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अपनी ताकत का दुरूपयोग करते समाज में फासीवाद के शिकार

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15 वर्षीय छात्रा जोया की प्रो. पुनियानी के फासीवाद संबंधी व्याख्यान पर टिप्पणी
fascism

(बीते दिनों आईआईटी मुंबई के पूर्व प्रोफेसर और 2017 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी अवार्ड से सम्मानित प्रख्यात लेखक राम पुनियानी भोपाल आए थे। यहां गांधी भवन में फासीवाद (Fascism) के संकट पर उनका व्याख्यान आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम की पारंपरिक रिपोर्ट कुछ एक अखबारों, वेबसाइट आदि पर ​उपलब्ध है। इस कार्यक्रम में सुनी गई बातों, मसलों पर 11वीं कक्षा की एक छात्रा जोया ने अपनी बात कही है। बतौर श्रोता जैसा उन्हें महसूस हुआ और जो उन्होंने सोचा, उसके साथ जोया ने कुछ मानीखेज सवाल उठाए हैं। हमारे घरों, सड़कों, समाज में पसरे फासीवाद पर उनकी साफ नजर जाती है और बेचैन करने वाले सवाल खड़े करती है। संविधान लाइव के पाठकों के साथ हम जोया की लाइव रिपोर्टिंग की तहरीर को इस उम्मीद के साथ साझा कर रहे हैं कि हम जान सकें कि बतौर नागरिक हम आने वाली पीढ़ी के किन सवालों से दो—चार होंगे और उनके लिए कौन सा भविष्य गढ़ रहे हैं। प्रस्तुत है जोया की यह टिप्पणी, जस की तस…)

मेरा नाम ज़ोया है। मैं मुस्लिम परिवार से आती हूँ। मैं कक्षा 11वीं में आर्ट की छात्रा हूँ और कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में पढ़ती हूँ।

मैं आज गांधी भवन गई। मैंने देखा कि वहां पर बहुत सारे लोग आये हुए थे। वहां जो लोग थे वो सब राम पुनियानी जी से मिलने या उनसे सवाल करने आए थे। राम पुनियानी जी ने वहां जो कहा मेरा काम वह लिखने का था। उन्होंने फासीवाद (Fascism) के बारे में बताया। मैंने फासीवाद के बारे में पहले कभी नहीं सुना था। मुझे लगता था कि फासीवाद (Fascism) जो है, वो किसी फांसी की बात करता है। शायद वो आत्महत्या से जुड़ा हुआ है।

कल जो उन्होंने कहा वो मुझे बहुत ज्यादा समझ नहीं आया। मगर इतना समझ आया कि किसी ताकतवर का अपनी ताकत का दुरूपयोग करना है। उन्होंने अपनी बात शुरू की सावित्री बाई फुले से, जिनके बारे में हमने अभी दो दिन पहले ही एक साथी जो पर्यावरण बचाने की मुहिम पर निकले थे उनका नाम सिद्धार्थ था, उनसे सुना था। उसके बाद जब पुनियानी जी ने बताया तो मुझे अपने औरत होने पर शर्मिंदगी नहीं, बल्कि फख्र हुआ। हमें हिम्मत भी मिली। उस बुरे दौर में जब औरतों का पढ़ना—लिखना खराब माना जाता था, और औरत को सिर्फ घर तक ही सीमित किया जाता था, तब एक औरत जो औरतों को पढ़ाने के लिए पूरी कोशिश करती है। उसे इसमें किसी का साथ नहीं मिलता है। उसे एक साथी मिलती है जिसका नाम फातिमा शैख़ था। जिन्होंने औरतों की शिक्षा के लिए लड़ाई और पढ़ाई की। उन्हें उसके लिए बहुत कुछ सहना पड़ा।जैसे कि सावित्री बाई जब घर से निकलती थीं तो लोग उनके ऊपर कचरा, कीचड़, गोबर फेंक देते थे और थूकते थे। इसलिए वो अपने साथ दो साड़ी रखती थीं। और लड़कियों को पढ़ाने से पहले साड़ी बदलती थीं।

Fascism

जब मैं आज देखती हूं तो आज भी हालात वैसे ही हैं। बहुत सी लड़कियों को आज भी शिक्षा नहीं मिल पा रही है। जो लड़कियां लड़ भिड़ कर शिक्षा की तरफ जाती हैं उन्हें परिवार और समाज से गालियाँ मिलती हैं और बहुत कुछ कहा जाता है। जो लड़कियां इन सारे तानों और मारपीट का मुकाबला कर लेती हैं, वो आगे निकल जाती हैं। और जो ऐसा नहीं कर पाती वो वापस घर और समाज में क़ैद रह जाती हैं। मेरी नज़र में ये घर और समाज का फासीवाद है।

पुनियानी जी ने धर्म की बात की तो मेरी समझ में ये नहीं आ रहा था कि सभी धर्म अगर अच्छे और सच्चे हैं और वो इंसानियत का पाठ पढ़ाते हैं तो फिर उनके नाम पर इतनी नफरत क्यों है। मैं साफ़ कर दूं मैंने कुरान पढ़ा है, वो भी अरबी में, जिसे मैं नहीं समझती हूँ। मेरे घर में भी कोई नहीं समझता है। मेरे माता पिता ने जो बताया मैंने उसे ही धर्म माना। मैं कभी किसी धर्म को अच्छा या बुरा कहने की हैसियत नहीं रखती, क्योंकि मुझे किसी भी धर्म का ज्ञान नहीं है। धर्म पर बात करने के लिए मेरी उम्र और ज्ञान अभी पूरा नहीं है। मगर जब मैं देखती और सुनती हूँ कि यहाँ इस धर्म वालों ने उस धर्म वालों के साथ बुरा किया और दुनिया में किसी दूसरी जगह किसी दूसरे धर्म वालों ने किसी और धर्म वाले के साथ बुरा किया तो मैं धर्म के नाम से ही डर जाती हूँ। मैं ये नहीं समझ पाती हूँ कि धर्म अगर किसी के साथ बुरा या नफरत का नहीं कहता तो फिर बुरा क्यों होता है? क्या मैं इसे धर्म के मानने वालों का फासीवाद (Fascism) मान सकती हूँ? पूरी दुनिया में सबसे बड़ी राजनीति तो धर्म की है। जहाँ उसके सामने सब बौने हो जाते हैं।

उसके बाद पुनियानी जी ने लव जिहाद की बात कही। तो उसमें वो ये समझाना चाह रहे थे कि एक मुस्लिम लड़का परफ्यूम लगाकर गाड़ी पर घर से निकलता है हिन्दू लड़की को भगाने के लिए तो मेरी समझ में ये आया कि वही लड़का परफ्यूम लगाकर मुस्लिम लड़की को भगाने के लिए भी निकलता होगा। तो क्या भारत में लड़कों के पास और कोई काम नहीं है, उनके लिए बस यही बचा है कि वो सिर्फ लड़की भगाते रहें? लड़की भगाने के लिए उसकी गाड़ी में पेट्रोल कौन डलवा रहा है? पेट्रोल तो दूर की बात है, उस निकम्मे लड़के के पास गाड़ी कहां से आई? और मेरी हिन्दू दोस्तों को कमअकल समझा जाता है।

जब वो लव जिहाद की बात कर रहे थे। मेरी अपनी छोटी सी समझ के हिसाब से मैं लव के ऊपर बहुत सी फ़िल्में देखी हैं और हीरो और हिरोइन नफ़रत से लड़ते हुए लव के लिए अपनी जान दे देते हैं और जिहाद की बात करें तो जैसा पुनियानी जी ने कहा था कि जिहाद का मतलब जद्दोजहद यानी की कोशिश करना, लड़ना है, तो मुझे तो लव जिहाद बहुत ही अच्छा और सही आइडिया लगता है कि लोग प्यार के लिए लड़ रहे हैं। इसमें दिक्कत कहाँ है? जैसा कि वो कहते हैं कि धर्म परिवर्तन कराया जाता है तो ये तो दोनों ही समुदाय में बुरा है। अगर किसी हिन्दू लड़की को मुस्लिम लड़के से शादी करनी है तो उसे मुस्लिम क्यों होना पड़े? और किसी मुस्लिम लड़की को हिन्दू लड़के से शादी करनी है तो वो हिन्दू क्यों बने? मतलब यहाँ पर लकड़ी चाहे मुस्लिम हो या हिन्दू हो उसे लड़के के लिए अपना धर्म बदलना पड़ेगा। तो मैं एक लड़की होते हुए इसे बिलकुल क़ुबूल नही करूंगी कि मैं किसी लड़के के लिए अपना धर्म (जो मैंने नहीं चुना) वो भी नहीं बदल सकती। इसमें दोनों कट्टर समुदाय ही कसूरवार हैं। मुझे इसमें मर्दों की दुनिया का फासीवाद (Fascism) नज़र आता है।

अब बात जब पूंजीवाद की होती है तो मैं अपनी कक्षा की पुस्तक राजनीति और समाज शास्त्र, और भारत का संविधान पढ़ रही हूँ। जिसमे मुझे अभी तक जो जानकारी मिली है उससे समझ आया कि व्यापारी को किसी से कोई हमदर्दी नहीं उसका काम व्यापार करना है और वो अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। संविधान ने जनता को बहुत से अधिकार दिए हैं। मगर हमारी कुछ दशकों की राजनीति बहुत ही खराब रही है। जहाँ सरकारों ने जनता को हमेशा दबाकर रखा और पूजीपतियों को (यहाँ भी पूँजी में भी पति है) के लिए काम किया और इसमें हमारा पूरा समाज ज़िम्मेदार है। जिसने गुलाम बने रहना मंज़ूर किया।

कहने के लिए अभी बहुत कुछ बाकी है। आखिरी बात ये कहूँगी कि जो मैंने फासीवाद (Fascism) के बारे में पुनियानी जी का भाषण सुना उससे मुझे लगता है हम अपने हर तरफ फासीवाद (Fascism) को पाते हैं और लड़की होने पर पैदा होते ही हमें फासीवाद को सहने के लिए तैयार किया गया। अभी इतना ही मैं अभी सीख रही हूँ। मैं सीखकर अपनी बात और अच्छे तरीके से रखूंगी। दुनिया में सबके अपने तजुर्बे होते हैं। फासीवाद  (Fascism) को लेकर ये मेरा अपना तजुर्बा है।

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