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प्रतीक्षा

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विवेककुमार

रोजाना की तरह समीर ने गाड़ी बंद की , मैन गेट खोला ,गाड़ी अंदर पार्क की , दालान में बैठे बाबूजी की और होले से मुस्करा कर देखा ,बाबूजी ने भी उसके एक खाली हाथ और दूसरे हाथ में ऑफिस बैग को देखा , पास में गया और पूछा कैसे हो ? सब ठीक तो है ना ?

हाँ बेटा !

और तू ?

अच्छा हूँ !!

पिछले लगभग पाँच वर्षो से यही क्रम चल रहा था , जब से माँ उनका साथ सदा के लिए छोड़ कर गई थी।

शाम को जब समीर ऑफिस से लौटता तो बाबूजी उसे दालान में रखी कुर्सी पर बैठे मिलते , लगता जैसे वे समीर की ही प्रतीक्षा कर रहे हो , समीर को वे एक मासूम बच्चे की तरह  गेट खुलने की ही प्रतीक्षा करते हुए मिलते। उसके बाद वे बाहर घूमने चले जाते और समीर अपने कामो में व्यस्त हो जाता ।

आज न जाने क्यों समीर को लगा की बाबूजी उसके हाथो की और भी देखते है ,क्या देखते है उसकी समझ में न आया। 

अचानक रात में नींद खुली तो समीर के मस्तिष्क में फिर वही प्रश्न कौंध गया , बाबूजी खाली हाथो में क्या ढूंढते है ?

अगले ही क्षण समीर की आँखों से झर झर आंसू बहने लगे , मन हुआ की फुट फुट कर रो पड़े।

माँ के चले जाने के बाद घर में विशेष कुछ बनता न था। माँ जब तक रही तब तक बाबूजी और बच्चो के साथ साथ हम दोनों भी को खाने पीने की विशेष चीजों की कमी न रही।

हे भगवान मुझसे इतना बड़ा अपराध कैसे हो सकता है , क्यों मै यह भूल गया कि बच्चे बूढ़े एक समान होते है।  पिछले कुछ वर्षो में घर की ईएमआई और बच्चो की पढाई के खर्चो ने समीर और सुस्मिता बच्चो एवं बुढो की छोटी मोटी इच्छाओ के बारे में कुछ सोचने का मौका ही न दिया।

समीर को याद आया की बचपन में वो और उसके चारो भाई बहन किस तरह शाम होने का रास्ता देखते थे और जैसे ही बाबूजी घर के आँगन में कदम रखते सब उनसे लिपट जाते और उनके हाथ के झोले को ले जा कर माँ के हाथ में थमा देते।

तब समय एवं परिस्थिती के हिसाब से उस झोले में रोज कुछ न कुछ नया होता हम बच्चो के खाने के लिए। फिर माँ हम सभी भाई बहनो को बराबर में बिठाकर बड़े प्यार से खिलाती , कुछ बचता तो माँ बाबूजी भी खाते वरना हम बच्चो के खिले चेहरे और मन देखकर ही वे दोनों तृप्त  हो जाते थे।

कभी किसी वजह से बाबूजी को आने में देर हो जाती या उनके हाथ खाली हो तो लगता जैसे पूरा घर उदास हो गया हो।

समीर के आंसू थमने का नाम न ले रहे थे। 

वैसे तो  अब घर में  खाने पीने के लिए सब आसानी से उपलब्ध होता है, फिर भी बच्चो के साथ साथ बुजुर्गो को भी लगता  है कि कोई बाहर से आता है तो कुछ न कुछ खाने के लिए विशेष मिलेगा ही मिलेगा…

कुछ भी हो कल से मै जब घर वापस  आऊंगा तो मेरे हाथ खाली न होंगे…..!!

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