अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

स्वप्नों से जागों, स्वप्न मतलब अर्धनिद्रा

Share

शशिकांत गुप्ते

सबकासाथ,सबका विकास,सबका विश्वास,यह सुनते हुए लगभग आठ वर्ष हो गए?बुनियादी सवाल है, सब की परिभाषा में कौन आता है?
वर्तमान सियासी दौर में सब मतलब इस कहावत को चरितार्थ हुए देख रहें हैं।
अंधा बांटे रेवड़ी अपने अपनो को ही दे
साक्षात उदाहरण है कि, कोयले की कमी से बिजली का गुल होना उन्ही सूबों में सम्भव हो रहा है, जहाँ न कीचड़ फैला न कीचड़ में खिलने वाला गुल खिला?
बहरहाल सब का एक मतलब लेखक के व्यंग्यकार मित्र ने यूँ समझने के लिए सन 1957 में प्रदर्शित फ़िल्म एक साल के गीत की पक्तियां सुनाई।ये गीत गीतकार प्रेमधवनजी न लिखा है।
न पूछो प्यार की हमने वो हक़ीक़त देखी
वफ़ा के नाम पे बिकती हुई उल्फ़त देखी
किसी ने लूट लिया और हमें ख़बर न हुई
खुली जो आँख तो बर्बाद मुहब्बत देखी
सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या किया

दिन में अगर चराग़ जलाए तो क्या किया
आश्चर्य है कि, यह गीत फ़िल्म एक साल का है हक़ीक़त में लगभग आठ वर्ष होने आए।गीत की इस पंक्ति में और वर्तमान में फर्क है। पंक्ति में लिखा किसी ने लूट लिया और हमें खबर न हुई
वर्तमान अच्छेदिनों के दिवास्वप्न में बेखर होकर
हम बदनसीब प्यार की रुसवाई बन गये
ख़ुद ही लगा के आग तमाशाई बन गये

व्यंग्यकार ने कहा ध्यान में रखों पालतू बिल्ली पर भी कभी यकीन नहीं करना चाहिए कि, वह दूध की निगरानी(चौकीदारी)करेगी।बिल्ली अपनी स्वाभविक आदत कभी भी नहीं छोड़ती है।
इसी गीत एक पंक्ति है।
पत्थर पे हमने फूल चढ़ाए तो क्या किया
व्यंग्यकार तल्ख लब्जों में कहा सब्ज़बाग के बहकावे में आकर इस कहावत को चरितार्थ होते हुए देख रहो बाड़ ही जब खेत को खा जाए तो रखवाली कौन करें?
व्यंग्यकार ने पूछा इतने उदाहरण के बाद भी समझ में आया कि नहीं सब शब्द का अर्थ।
सब में सभी देशवासी नहीं, सब में चंद गलबहियां करने वाले अंतरंग मित्र ही आतें हैं?
एक ओर आमजन की आय घटती जा रही हैं,और दूसरी ओर अंतरंग मित्रों की इनकम दिन चौगुनी और रात आठ गुनी रफ्तार से बढ़ रही है,?यह कोई जादुई करिश्मा ही हो सकता है।
व्यंग्यकार मित्र ने कहा आमजन की स्थिति तो फिल्मी गाने इन पंक्तियों से हो गई है।
दिखला के किनारे हमें मल्लाह ने लूटा
कश्ती भी गई,हाथ से पतवार भी छुटा
लेखक ने हे व्यंग्यकार महोदय से कहा उक्त पंक्तियों का प्रयोग आप,व्यंग्य के रूप में तो पूर्व में भी कर चुके हो?
व्यंग्यकार ने कहा यह विपणन अर्थात marketing का
कालखंड चल रहा है।मार्केटिंग में अपने उत्पाद के ब्रांड को उपभक्ताओं के जेहन में बैठाने के लिए एक शब्द का प्रयोग बार बार किया है वह शब्द है Hammering अर्थात बार बार शब्दों का हथौड़ा चलाना।
व्यंग्यकार ने लेखक को पुनः कठोर शब्दों में पूछा?व्यंग्य के लिए कुछ पंक्तियों को दोहराने से आप को आपत्ति है?
वर्षो से परंपरा का निर्वाह करने के लिए रावण के पुतलों को प्रतिवर्ष जलाते हो तब पुनरावृत्ति होती है।
बुराई के प्रतीक में रावण के पुतलों को निर्मित करते हो।बुराई के प्रतीक के रूप निर्मित किए जाने वाले पुतलों की ऊँचाई प्रति वर्ष बढाते जातें हो?
इसबार ग़जब नजारा देखने को मिलेगा रावण के पुतले के छद्म हाथों से दर्शकों पर सेनेटाइजर की बौछार भी करवाई जाएगी?
रावण के पुतले के छद्म हाथों से सेनेटाइजर की बौछार करवाना तो तकनीक का कमाल हो सकता है।गनीमत है कि रावण के पुतले के छद्म हाथों से महामारी को भगाने के लिए तालियां या थालियां नहीं बजवाई जाएगी?
लेखक को व्यंग्यकार मित्र ने समझाते हुए कहा कि दशों दिशाएं जब अंधेरे में डूबने लगती है,तब साहित्यकारों का सिर्फ कर्तव्य नहीं,दायित्व बनता है, अपने दर्पण को स्वच्छ कर समाज को यथार्थ से अवगत कराने का।यथार्त से अवगत करने के लिए प्रख्यात कवि,स्व.रामचन्द्र द्विवेदी जो प्रदीप के नाम से प्रसिद्घ हैं।प्रदीपजी के लिखे गीत की कुछ पंक्तियों का स्मरण करो और सुनो और सुनाओं।
सबसे कह दो ये जमी है आज़ादी के बन्दों की,
भगतसिंह के इस भारत में जगह नही जयचंदों की,
आज यही है माँग हमारी कोम के सब सरदारों से,
संभल के रहना अपने घर में छिपे हुए गद्दारों से,

फैलती जो फुट यहाँ पर दूर करो उसे टोली को,
कभी न जलने देना फिर से भेदभाव की होली को,
जो बापू को चीर गयी थी याद करो उस गोली को,
सारी बस्ती जल जाती है मुठ्ठी भर अंगारों से,

शशिकांत गुप्ते इंदौर

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें