गुजरात में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। सत्ताधारी दल बीजेपी को रोकने के लिए सभी राजनीतिक दल एक्टिव मोड में हैं। इस लिस्ट में अब एक नाम और जुड़ गया है। यह वह नाम है जो कभी मोदी का बेहद खास था। इन दोनों नेताओं की दोस्ती के न जाने कितने किस्से हैं। वही नेता अब पीएम नरेंद्र मोदी को उन्हीं के गढ़ में चुनौती देने के लिए कमर कस चुका है। यह नाम है शंकर सिंह वाघेला। वाघेला को गुजरात में लोग बापू के नाम से भी जानते हैं। वाघेला नई पार्टी का गठन कर रहे हैं। इस मौके पर उन्होंने राज्य की बीजेपी सरकार पर जमकर हमला किया और कहा कि इस पार्टी से राज्य की जनता ऊब चुके हैं। बीजेपी, कांग्रेस और आप, तीनों के मालिक एक ही हैं। उन्होंने चुनाव के लिए फ्री शिक्षा, बेरोजगारी भत्ता जैसे कई बड़े ऐलान भी किये। ऐसे में अब सवाल यह है कि क्या मोदी का खास दोस्त रहा यह नेता उनकी ही पार्टी के लिए सिरदर्द बनेगा?
मोदी के साथ ट्रेन की वह यात्रा?
वाघेला लगभग 45 सालों से सक्रिय राजनीति में हैं। छह बार लोकसभा का चुनाव लड़ा। तीन बार जीते। साल 1977 में पहली बार सांसद बने। 1984 से 1989 तक राज्यसभा के सदस्य रहे। 2004 से 2009 के बीच यूपीए की पहली सरकार में केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री रहे। वाघेला को गुजरात में लोग बापू भी कहते हैं। वो गुजरात के अकेले ऐसे नेता हैं जिन्हें गुजरात के 18,000 गांवों में कम से कम दस लोग जानते होंगे (एक सर्वे के अनुसार 2017 में उन्हें गुजरात में मोदी के बाद सबसे लोकप्रिय नेता माना गया था)।
गुजरात में मोदी के सबसे नजदीकी नेता रहे केशुभाई पटेल और दूसरे रहे वाघेला। वाघेला और मोदी के कई किस्से हैं। इन्हीं में से एक किस्सा है दोनों की ट्रेन की यात्रा। वह 1990 की गर्मी थी। दिल्ली अहमदाबाद जा रही ट्रेन में बिल्कुल भी जगह नहीं थी। उसी ट्रेन में दो सांसद भी यात्रा कर रहे थे। उस यात्रा के बारे में इंडियन रेलवे (ट्रैफिक) सर्विस में सीनियर अफसर लीना शर्मा ने लिखा। वे लिखती हैं कि सफर के दौरान हुए परिचय में मोदी और वाघेला ने अपना नाम बताया तो जरूर था। लेकिन तब उन्होंने ध्यान नहीं दिया था। यह सफर इतना यादगार रहा कि इन दो नेताओं को नहीं भूल सकीं। लीना शर्मा अपनी एक बैचमेट के साथ दिल्ली से अहमदाबाद जा रही थीं। वे तब रेलवे सर्विस में प्रोबेशनर थीं। उनका और उनकी बैचमेट का टिकट कन्फर्म नहीं हो सका। वो फर्स्ट क्लास बोगी के टीटीई से मिलीं जिसपर उसने मदद करने का भरोसा दिया। कुछ देर में टीटीई इन्हें एक कूपे की तरफ ले गया जहां सफेद खादी कुर्ता-पायजामा पहने दो नेता बैठे थे। इन दो सहयात्रियों ने लीना और उनकी दोस्त को बैठने की जगह दी। रात में खाने के समय चार वेज थाली आई। सबने खाना खाया और सभी का बिल मोदी ने भरा। जब सोने की बारी आई तो ये दोनों नेता अपनी सीट से उठ गए और दोनों महिला अफसरों को अपनी सीट दे दी और खुद फर्श पर चादर बिछाकर लेट गए।ट्रेन जब सुबह अहमदाबाद पहुंची तो इन दो नेताओं ने महिला अफसरों को दिक्कत होने की स्थिति में अपने यहां ठहरने की पेशकश भी की थी। लीना शर्मा ने ये पूरा वाकया एक अखबार में लिखा।
क्या मोदी को चुनौती दे पाएंगे वाघेला?
वाघेला पहले बीजेपी में थे। वह बीजेपी में कई बड़े पदों पर भी रहे। 1995 में बीजेपी की जीत के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद थी। लेकिन वह मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। जिसके बाद नाराज वाघेला ने बगावत कर दी और बीजेपी से अलग होकर साल 1996 में बीजेपी तोड़कर राष्ट्रीय जनता पार्टी बनाई। वाघेला बाद में कांग्रेस के समर्थन से गुजरात में मुख्यमंत्री बन गए थे। आगे चलकर वाघेला की राष्ट्रीय जनता पार्टी का कांग्रेस में विलय हो गया था। वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सदस्य भी रह चुके हैं।
वाघेला ने रविवार को घोषणा किया कि वो राज्य में अपनी नई पार्टी, ‘प्रजाशक्ति डेमोक्रेटिक पार्टी’ (पीडीपी) को लॉन्च करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। वाघेला ने कहा कि आगामी राज्य विधानसभा चुनाव के लिए उनका लक्ष्य सभी 182 सीटों पर अच्छे नेताओं के साथ चुनाव लड़ना है। एक सवाल के जवाब में कहा कि वह पीडीपी में शामिल होने के बारे में किसी भाजपा या कांग्रेस के नेताओं के साथ बातचीत कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अभी तक मैंने अपनी वर्तमान पार्टी को छोड़ने के बारे में किसी से बात नहीं की है। अगर वे मानते हैं कि यह पार्टी है। मौका है, वे मेरी पार्टी में जरूर शामिल होंगे। उन्होंने फ्री एजुकेशन, नई शराब नीति आदि को लेकर कई ऐलान भी किये।
वाघेला ने शनिवार को दिल्ली में भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल से मुलाकात की। उन्होंने उनसे समर्थन मांगा। दोनों नेताओं ने वाघेल ने कहा कि अगर उन्हें लगता है कि वह क्षेत्रीय पार्टी शुरू करके सही काम कर रहे हैं तो उनका समर्थन करें। 2017 में भी शंकर सिंह वाघेला ने क्षेत्रीय पार्टी जन विकल्प बनाई थी और चुनाव भी लड़ा था। लेकिन उन्हें एक प्रतिशत वोट भी नहीं मिला और न ही राज्य में एक भी सीट जीत सके। उन्होंने खुद चुनाव भी नहीं लड़ा था।