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क्या अकबर पूर्वजन्म में ब्राह्मण था?

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शूद्र शिवशंकर सिंह यादव

बाबा साहब डॉ अंबेडकर ने पुराणों को कपोल-कल्पित कहा है। कुछ लोग उन्हें इतिहास मानकर अपनी श्रेष्ठता का बखान करते हैं। उनके बखान लोगों को इतना चमत्कृत करते हैं कि वे आजीवन गप्प को सच मानकर भ्रमित रहते हैं। एक तार्किक के नज़रिये से कहा जा सकता है कि पुराणों में वह सबकुछ है जो आपका जीवन बर्बाद कर सकता है। आपको इतना दिग्भ्रमित कर सकता है कि आप स्वस्थ और वैज्ञानिक चेतना का कभी कोई लाभ नहीं उठा सकते हैं। आइये आज गप्पों की भीड़ से एक गप्प पर हम भी नज़र डालते हैं। अकबर और बीरबल की कहानियाँ तो सभी ने सुनी होगी, पर कम ही लोग जानते होंगे कि अकबर पूर्वजन्म का ब्राह्मण था!

जिस तरह पुराणों मे राम और कृष्ण का बखान किया गया है और उनके पूर्वजन्मों के बारे में लिखा गया है, उसी तरह अकबर की भी प्रशंसा की गयी है तथा उसके पूर्वजन्म के बारे में भी लिखा गया है। जी हाँ, उसी अकबर के बारे में जो भारतीय इतिहास का एक अमर पात्र है और जिसको पराजित करने के लिए आज भी गप्पों और झूठ का एक महाजाल बुना जा रहा है।

गीताप्रेस, गोरखपुर ने लंबे समय तक हिन्दी भाषी जनता के दिमाग की कन्डीशनिंग करने के लिए पुराणों और दूसरे गप्पों को रोचक और सम्मोहक भाषा की चाशनी में लपेटकर किताबें प्रकाशित करता रहा है। गीताप्रेस ने बहुत कम दामों पर बहुत बड़े पैमाने पर यह काम करने में सफलता पाई है और अकूत मुनाफा भी कमाया है। यहाँ से प्रशीत संक्षिप्त भविष्यपुराण के प्रतिसर्गपर्व के चतुर्थखण्ड (पृष्ठ-373-374, चित्र-1-3) में कथा है है। इस कथा में लिखा है कि अकबर पूर्वजन्म में ब्राह्मण था। वह भी शंकराचार्य के गोत्र का। किन्तु एक भूल के कारण वह इस जन्म में म्लेच्छ (मुसलमान) बनकर पैदा हुआ। लेकिन पूर्वजन्म का ब्राह्मण होने की वजह से उनके कर्म महान ही रहे।

कथानुसार, प्रयाग (इलाहाबाद) में एक मुकुन्द नामक ब्राह्मण अपने बीस शिष्यों के साथ तप करता था, पर जब उसे पता चला कि म्लेच्छ बाबर ने भारत आकर देवी-देवताओं की मूर्तियाँ नष्ट कर दी तो उसने दुःखी होकर अपने सभी शिष्यों के साथ आत्मदाह कर लिया और यही मुकुन्द ब्राह्मण अगले जन्म में अकबर बनकर पैदा हुआ।

एक तपस्वी ब्राह्मण म्लेच्छ-योनि में कैसे पैदा हुआ

एक बार जब मुकुन्द ब्राह्मण गाय का दूध पी रहा था तो उसने अज्ञानता-वश दूध के साथ गाय का रोम (बाल) भी पी लिया था, इसी दोष के कारण वह अगले जन्म में म्लेच्छ बनकर पैदा हुआ। और इसी मुकुन्द ब्राह्मण के बीस चेले अगले जन्म में बीरबल और तानसेन वगैरह बनकर पैदा हुये जिनकी सहायता से उसने राजकाज किया। ये लोग अकबर के नवरत्न बन गए।

आगे इस कथा में यह भी बताया गया है कि मुकुन्द ब्राह्मण का नाम इस जन्म में अकबर क्यों पड़ा?

असल में जब अकबर का जन्म हुआ तो हुमायूँ को एक भविष्यवाणी हुई कि ‘तुम्हारा पुत्र बड़ा प्रतापी और भाग्यशाली होगा, यह अक् (अकस्मात) वर (वरदान) की प्राप्ति के साथ पैदा हुआ है, इसीलिये इसका नाम ‘अकबर’ होगा। खैर, यह तो सम्पूर्ण कथा थी, पर अब इस पौराणिक कथा के पीछे छिपे ब्राह्मणी पाखण्ड और झूठ को समझते हैं।

पहली बात तो यह है कि अकबर के नामकरण की जो बात इस पुराण में लिखी है वह बिलकुल बकवास है। शायद ढपोरशंख पंडों को पता नहीं होगा कि अकबर का असली नाम जलालुद्दीन था। अकबर तो अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘महान’। बादशाह अकबर उदार-हृदय का था और इसीलिये उसे अकबर कहा जाता था।

दूसरी बात इसमें लिखा है कि हुमायूँ को आकाशवाणी हुई थी, तो विचार करिये कि यह कितनी झूठी बात है?

अबुल फजल ने आईन-ए-अकबरी, की रचना की जो अकबर की जीवनी है। लेकिन इसमें आकाशवाणी जैसा तो कोई उल्लेख ही नहीं है। इससे पता चलता है कि पौराणिक ब्राह्मण झूठ की झड़ी लगा देते थे। आप इसी से समझ लें कि इस तरह से ही इन्होंने कंस को कृष्ण के पैदा होने की भी आकाशवाणी करवाई होगी, जैसे यहाँ अकबर के जन्म पर करवा दी।

तीसरी बात, कहते हैं कि गाय के रोम-रोम में देवताओं का वास होता है, फिर भूलवश गाय का एक रोम पी जाना दोष कैसे हो गया? ऐसे तो बहुत सारे लोग म्लेच्छ बनकर पैदा होने वाले हैं और फिर यदि गाय का रोम भक्षण करने से अगले जन्म में गाय-भक्षण करने वाला बनकर पैदा होना है तो गाय पालने का क्या फायदा हुआ?

चौथी बात, जब मुकुन्द ब्राह्मण ने बाबर के उपद्रव की वजह से आत्मदाह किया था तो अगले जन्म में उसका उसी बाबर के कुल में पैदा होना कितना भयानक है? और यदि गाय के रोम-भक्षण की वजह से मुकुन्द ब्राह्मण मुस्लिम बना तो उसके चेले किस अपराध की वजह से अगले जन्म में अब्दुल रहीम खान-ए-खाना, फैजी और अबुल फजल आदि बनकर पैदा हुये?

यह विचार करने की बात है कि आज जिस अकबर को नीचा दिखाने के लिए इतिहास से छेड़छाड़ की जा रही है उसे ब्राह्मण-पुराणकारों ने पूर्वजन्म का ब्राह्मण क्यों कहा होगा? क्या इसलिए कि उससे उन्हें मोटा इनाम चाहिए था? क्या इसलिए कि उसने राजपूत घरानों में रिश्ते जोड़े? क्या इसलिए कि हिन्दू धर्म के तथाकथित अगुए अपनी झेंप मिटा रहे थे? जो भी हो, लेकिन उन्होंने संघ और भाजपा की ट्रोल आर्मी और करणी सेना जैसे आतंकी  संगठनों के सामने एक बड़ी ज़िम्मेदारी सौंप दी है कि वे अकबर की असलियत बताने के लिए कोरी बकवास और गप्प से भरे पुराणों को उसी तरह आग के हवाले करें जैसे 1927 में बाबा साहब डॉ अंबेडकर ने मनुस्मृति को किया था। अगर वे ऐसा नहीं करते तो यही माना जाएगा कि वे कायर और बेपेंदी के लोटे ही नहीं हैं बल्कि समाज में झूठ और बकवास फैलाने के अलावा कुछ नहीं कर सकते। यह हिम्मत उनमें है कि नहीं यह आनेवाले समय में दिखेगा।

वास्तव में पुराणों में लिखी राम, कृष्ण, शिव, दुर्गा और विष्णु की भी कहानियाँ मुकुन्द ब्राह्मण की कहानी की तरह कोरी गप्पें हैं। और इन देवी-देवताओं के चमत्कार की जो बातें लिखी हैं, वे  भी पूर्णतः कल्पना मात्र हैं।

ब्राह्मणों ने बड़ी चतुराई से ऐसी ही कहानियाँ गढ़कर भोले-भाले लोगों को बेवकूफ बनाया और उनका शारीरिक, मानसिक और आर्थिक शोषण किया।

वैसे यह मुकुन्द ब्राह्मण की कथा बाद में अकबर-विरोधियों के लिये काफी परेशानी खड़ी करेगी। भारत में एक वर्ग ऐसा भी है जो अकबर को महान नहीं मानता बल्कि उसे क्रूर और कामी बताकर उसका विरोध करता है। लेकिन इस पुराण में अकबर की प्रशंसा की गई है। अब अकबर के समर्थक इस कथा का अचूक-अस्त्र जैसा प्रयोग कर सकते हैं क्योंकि मूर्खतावश ब्राह्मणों ने अकबर को ऐतिहासिक के साथ-साथ पौराणिक-पात्र भी बना दिया है।

इस प्रसंग के बाद भी यदि अंधभक्त मनुवादियों द्वारा लिखित कपोल-कल्पित कथा-कहानियों को सत्य मानते हैं तो यह कहना अनुचित नहीं होगा कि उनके दिमाग में सिर्फ गोबर भरा पड़ा है।

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