताक पर रखकर एक आरोपी मंत्री को बर्खास्त कर देता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अमेरिका, चीन या ब्रिटेन के राजदूत भारतीय सरकार को निर्देश देने लग जाएं। 

वैसे अमेरिका के लिए यह कोई नई बात नहीं है। इतिहास में ऐसे सैकड़ों उदाहरण भरे पड़े हैं, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका अपने मिलिटरी-इंडस्ट्रियल कॉम्प्लेक्स के भू-राजनैतिक हितों के लिए न सिर्फ हस्तक्षेप करता आया है, बल्कि मानवाधिकारों की रक्षा के नाम पर सैनिक कार्यवाही तक को अंजाम देता है। इतनी बड़ी बात आजतक किसी विदेशी राजदूत ने नहीं कही है। लेकिन अमेरिका एक हाथ से निवेश का लालच देता है और दूसरे हाथ में कोड़े से मनमुताबिक चलने का निर्देश देता है।

हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली राजकीय यात्रा में भी ये दोनों पक्ष साफ़ नजर आते हैं। एक तरफ तो राष्ट्रपति जो बाइडेन सपत्नीक प्रधानमंत्री को दो-दो बार डिनर के लिए आमंत्रित करते हैं, संयुक्त सदन को संबोधित करने का ख़ास अवसर प्रदान करते हैं, वहीं दूसरी तरफ इतिहास में पहली बार किसी विदेशी प्रमुख का इतने बड़े पैमाने पर सांसद/सीनेटर विरोध करते हैं। यही नहीं पूर्व राष्ट्रपति एवं जो बाइडेन के उप-राष्ट्रपतित्व काल में एक समय के सबसे चर्चित और नोबेल पुरस्कार विजेता बाराक ओबामा के द्वारा भारतीय लोकतंत्र के मौजूदा हालात पर गहरी चिंता का व्यक्त किया जाना अकारण नहीं था।

पश्चिमी अखबार और उसमें छपने वाले विश्लेषण बताते हैं कि डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए चीन से निपटने के लिए एक तरफ भारत को अपने पाले में लाने की सायास कोशिश तो दूसरी तरफ भारत में अल्पसंख्यकों, बढ़ती निरंकुशता और लोकतंत्र में क्षरण पर अमेरिका में अपने समर्थक आधार के गुस्से से निपटने की दोहरी जिम्मेदारी थी। वर्तमान राष्ट्रपति और पूर्व राष्ट्रपति ने अपनी-अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई। 

पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने अमेरिकी राजदूत की टिप्पणी पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है, “अपने सार्वजनिक जीवन में याद करूं तो पिछले चार दशक में मैंने कभी किसी अमेरिकी राजदूत को भारत के आंतरिक मामलों में इस प्रकार का बयान देते नहीं देखा है। दशकों तक हमारे सामने पंजाब, जम्मू-कश्मीर की चुनौतियाँ रहीं, जिसे हमने बौद्धिक परिपक्वता और समझदारी से हल किया है। यहाँ तक कि जब 90 के दशक में भारत में अमेरिकी राजदूत बातूनी हो सकते थे, भारत पूरी तरह से चौकस था।”

वहीं भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची के अनुसार, “मैंने अभी अमेरिकी राजदूत गार्सेटी की टिप्पणी नहीं देखी है। यदि उन्होंने ऐसा कहा है तो हम उसे देखेंगे… मेरे विचार में हम भी वहां शांति चाहते हैं और हमारी एजेंसी और सुरक्षा बल और स्थानीय सरकार इसके लिए काम कर रही हैं। मेरी जानकारी में विदेशी राजनयिक भारत के आंतरिक मामलों में आम तौर पर टिप्पणी नहीं करते हैं, लेकिन मैं ठीक-ठीक क्या कहा गया है, को देखे बिना कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता।”

अरिंदम बागची की टिप्पणी बताती है कि मोदी सरकार अभी तक इस बारे में कोई ठोस फैसला नहीं ले पाई है।  यहीं पर पड़ोसी देश पाकिस्तान होता, तो अभी तक आधा दर्जन भर केंद्रीय मंत्री और दर्जनों  भाजपा प्रवक्ताओं की बाईट और प्रेस कांफ्रेंस जारी हो चुकी होती। कथित राष्ट्रीय मीडिया पानी पी-पीकर किसी पेड पाकिस्तानी पत्रकार या रक्षा विशेषज्ञ को बुलाकर सारा बदला उसी से ले रहे होते।

चूंकि यह बात किसी और ने नहीं बल्कि सीधे उस देश के राजदूत ने कही है, जो भारत को चीन+ देश बनाने के सपने दिखा रहा है, तो उसके खिलाफ बोलने से पहले सौ बार सोचना आज सरकार को जरुरी है। इसके लिए सरकार से अधिक भारतीय कॉर्पोरेट घराने जिम्मेदार हैं, जिनके हाथों में वो अदृश्य डोर है, जो भारत को किसान, मजदूर, छात्र विरोधी नीतियों को अमल में लाने के लिए बाध्य कर रही हैं। विदेशी पूंजी के सहयोग से भारतीय सेंसेक्स लगातार नई-नई ऊंचाइयों को छू रहा है, और उनके साथ बन्दरबांट के बावजूद भारतीय कॉर्पोरेट को लाभ ही लाभ है। 

जहां तक देश की संप्रभुता का प्रश्न है, भारत सरकार को इस विषय को अत्यंत गंभीरता से लेना चाहिए। विदेश मंत्रालय को इस बारे में तत्काल अपने समकक्ष को भारतीय चिंताओं से अवगत कराना चाहिए। भारत के आंतरिक मामलों में अमेरिकी दखल की घोर निंदा करते हुए तत्काल अमेरिकी राजदूत को नई दिल्ली में तलब किया जाना चाहिए। यदि आज अंकल सैम के हैमबर्गर और कोक के लालच में अंधे होकर भारतीय कॉर्पोरेट की तरह भारतीय नीति-निर्धारकों ने इसे सुनकर भी अनसुना करने की भूल की तो वह दिन दूर नहीं जब इसके भारी खामियाजे के लिए देश को तैयार रहना होगा।

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें