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हादसों का पर्याय ही बना रहा 2023 में उत्तराखंड!

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डॉ श्रीगोपाल नारसन

हिमालयी राज्य उत्तराखंड में सन 2023 में भी कई ऐसी घटनाएं घटीं जिन्होंने उत्तराखंड में ही नहीं बल्कि देश-विदेश में भी हलचल मचा दी। सन 2023 के जनवरी माह में जोशीमठ से मकानों और सड़कों पर दरारें पड़ने से स्थानीय लोगो मे भय व्याप्त हो गया। जोशीमठ में भू-धंसाव का कारण जहां बेतरतीब भवन व सड़क निर्माण होने से हुए पानी का रिसाव, मिट्टी का कटाव और मानव जनित कारणों से जल धाराओं के प्राकृतिक प्रवाह में रुकावट को माना गया है,वही कुछ भूगर्भीय कारण भी माने जा रहे है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पिछले दो दशक में जोशीमठ का अनियंत्रित विकास ही भूधसाव का कारण बना है।साथ ही भारी बारिश और वर्षभर घरों से निकलने वाला पानी नदियों में जाने के बजाय जमीन के भीतर समा जाने से भी हालत बिगड़ी है,यह भी भू-धंसाव का एक प्रमुख कारण माना जा रहा है।


धौलीगंगा और अलकनंदा नदियां विष्णुप्रयाग क्षेत्र में लगातार नीचे से कटाव हो रहा हैं। इसी कारण से जोशीमठ में भू-धंसाव के हालात बने है। सन 2013 में आई भयंकर केदारनाथ आपदा,सन 2021 की रैणी आपदा, बदरीनाथ क्षेत्र के पांडुकेश्वर में बादल फटने की घटनाएं भी भू-धंसाव के लिए जिम्मेदार कही जा रही हैं।
जोशीमठ की इन भू-धसाव रूपी दरारों को भरने के लिए उत्तराखंड सरकार ने मार्च 2023 में एक हजार करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया । इसके बाद केंद्र सरकार से भी राहत पैकेज देने की बात कही गई।


जोशीमठ उत्तराखंड के चमोली जिले में एक ऐसा प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज शहर है,जो 6150 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। जोशीमठ को बद्रीनाथ व अन्य धामो का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। यह आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार प्रमुख पीठों में से एक है। धार्मिक, पौराणिक और एतिहासिक शहर होने के साथ ही यह पर्वतीय क्षेत्र सामरिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। यहां से भारत-तिब्बत सीमा 100 किलोमीटर दूरी पर स्तिथ है। हेमकुंड साहिब, औली, फूलों की घाटी आदि स्थानों पर जाने के लिए यात्रियों को यही जोशीमठ से होकर जाना पड़ता है।


चमोली में भी नमामि गंगे प्रोजेक्ट की साइट पर करंट फैलने से 16 की मौत हो गई थी और 11 लोग बुरी तरह झुलस गए थे।यह घटना जुलाई सन2023 की है। हादसे के समय नमामि गंगे प्रोजेक्ट की साइट पर काम चल रहा था और जिस समय हादसा हुआ, उस समय साइट पर 24 लोग काम कर रहे थे। ऊर्जा निगम के अधिशासी अभियंता अमित सक्सेना के अनुसार, बिजली का तीसरा फेस डाउन हो गया था, तीसरे फेज को जोड़ा गया तो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट परिसर में करंट फैल गया। ट्रांसफार्मर से लेकर मीटर तक कहीं एलटी और एसटी के तार नहीं टूटे थे, मीटर के बाद तारों में करंट दौड़ने से यह हादसा हुआ था।मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चमोली घटना में मृतकों के आश्रितों को पांच-पांच लाख रुपए और घायलों को एक-एक लाख रुपए की राहत राशि देने के निर्देश दिए थे।
अगस्त सन 2023 में गंगोत्री हाईवे पर गंगनानी के पास यात्रियों को लेकर जा रही एक बस खाई में गिर गई थी। हादसे में सात लोगों की मौत हो गई। वहीं, 28 लोग घायल हो गए थे।


सन 1995 में एक बस हादसे में 70 लोगो की जान गई थी।इसी तरह सन 2017 में हुए बस हादसे में 30 लोगों की मौत हो गई थी। डबराणी, गंगनानी और नालूपानी का तो हादसे की दृष्टि से काला इतिहास रहा है।यहां
20 सितंबर सन1995 को गंगोत्री हाईवे पर डबराणी में हुए बस हादसे में 70 लोगों की जान गई थी।9 जून 2003 को गंगोत्री हाईवे पर नालूपानी में कार हादसे में 4 लोगों की मौत हुई थी।


9 जुलाई 2006 को गंगोत्री हाईवे पर नालूपानी में बस हादसे में 22 लोगों की मौत हुई थी।
21 जुलाई 2008 को गंगोत्री हाईवे पर सुक्की में बस हादसे में 14 लोगों की मौत हुई थी।
10 दिसंबर 2009 को गंगोत्री हाईवे पर नालूपानी में मैक्स हादसे में 12 लोगों की मौत हुई थी।9 जून 2010 को गंगोत्री हाईवे पर गंगनानी में कार हादसे में पांच लोगों की मौत हुई थी।
1 अगस्त 2010 को गंगोत्री हाईवे पर डबराणी में ट्रक हादसे में 27 लोगों की मौत हुई थी।
21 मई सन 2017 को गंगोत्री हाईवे पर नालूपानी में बस हादसे में 30 लोगों की मौत हुई थी।
7 जून सन 2022 को यमुनोत्री हाईवे पर डाम्टा में बस हादसे में 26 लोगों की मौत हुई थी।वही उत्तराखंड के उत्तरकाशी में यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर सिलक्यारा से डंडालगांव तक निर्माणाधीन सुरंग के अंदर भूस्खलन होने से दिवाली पर बड़ा हादसा हो गया। सुरंग के सिलक्यारा वाले मुहाने के पास सुरंग का 60 मीटर हिस्सा टूट गया। जिससे सुरंग में मलबा आने के कारण 41 मजदूर सुरंग के अंदर फंस गए। इस हादसे की चर्चा उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देश-विदेश में हुई। राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार और देश-विदेश के एक्सपर्ट ने उत्तराखंड के उत्तरकाशी आकर इस रेस्क्यू अभियान में अपना हाथ बंटाया। राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार और देश-विदेश के एक्सपर्ट ने उत्तराखंड के उत्तरकाशी आकर इस रेस्क्यू अभियान में अपना हाथ बंटाया। यह घटना भारत की सबसे एक बड़ी घटना के रूप में चर्चित हो गई। सन 2023 के नवंबर में उत्तराखंड के नैनीताल में दो अलग-अलग सड़क हादसों में 14 लोगों की मौत हो गई थी।


नैनीताल के कोटाबाग ब्लॉक में बाघनी पुल के पास एक दिल्ली के नंबर की कार 500 मीटर गहरी खाई में गिरी। हादसे में कार में सवार पांच लोगों की मौत हो गई थी। नैनीताल के ओखलकांडा ब्लॉक के छीड़ाखान-रीठासाहिब मोटर मार्ग में एक टैक्सी वाहन के खाई में गिरने से 9 लोगों की मौत हो गई थी। साथ ही दो लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे। सन 2023 जून के महीने में उत्तराखंड के मुनस्यारी में भीषण सड़क हादसा हुआ। यहां एक बोलेरो जीप के गहरी खाई में गिरने से 9 लोगो की मौत हो गई थी। यह जीप बागेश्वर जिले के शामा से पिथौरागढ़ के नाचनी की तरफ जा रही थी।इन हादसों के साथ ही फिर से जोशीमठ की चर्चा करे तो बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पर्यटन के क्षेत्र में हुई अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी के कारण जोशीमठ महत्वपूर्ण जगह बन गई है,क्योंकि यही से होकर फूलों की घाटी का रास्ता जाता है और हेमकुंड साहिब भी यही से होकर जाते है। यहाँ से 12 किलोमीटर दूरऔली में एक बड़े स्कीइंग केंद्र की शुरुआत की गई जहाँ जाने के लिए 3915 मीटर लंबा रोपवे बनाया गया है।जिस ढाल पर जोशीमठ बसा हुआ है, वह एक प्राचीन भूस्खलन में इकठ्ठा हुए मलबे के ढेर से बना है।इसीकारण जोशीमठ के भवन जिस धरती पर बने हुए हैं उसके ठीक नीचे की सतह पर ठोस चट्टानें न होकर रेत, मिट्टी और कंकड़-पत्थर भरे हैं।ऐसी धरती बहुत अधिक बोझ बर्दाश्त नहीं कर पाती और धंसने लगती है। आधी शताब्दी पहले गढ़वाल के तत्कालीन कमिश्नर महेश चन्द्र मिश्रा की अध्यक्षता वाली एक कमेटी ने सन1976 में अपनी एक रिपोर्ट में चेताया था कि जोशीमठ के इलाक़े में अनियोजित विकास किया गया तो उसके गंभीर प्राकृतिक परिणाम होंगे।अंग्रेज़ आईसीएस अफसर एचजी वॉल्टन ने सन 1910 के जिस जोशीमठ का ज़िक्र किया है, वह थोड़े से मकानों, रैनबसेरों, मंदिरों और चौरस पत्थरों से बनाए गए नगर चौक वाला एक अधसोया-सा कस्बा था। जोशीमठ की जनसंख्या सन1872 में 455 थी, जो सन1881 में बढ़कर 572 हो गई थी।सितंबर 1900 में यह संख्या 468 रह गई ।बाद में समय के साथ जोशीमठ की जनसंख्या व भवन निर्माण बढ़ते चले गए,जो यहां की कमजोर धरती के लिए असहनीय हो गए।


परंपरागत रूप से बद्रीनाथ के रावलों और अन्य कर्मचारियों के शीतकालीन आवास के रूप में विकसित हुए जोशीमठ ने एक महत्वपूर्ण पड़ाव का रूप ले लिया है। आदि शंकराचार्य की तपस्थली जोशीमठ की आवासीय भूमि के लगातार धंसने से यहां के मकान व होटल जमींदोज होने लगे हैं। ऐतिहासिक नृसिंह मंदिर में भी दरारें आ गई हैं। अब तक 678 मकानों में दरारें आ चुकी हैं। सच यह है कि धार्मिक आस्था की नगरी जोशीमठ नहीं बल्कि हमारे स्वार्थ व लालच का पहाड़ दरक रहा है।जिसमे चपेट में पहाड़ में बसे लोगो के सपने भी आकर ध्वस्त होंने लगे है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक है)

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