अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

तमिलनाडु में बिहार के मज़दूरों पर हिंसक हमला अत्यंत गंभीर घटना

Share

शिवानन्द तिवारी,पूर्वसांसद

 तमिलनाडु में बिहार के मज़दूरों पर हिंसक हमला अत्यंत गंभीर घटना है.  यह घटना संकेत दे रही है कि भविष्य में इस तरह की घटनाएँ अन्य प्रांतों में भी हो सकती हैं.

देश में बेरोज़गारी की समस्या सुरसा की तरह बढ़ती जा रही है . उन राज्यों में जिनको हम विकसित मानते हैं और जहाँ बेरोज़गारी दर कम थी वहाँ भी बेरोज़गारी तेज रफ़्तार से बढ़ रही है. अब तक वहाँ बिहार के श्रमिकों का स्वागत होता था. स्वागत सिर्फ़ इसलिए नहीं होता था कि वहाँ स्थानीय मज़दूर उपलब्ध नहीं थे. बल्कि इसलिए भी स्वागत होता था कि बिहार के श्रमिक कम मज़दूरी में भी हाड़ तोड़ काम करने को तैयार रहते हैं. 

तमिलनाडु के पदाधिकारी भले ही वहाँ बिहारी मज़दूरों पर हुए हमलों से इंकार करें. लेकिन तथ्य यही है कि वहाँ बिहार के मज़दूरों पर एक जगह नहीं कई जगहों पर हमला हुआ है. इसलिए इसे नियोजित भी माना जा सकता है. हमलावरों की शिकायत है कि इन लोगों की वजह से हमें काम नहीं मिलता है. ये लोग कम मज़दूरी पर भी काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं. बिहारी मज़दूरों के प्रति वहाँ आक्रोश बहुत तीव्र दिखाई दे रहा है. कुल्हाड़ी से हमला और दो लोगों की मौत से ही इसकी पुष्टि हो रही है.

अब तक के अनुभव से यह स्पष्ट हो चुका है कि उद्योगीकरण द्वारा विकास की नीति से बेरोज़गारी की समस्या का समाधान संभव नहीं है. बल्कि विकास की इस नीति को रोज़गार विहीन विकासनीति कहा जाना चाहिए . आधुनिक यंत्रो ने मनुष्य को काम से बेदख़ल कर दिया है. बड़े बड़े उद्योगों में तो मशीनी आदमी (रोबोट्स) का इस्तेमाल हो रहा है. अब तो मनुष्य की तरह सोच समझ रखने वाले मनुष्य के निर्माण की दिशा में भी विज्ञान कदम बढ़ चुका है. दुनिया के आम आदमी की हैसियत, तीव्र गति से सोच, समझ और निर्णय करने की क्षमता रखने वाले इस मशीनी आदमी के समक्ष क्या होगी, यह कल्पना भी मेरे जैसे आदमी को डराती है. विकास की यह यात्रा मनुष्य को निरर्थक बनाने की दिशा में तेज़ी के साथ आगे बढ़ रही है.

इस परिस्थिति में बेरोज़गारी की समस्या का समाधान सपना देखने जैसा दिखाई दे रहा है. मौजूदा विकास नीति द्वारा रोज़गार का सृजन तो नहीं ही हो रहा है. इस नीति ने समाज में भयानक गैरबराबरी पैदा कर दी है. गृह मंत्रालय का आँकड़ा बता रहा है कि देश में आत्महत्या की घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं. दूसरी तरफ़ समाज में विकृति बढ़ती जा रही है. छोटी छोटी बच्चियाँ बलात्कार का शिकार हो रही हैं. सरे आम लड़कियों के साथ बदसलूकी हो रही है. विरोध करने पर पिटाई होती है. परिजनों की हत्या तक की खबर मिलती है. समाज में तेज़ी के साथ हिंसा का फैलाव हो रहा है. भीड़ हत्या की घटनाएँ बढ़ती जा रही है. क्रूरता का फैलाव हो रहा है. इन घटनाओं का समाज में प्रतिरोध नहीं है. बल्कि लोग मोबाइल पर ऐसी घटनाओं का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाल कर अपनी पीठ थपथपाते हैं.

आज़ाद भारत का समाज ऐसा होगा इसकी तो कल्पना भी किसी ने नहीं की होगी. हमारी विकास नीति ने मनुष्य को गौण और वस्तुओं को प्रमुख बना दिया है. 

क्या यह उचित नहीं होगा कि मौजूदा विकास नीति को बिहार से चुनौती दी जाए ! आख़िर बिहार गाँधी , लोहिया, जयप्रकाश का कर्म क्षेत्र रहा है. उन महापुरुषों ने एक समता मूलक मानवीय समाज बनाने का सपना देखा था. क्या यह बेहतर नहीं होगा कि देश के पिछड़े राज्यों के साथ मिल कर विकास के मौजूदा विकास मॉडल को चुनौती दी जाए और बहस के लिए एक वैकल्पिक मॉडल देश के सामने पेश किया जाए ! 

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें